साल के अंत तक हर देश की 40 प्रतिशत आबादी को टीका दिलवाने का विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। विशेष रूप से अफ्रीका में यह कमी गंभीर रहेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में से आधे देशों में यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। करीब 40 देशों में तो 10 प्रतिशत लोगों को भी टीका नहीं लगा है। संगठन ने इसके लिए टीकों की जमाखोरी को सबसे बड़ा कारण बताया है और इसके पीछे विशेष रूप से मुट्ठी भर पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराया है जो अभी से बूस्टर टीके भी दे रहे हैं।
अभी तक दुनिया भर में टीकों की 8.6 अरब से भी ज्यादा खुराकें दी जा चुकी हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश ऊंची आय वाले देशों में दी गई हैं। इन देशों के पास इतने संसाधन थे कि उन्होंने टीके बनाने वाली कंपनियों के साथ खुद ही करार कर लिए।
बुरी तस्वीर
दर्जनों देश टीकों की सप्लाई के लिए कोवैक्स पर निर्भर हैं जो कि संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से बनाया गया टीकों को साझा करने का एक कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य ही है कम आय वाले देशों में लोगों तक टीकों को पहुंचाना।
कोवैक्स के जरिए पूरी दुनिया में टीकों की बराबर उपलब्धता का समर्थन नहीं करने के लिए समृद्ध देशों की काफी आलोचना हुई है। हालांकि हाल के हफ्तों में इस कार्यक्रम के जरिए टीकों को भेजा जाना फिर तेज हुआ है।
दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक कोवैक्स ने 72 करोड़ खुराकें इन देशों में पहुंचा दी थीं। लेकिन बाकी डाटा एक बेहद बुरी तस्वीर पेश करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जहां जर्मनी में हर 100 लोगों पर करीब 171 खुराकें दी गई हैं, मैडागास्कर में यह अनुपात 2.7 से भी नीचे है।
कई समस्याएं
डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में तो यह अनुपात 0.32 है। अधिकांश अफ्रीकी देशों में यह आंकड़ा बहुत से बहुत दो अंकों के शुरूआती स्तर तक है। दवा उद्योग को पूरा विश्वास है कि इस असंतुलन के लिए खुराकों की कमी जिम्मेदार नहीं है।
दवा कंपनियों के संगठन आईएफपीएमए के अनुमान के मुताबिक अकेले दिसंबर में ही टीकों की करीब 1.4 अरब खुराकों का उत्पादन हुआ। संगठन का कहना है कि कई देशों में टीकों को लेकर काफी ज्यादा संदेह है और कई जगह टीकों के वितरण में भी समस्या है।
इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अगर देशों को खुराकें समय से और सुनियोजित ढंग से मिलें तो वो तैयार रहेंगे। कई अमीर देशों ने मिल कर एक अरब से भी ज्यादा खुराकें दान करने का वादा किया हुआ है।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि इन खुराकों को जरूरतमंदों तक पहुंचने में बहुत समय लग जाता है। कुछ इंजेक्शनों की तो पहुंचते पहुंचते एक्सपायरी तिथि बस कुछ ही हफ्तों दूर रह जाती है, जिसकी वजह से गरीब देशों में वितरण और ज्यादा पेचीदा हो जाता है।