Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पूर्वोत्तर में चीनी बांध से भारत के लिए पैदा होंगे कैसे खतरे

हमें फॉलो करें dam

DW

, मंगलवार, 31 दिसंबर 2024 (07:58 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
चीन की ओर से यारलुंग सांगपो नदी, जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है, पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने के एलान से पूर्वोत्तर भारत के साथ ही बांग्लादेश पर खतरा बढ़ गया है। इसे लेकर बढ़ती चिंता के बीच अब अरुणाचल प्रदेश की सियांग बहुउद्देशीय परियोजना का काम शीघ्र शुरू करने के लिए दबाव बढ़ रहा है। लेकिन स्थानीय आबादी इस परियोजना के खिलाफ है। पर्यावरणविदों ने इस परियोजना को पूर्वोत्तर भारत के लिए एक ऐसा वाटर बम करार दिया है जो कभी भी फट सकता है।
 
यारलुंग नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग के नाम से जानी जाती है। आगे बढ़ते हुए असम पहुंचने पर उसका नाम बदल कर ब्रह्मपुत्र हो जाता है। देश की सीमा पार बांग्लादेश पहुंचने पर यही नदी जमुना कहलाती है। यारलुंग सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई करीब 2,880 किलोमीटर है। इसका 1,625 किलोमीटर यानी आधे से ज्यादा हिस्सा तिब्बत में है। भारत और बांग्लादेश में इसकी कुल लंबाई क्रमशः 918 और 337 किमी है।
 
कैसा होगा चीन का नया बांध
चीन ने वैसे तो वर्ष 2021 में ही ऐसे बांध के निर्माण का संकेत दिया था। उसी समय पर्यावरणविदों ने इसे लेकर गहरी चिंता जताई थी। इस बांध से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए ही भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी पर एक बहुउद्देशीय परियोजना का खाका तैयार किया था। लेकिन स्थानीय आदिवासियों के विरोध के कारण यह मामला फिलहाल आगे नहीं बढ़ सका है। चीन के प्रस्तावित बांध पर करीब 137 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च होने का अनुमान है और यह दुनिया का सबसे बड़ा बांध होगा। इससे पहले भी थ्री गॉर्जेस नामक दुनिया का सबसे बड़ा बांध चीन में ही था। लेकिन प्रस्तावित बांध उससे भी बड़ा होगा। इससे 60 हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी।
 
चीनी सरकार ने हालांकि दावा किया है कि इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बांध अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत के जिस इलाके में बनना है वह भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। इस बांध से इलाके का पारिस्थितिकी संतुलन भी गड़बड़ा सकता है। इसके अलावा निचले हिस्से यानी अरुणाचल प्रदेश और असम में इसकी वजह से खेती और जैव विविधता पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। 
 
चीन के पानी छोड़ने से आने लगी है इलाके में बाढ़ 
पर्यावरणविद डॉ. दिनेश कुमार भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहते हैं, "यह बांध खासकर पूर्वोत्तर भारत के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। चीन मनमाने तरीके से पानी रोक कर गर्मी के सीजन में इलाके में सूखे जैसी स्थिति पैदा कर सकता है तो बरसात में अतिरिक्त पानी छोड़ कर पूरे इलाके को डुबो सकता है। इसके अलावा इस बांध की वजह से नदी का प्रवाह बदलने का भी खतरा है।"
 
यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि चीन की ओर से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने की वजह से हाल के वर्षों में सियांग नदी में तीन बार भयावह बाढ़ आ चुकी है।
 
पर्यावरणविदों की चिंता की वजह यह है कि पहले भी इलाके में ऐसी कई प्राकृतिक आपदाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2000 में यारलुंग सांगपो की सहायक नदी ईगोंग सांगपो में भूकंप के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ था। इसकी वजह से अरुणाचल प्रदेश व असम में आई भयावह बाढ़ से जान-माल का भारी नुकसान हुआ था। इसी तरह वर्ष 2017 में आए भूकंप से इलाके में दो अस्थायी झीलें बन गई थी। भू-विज्ञानियों का कहना है कि वह दोनों झीलें हल्के भूकंप की स्थिति में भी फट कर इलाके में तबाही मचा सकती हैं।
 
पर्यावरणविद मोनपा शेरिंग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र के पानी का एक हिस्सा उत्तरी चीन के सूखे इलाके में भेजने की मंशा जता चुका है। यह बांध भारत के लिए खतरे की घंटी है।"
 
स्थानीय लोग विरोध छोड़ भारतीय परियोजना को जगह देंगे?
चीन के इस विशालकाय बांध बनाने के एलान के बाद इसके मुकाबले के लिए इलाके में सियांग बहुउद्देशीय परियोजना को शीघ्र लागू करने की मांग बढ़ रही है। दरअसल, तीन साल पहले जब चीन इस बांध के निर्माण का संकेत दिया था, उसी समय भारत सरकार ने इसके कुप्रभाव से निपटने के लिए अपर सियांग में एक बहुउद्देशीय परियोजना की योजना बनाई थी।
 
करीब एक लाख करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली यह देश की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना होगी। लेकिन स्थानीय आदिवासियों के कड़े विरोध के चलते परियोजना की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट का काम भी शुरू नहीं हो सका है।
 
अब बीते सप्ताह इसके लिए इलाके में केंद्रीय सुरक्षाबल के जवानों को तैनात किया गया है। इस परियोजना के लिए दो साल पहले केंद्र की एक तकनीकी समिति की ओर से तैयार रिपोर्ट में कहा गया था कि चीनी सीमा में बनने वाली परियोजनाओं की काट के लिए यह परियोजना जरूरी है।
 
क्या हैं पूर्वोत्तर के इन गांवों की चिंताएं
इस बीच स्थानीय लोगों का विरोध लगातार तेज हो रहा है। सियांग इंडीजीनस फार्मर्स फोरम (एसआईएफएफ) के बैनर तले होने वाले इस विरोध प्रदर्शन में इलाके के करीब तीन दर्जन गांवों के लोग और उन गांवों के मुखिया शामिल हैं। राज्य में ग्राम प्रधान या मुखिया के पास काफी ताकत होती है।
 
विरोध करने वालों की दलील है कि इस बांध से 13 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे और 34 गांवों के लोगों की आजीविका और जीवन प्रभावित होगा। इलाके के लोग धान और संतरे की खेती पर ही निर्भर हैं। अपर सियांग जिला मुख्यालय यिंगकियांग राजधानी ईटानगर से करीब 380 किमी दूर चीन की सीमा के पास बेहद दुर्गम इलाके में स्थित है।
 
एसआईएफएफ प्रमुख जेजांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "इस परियोजना से दोनों जिलों का आधे से ज्यादा हिस्सा प्रभावित होगा। इस परियोजना से उनकी जमीन, जीवन और पर्यावरण को काफी नुकसान होगा। खेती की जमीन के साथ ही कई गांव भी डूब जाएंगे। दो जिलों-सियांग और अपर सियांग के सैकड़ों परिवारों को विस्थापन झेलना पड़ेगा।"
 
प्रशासन ने तमाम प्रभावित लोगों को पुनर्वास का भरोसा दिया है। लेकिन स्थानीय लोगों को अपने पुरखों की जमीन छोड़ना मंजूर नहीं है। 
 
अरुणाचल सरकार आगे बढ़ने के लिए देगी बातचीत पर जोर
दूसरी ओर, चीनी बांध को मंजूरी मिलने के बाद अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि सियांग बहुउद्देशीय परियोजना बिजली उत्पादन के साथ ही पूरे साल नदी का प्रवाह एक समान बनाए रखने और बाढ़ का खतरा कम करने में सहायक साबित होगी। परियोजना से करीब 11 हजार मेगावाट बिजली भी पैदा होगी।
 
मुख्यमंत्री ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह परियोजना राष्ट्रीय हितों के लिहाज से बेहद अहम है। इसके तहत बने जलाशय में नौ अरब घन मीटर पानी जमा रखा जा सकेगा। इसका इस्तेमाल सूखे के सीजन में किया जाएगा। इसके साथ ही चीन की ओर से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने की स्थिति में स्टोरेज के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हुए इलाके को भयावह बाढ़ से बचाया जा सकता है। चीन अपने बांध के जरिए नदी के पानी को नियंत्रित कर सकता है। इसकी वजह से सर्दी के सीजन में नदी में पानी का स्तर बहुत कम हो जाएगा और इलाके में सूखे की स्थिति पैदा हो जाएगी।"
 
खांडू के मुताबिक, चीन की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उसकी कथनी और करनी में अंतर है। मुख्यमंत्री ने बताया कि चीन बीते कई वर्षो से अरुणाचल से सटे सीमावर्ती इलाकों में बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचे का निर्माण करता रहा है। स्थानीय लोगों के विरोध का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री का कहना था कि उनको परियोजना के बारे में गलत जानकारी देकर गुमराह किया गया है और सरकार बातचीत के जरिए जल्दी ही इस समस्या को सुलझा लेगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

संभल में मंदिरों का बंद होना