Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आर्कटिक महासागर पर चीनी निगाह, ड्रैगन के असल इरादे क्या हैं?

हमें फॉलो करें आर्कटिक महासागर पर चीनी निगाह, ड्रैगन के असल इरादे क्या हैं?

DW

, सोमवार, 27 फ़रवरी 2023 (16:40 IST)
अफ्रीका में चीन की बढ़ती ताकत के बाद क्या आर्कटिक पर भी चीनी दबदबा देखने को मिलेगा? ये सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि चीन भूराजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण आर्कटिक क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाने लगा है। महाशक्ति का दर्जा हासिल करने की अपनी चाहत का इजहार भी वो खुलकर करने लगा है। अमेरिका चिंतित है, यूरोप हिचकता है और रूस निवेश के लिए बेताब है। लेकिन चीन के असल इरादे क्या हैं?
 
2013 में 'योंग शेंग' ने इतिहास बनाया थाः आर्कटिक से होते हुए यूरोप पहुंचने वाला, वो पहला मालवाहक चीनी जहाज था। इस रास्ते को चीन ने 'पोलर सिल्क रोड' यानी 'ध्रुवीय सिल्क मार्ग' का नाम दिया और योंग शेंग जहाज, सुदूर उत्तर में चीनी महत्वाकांक्षा का प्रतीक बन गया।
 
आत्मविश्वास से लबरेज चीन अब थोड़ा-थोड़ा करते आर्कटिक में अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने लगा है। आर्कटिक का भू-राजनीतिक महत्व स्पष्ट है। यमाल प्रायद्वीप पर रूसी आर्कटिक क्षेत्र में गैस संसाधनों में निवेश जैसी परियोजनाओं के साथ चीन अपना प्रभाव फैला रहा है।
 
जनवरी 2018 में चीन ने पोलर सिल्क रोड प्रोजेक्ट शुरू किया था। अब वो कारोबारियों के जरिए आइसलैंड और नॉर्वे से घनिष्ठता बढ़ाने लगा है। स्पिट्सबर्गन में चीन का एक रिसर्च स्टेशन चलता है और उसने खुद को 'आर्कटिक के करीबी देश' के तौर पर सार्वजनिक रूप से परिभाषित करना भी शुरू कर दिया है। इस दर्जे की मदद से चीन को नए अधिकार हासिल होने की उम्मीद है।
 
चीन के लिए आर्कटिक क्षेत्र बहुत दूर रहा है लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग समझ गए हैं कि ये इलाका कितना अहम है। देश की संसाधनों की जरूरत ने जिनपिंग को प्रमुख आर्कटिक शक्तियों के साथ बातचीत को बाध्य किया है जबकि ये देश उन्हें शक की निगाह से देखते आए हैं।
 
आर्कटिक की नई भू-राजनीति न सिर्फ विश्व राजधानियों और मीडिया में सक्रिय है बल्कि जमीन पर भी वह हरकत में है- दूतों-प्रतिनिधियों, उद्यमियों और मध्यस्थों के दौरे उस सामरिक क्षेत्र में बढ़ गए हैं। इस समूह में चीनियों के अलावा नॉर्वे, आइसलैंड, स्वीडन और अमेरिका के लोग भी शामिल हैं।
 
चीन विस्तार कर रहा है। 'चीनाफ्रीका' के बाद क्या अब 'चीनार्टिक' की बात भी हम लोग करने लगेंगे? कहा जाता है, ये वक्त चीन का है। महाशक्ति का दर्जा हासिल करने की अपनी चाहत का इजहार भी वो खुलकर करने लगा है। अमेरिका चिंतित है, यूरोप हिचकता है और रूस निवेश के लिए बेताब है। लेकिन चीन के असल इरादे क्या हैं?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आखिर जर्मनी को 'अचानक' क्यों आई भारत की याद?