प्रभाकर मणि तिवारी
जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने का एलान किया। उन्होंने माना कि पद पर रहते हुए ही उनकी बीजेपी से बातचीत शुरू हुई। इस प्रकरण के कारण बतौर न्यायमूर्ति उनके फैसलों पर सवाल उठ रहे हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय 7 मार्च को बीजेपी में शामिल होंगे। संभावना है कि उन्हें पूर्व मेदिनीपुर जिले की तमलुक सीट से मैदान में उतारा जाएगा। यह इलाका विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है।
गंगोपाध्याय के पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने की घोषणा के बाद राजनीतिक हलकों में यह बहस छिड़ गई है कि क्या वह ऐसा कर सकते हैं? क्या ऐसे पद पर रहने वालों के लिए इस्तीफा देने या रिटायर होने के बाद दूसरा कोई काम करने से पहले कोई कूलिंग पीरियड होना चाहिए?
साथ ही, ये सवाल भी उठ रहे हैं कि कहीं उनके हालिया फैसले पूर्वाग्रह से ग्रस्त तो नहीं थे? बतौर न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय के फैसलों के कारण सत्तारूढ़ पार्टी के कई मंत्री, विधायक और नेता जेल में हैं।
अचानक की इस्तीफा देने की घोषणा
अभिजीत गंगोपाध्याय ने इस सप्ताह अचानक इस्तीफे की घोषणा से राजनीतिक हलके में सबको चौंका दिया। उन्होंने एलान किया कि अपने पद से इस्तीफा देने के बाद वे राजनीति में उतरेंगे और टिकट मिला, तो लोकसभा का चुनाव भी लड़ेंगे।
5 मार्च को इस्तीफा देने के फौरन बाद अपने आवास पर की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे, सांसद अभिषेक बनर्जी की जमकर आलोचना की और तृणमूल को एक भ्रष्ट पार्टी बताया।
इस बीच, अभिषेक बनर्जी ने सवाल उठाया है कि इतने अहम पद पर रहने के दौरान कोई भी न्यायाधीश किसी राजनीतिक पार्टी से संपर्क कैसे बनाए रख सकता है। अभिषेक उनके हालिया फैसलों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर करने वाले हैं।
हालांकि, गंगोपाध्याय ने यह कहकर अभिषेक के सवाल का जवाब देने का प्रयास किया है जिन सात दिनों के दौरान वे बीजेपी के साथ संपर्क में थे, तब उन्होंने छुट्टी ली थी और इस अवधि में किसी मामले की सुनवाई नहीं की। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव कुणाल घोष कहते हैं, "हम तो पहले से ही उनके फैसले की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे थे, लेकिन अब ताजा घटनाक्रम से इस आरोप की पुष्टि हो गई है।"
क्या है पृष्ठभूमि
अभिजीत गंगोपाध्याय की स्कूली पढ़ाई कोलकाता के मित्र इंस्टिट्यूशन से हुई। उन्होंने महानगर के ही हाजरा लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। कॉलेज के दिनों में उन्होंने बांग्ला रंगमंच में भी काम किया था। उन्होंने साल 1986 में आखिरी बार किसी नाटक में अभिनय किया था।
गंगोपाध्याय ने वेस्ट बंगाल सिविल सर्विस के ए-ग्रेड ऑफिसर के तौर अपना करियर शुरू किया था। उनकी पोस्टिंग उत्तर दिनाजपुर में ही थी। उसके बाद उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर सरकारी वकील के तौर पर कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। गंगोपाध्याय ने मई 2018 को अतिरिक्त जज के तौर पर कलकत्ता हाईकोर्ट में काम शुरू किया। जुलाई 2020 में वह स्थायी जज बन गए।
कई अहम फैसले सुनाए हैं
राज्य के शिक्षा भर्ती घोटाले से संबंधित एक दर्जन से ज्यादा मामलों में जस्टिस गंगोपाध्याय के फैसलों के कारण ममता बनर्जी सरकार में नंबर दो माने जाने वाले तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के अलावा पार्टी के तीन विधायकों और एक दर्जन से ज्यादा नेताओं को जेल जाना पड़ा। पार्थ चटर्जी को इतना ताकतवर माना जाता था कि तब उनकी गिरफ्तारी की कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था।
गंगोपाध्याय ने बतौर न्यायमूर्ति कई अहम फैसले सुनाए हैं। जजों के बेहतरीन फैसलों के संकलन के तौर पर सितंबर 2023 में छपी कलकत्ता हाईकोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट में न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय के एक फैसले को सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया था। यह निर्णय था, स्कूल में भर्ती घोटाले की केंद्रीय एजेंसी से जांच का निर्देश।
कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति के तौर पर उन्होंने 14 मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी थी। ये तमाम फैसले शिक्षक भर्ती घोटाले से संबंधित थे। गंगोपाध्याय जून 2021 से जनवरी 2024 तक शिक्षक भर्ती घोटाले की लगातार सुनवाई करते रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कई बड़े फैसले सुनाए हैं। 18 मई 2022 को उन्होंने तत्कालीन मंत्री पार्थ चटर्जी को सीबीआई के समक्ष हाजिर होने का निर्देश दिया था। जुलाई में ईडी ने पार्थ को गिरफ्तार कर लिया था।
गंगोपाध्याय ने इसी घोटाले के सिलसिले में 20 जून 2022 को टीएमसी नेता मानिक भट्टाचार्य को प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटा दिया। बाद में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
मई 2022 में गंगोपाध्याय ने तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता को शिक्षक पद से बर्खास्त करते हुए उन्हें पूरा वेतन लौटाने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने फरवरी 2023 में करीब दो हजार ग्रुप डी कर्मचारियों, मार्च में ग्रुप सी के 785 कर्मचारियों और मई में 30 हजार से ज्यादा गैर-प्रशिक्षित शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया था।
टीवी चैनल को इंटरव्यू देने पर हुआ था विवाद
हाईकोर्ट के जस्टिस के तौर पर सितंबर 2022 में एक स्थानीय टीवी चैनल पर इंटरव्यू देकर अभिजीत गंगोपाध्याय ने एक बड़ा विवाद पैदा कर दिया था। उस समय वह शिक्षक भर्ती घोटाले से संबंधित एक अहम मामले की सुनवाई कर रहे थे। अपने इंटरव्यू के दौरान उन्होंने इस घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के सांसद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की कथित भूमिका पर भी सवाल उठाया था। इसके बाद एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान भी उन्होंने मौखिक रूप से अभिषेक बनर्जी की संपत्ति के स्रोत पर सवाल उठाया था।
उनके इंटरव्यू से कानूनी हलकों में भी बहस पैदा हो गई थी। इसकी वजह यह थी कि तब वो तृणमूल कांग्रेस से जुड़े राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मामलों की सुनवाई कर रहे थे और इससे पहले कभी किसी जज ने विचाराधीन मामलों के बारे में चर्चा नहीं की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस इंटरव्यू का संज्ञान लेते हुए उनकी आलोचना की और कहा कि कोई निवर्तमान जज टीवी चैनल को इंटरव्यू नहीं दे सकता। उच्चतम न्यायालय ने उनके इंटरव्यू की समीक्षा के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट को शिक्षक भर्ती घोटाले के तमाम मामले दूसरे जज की पीठ को भेजने का निर्देश दिया था।
राजनीतिक पारी पर क्या कहा
गंगोपाध्याय का कहना है कि एक जस्टिस के तौर पर उनका काम पूरा हो गया था। भारत और खासकर पश्चिम बंगाल में अब भी अनगिनत ऐसे लोग हैं, जो अदालतों तक नहीं पहुंच पाते। गंगोपाध्याय के मुताबिक, अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हुए अब अपनी नई भूमिका में वह ऐसे लोगों के साथ खड़े होने का प्रयास करेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अब जहां बीजेपी के टिकट पर गंगोपाध्याय का चुनाव लड़ना लगभग तय है, ऐसे में उनके हालिया फैसलों की तटस्थता पर सवाल उठना लाजिमी है। हालांकि, कानून जानकारों की राय में किसी न्यायमूर्ति के इस्तीफा देकर तुरंत राजनीति में उतरने की घटना में कोई कानूनी बाधा नहीं है, भले ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "अभिजीत गंगोपाध्याय अपने कार्यकाल के दौरान लगातार टीएमसी और उसकी सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। अब इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने और चुनाव लड़ने की इच्छा जताने के बाद उनके ऐसे तमाम फैसलों पर सवाल तो उठेंगे ही।" पाल का कहना है कि अहम न्यायिक और संवैधानिक पदों पर रहने वालों के लिए सरकार को एक कूलिंग पीरियड बनाना चाहिए, ताकि पारदर्शिता और गोपनीयता बरकरार रह सके।