Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गुरुत्वहीनता में तेजी से खत्म होती हैं कैंसर कोशिकाएं

हमें फॉलो करें गुरुत्वहीनता में तेजी से खत्म होती हैं कैंसर कोशिकाएं
, मंगलवार, 3 सितम्बर 2019 (11:24 IST)
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक कैंसर कोशिकाओं को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहे हैं। पृथ्वी पर हुई रिसर्च के दौरान पता चला कि बहुत ही कम गुरुत्व बल की स्थिति में कैंसर कोशिकाएं तेजी से मरने लगती हैं।
 
तकरीबन शून्य गुरुत्व बल की स्थिति में जब कैंसर कोशिकाओं को एक दिन रखा गया तो हैरान करने वाले परिणाम सामने आए। 24 घंटे के भीतर 80 फीसदी कैंसर कोशिकाएं मर गईं। यह प्रयोग यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी (यूटीएस) में किया गया। इससे पहले जर्मनी में भी वैज्ञानिक ऐसा ही प्रयोग कर चुके हैं। उस प्रयोग के दौरान अलग किस्म की कैंसर कोशिकाएं ली गई थीं। तब भी नतीजे ऐसे ही मिले थे।
 
यूटीएस के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के रिसर्चर जोशुआ चोउ ने डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कहा, "मेरे इर्द गिर्द कई लोगों को कैंसर होने लगा, और इसी ने मुझे कैंसर कोशिकाओं की जांच करने के लिए प्रेरित किया।" जोशुआ ने यह जानने की कोशिश की कि भारहीनता की स्थिति में कैंसर कोशिकाएं कैसा व्यवहार करती हैं। इससे पहले जोशुआ अंतरिक्ष में हड्डियों के क्षरण को रोकने वाली रिसर्च कर चुके हैं।
 
जोशुआ कहते हैं, "ऐसा कोई तरीका नहीं है जिसके जरिए हम कैंसर के इलाज के लिए कोई जादुई दवा खोज सकें क्योंकि हर किसी का कैंसर अलग होता है और उनके शरीर की प्रतिक्रिया भी अलग होती है। लेकिन मैं यह जानना चाहता था कि क्या तमाम तरह के कैंसरों में कोई चीज एक जैसी भी है? इसीलिए मैं उन्हें माइक्रोग्रैविटी डिवाइस में डाला।"
 
अंतरिक्ष में कैंसर कोशिकाएं
जोशुआ के शुरुआती परिणाम क्रांतिकारी बताए जा रहे हैं, "हमने शरीर के अलग अलग हिस्सों से चार भिन्न भिन्न प्रकार की कैंसर कोशिकाओं को चुना- स्तन, अंडाशय, फेफेड़े और नाक की कोशिकाएं। हमने उन्हें माइक्रोग्रैविटी परिस्थितियों में डाला। और 24 घंटे के अंदर हमने पाया कि 80 से 90 फीसदी कैंसर कोशिकाएं मर चुकी हैं।"
 
अपने एक छात्र एंथनी किरोलस के साथ मिलकर जोशुआ अब कैंसर कोशिकाओं को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भेजना चाहते हैं। लक्ष्य 2020 का रखा गया है। जोशुआ कहते हैं, "हम देखना चाहते हैं कि क्या माइक्रोग्रैविटी का वाकई में इन कोशिकाओं पर कोई असर होता है या फिर अंतरिक्ष में कुछ और हो सकता है, जैसे सौर विकिरण संबंधी असर।"
 
2017 में जर्मनी की माग्देबुर्ग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डानिएला ग्रिम ने भी ऐसे नतीजे पाए थे। ग्रिम ने अंतरिक्ष में थाइरॉयड कैंसर कोशिकाओं के व्यवहार की जांच की। एक टिन के डिब्बे में चीनी अंतरिक्ष यान स्पेसएक्स ड्रैगन के जरिए ये कोशिकाएं अंतरिक्ष में भेजी गईं। तब भी ऐसे ही नतीजे सामने आए थे।
 
स्वस्थ्य शरीर में कोशिकाओं का जन्म, विभाजन और मृत्यु लगातार होती रहती है। क्षतिग्रस्त या बूढ़ी कोशिकाएं खुद मर जाती हैं। इस प्रक्रिया को कोशिकाओं की बायोलॉजिकल आत्महत्या भी कहा जाता है। लेकिन कैंसर के मामले में ऐसा नहीं होता। कैंसर में बीमार, क्षतिग्रस्त या उम्रदराज कोशिकाएं मरती नहीं हैं, वे जीवित रहती हैं और कोशिकीय विभाजन के जरिए अपनी संख्या बढ़ाती रहती हैं।
 
रिपोर्ट अलेक्जांडर फ्रॉएंड

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ये हैं भारत की सात सबसे कठिन परीक्षाएं