Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

यूक्रेन युद्ध के कारण सूरत के हीरा कारोबार पर कितना असर

Advertiesment
हमें फॉलो करें diamond industry

DW

, मंगलवार, 28 जून 2022 (07:59 IST)
यूक्रेन युद्ध के थमने के लिए गुजरात में भी दुआएं मांगी जा रही हैं। यहां के लोगों पर यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण बुरी मार पड़ी है और हीरा उद्योग के कर्मचारी बेरोजगार हो रहे हैं।
 
योगेश जंजामेरा उस फैक्ट्री के बाहर ही खटिया लगाए रहते हैं, जहां वह हीरों पर पॉलिश का काम करते हैं। करीब बीस लाख मजदूरों की तरह। सामने ही एक टॉयलेट है जिसे 35-40 कारीगर इस्तेमाल करते हैं, इसलिए हवा में भयानक बदबू रहती है। इन कारीगरों को आंखों की रोशनी कम होने से लेकर फेफड़ों की बीमारियों तक जाने कितने खतरे हैं। लेकिन लाखों कारीगरों की तरह जंजामेरा की आजकल एक ही चिंता है, यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध।
 
हीरों के कारोबार में रूस कच्चे माल के लिए भारत का सबसे बड़ा सप्लायर है। 44 साल के जंजामेरा बताते हैं, "हीरे काफी नहीं बचे हैं। इसलिए काम कम हो गया हो।" जंजामेरा 13 साल के थे जब सूरत आ गए थे और तब से यहीं काम कर रहे हैं। वह खुशकिस्मत हैं कि उनकी नौकरी बची हुई है। स्थानीय ट्रेड यूनियन का कहना है कि 30,000 से 50 हजार हीरा कारीगरों की नौकरियां जा चुकी हैं।
 
तापी नदी के किनारे बसे सूरत को भारत की हीरा नगरी के रूप में भी जाना जाता है। दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत हीरे यहीं तराशे जाते हैं। यहां के बाजारों में करोड़ों के हीरों का लेन-देन खुलेआम होता है। कितनी ही बार व्यापारी अपनी जेब में पुराने अखबार की एक पुड़िया में करोड़ों के हीरे लिए घूमते रहते हैं। चिराग जेम्स के सीईओ चिराग पटेल कहते हैं, "अगर सूरत से नहीं निकला तो हीरा हीरा नहीं कहलाता।"
 
सूरत को यह तमगा दिलाने में रूस की विशाल खनन कंपनियों जैसे कि अलरोसा की बड़ी भूमिका है। लगभग एक तिहाई कच्चे हीरे वही सप्लाई करती हैं। लेकिन फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगा दिए हैं जिसके चलते रूस से कच्चे हीरों की सप्लाई बंद हो गई है।
 
रूस सबसे अहम
चिराग जेम्स के लिए तो रूस बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि उनका आधे से ज्यादा कच्चा माल वहीं से आता है। उनके पास अत्याधुनिक तकनीक और मशीने हैं जिनसे वह सालाना लगभग 900 कच्चे हीरों को तराशते हैं जिनमें से आधे रूस से आते हैं और तराशे जाने के बाद 10 हजार रुपये से एक करोड़ रुपये तक बिकते हैं। अपनी मशीनों और तकनीक के कारण उनकी फैक्ट्री बहुत सी अन्य फैक्ट्रियों से बेहतर है। उनके यहां एग्जॉस्ट फैन लगे हैं जो कारीगरों को खतरनाक धूल और उमस से बचाते हैं।
 
32 वर्षीय पटेल बताते हैं कि पश्चिम प्रतिबंधों के बाद सप्लाई दस प्रतिशत भी नहीं रह गई है क्योंकि रूसी बैंकों को स्विफ्ट व्यवस्था से काट दिया गया है। वह कहते हैं, "युद्ध के कारण पेमेंट सिस्टम बंद हो गया है। इसलिए हमें रूस से सामान नहीं मिल रहा है।" पटेल अब साउथ अफ्रीका और घाना से सप्लाई पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं।
 
जून से सितंबर अमेरिका में शादियों का मौसम होता है और पटेल बताते हैं कि उस दौरान हीरों की मांग सबसे ज्यादा होती है। जेम ऐंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (GJEPC) के आंकड़ों के मुताबिक मार्च में खत्म हुए बीते वित्त वर्ष में भारत ने हीरा उद्योग में 24 अरब डॉलर यानी लगभग 19 खरब डॉलर का निर्यात किया जिसमें से 40 प्रतिशत से ज्यादा अमेरिका को गया।
 
व्यापारी बताते हैं कि यूक्रेन युद्ध के बाद सप्लाई ही नहीं मांग भी गिर गई है। अमेरिका और यूरोप से हीरों की मांग में हाल के महीनों में खासी कमी आई है क्योंकि सिगनेट, टिफनी ऐंड को, चॉपबोर्ड और पैंडोरा जैसी बड़ी हीरा कंपनियां अब ऐसे हीरे खरीदने से इनकार कर रही हैं जो रूस से आए हों।
 
कारीगरों पर बुरी मार
इस पूरी स्थिति की सबसे बड़ी मार हीरा कारीगरों पर पड़ी है जिनकी नौकरियां जा रही हैं। जैसे कि मई में दीपक प्रजापति की नौकरी चली गई जिससे उन्हें 20,000 रुपये मासिक तन्ख्वाह मिलती थी। 37 साल के प्रजापति कहते हैं, "मैंने कंपनी को फोन करके पूछा कि काम दोबारा कब शुरू होगा तो उन्होंने कहा कि अब कोई काम नहीं है और घर पर रहो। सूरत में 60 फीसदी नौकरियां तो हीरों पर ही चलती हैं। मुझे हीरों के अलावा कोई और काम भी नहीं आता।"
 
यह स्थिति तब आई है जबकि महामारी के दौरान भी सैकड़ों लोगों की नौकरियां गई थीं और लोगों को काम मिलना बंद हो गया था। प्रजापति बताते हैं, "छह से आठ महीने तक हमें कोई सैलरी नहीं मिली। हमें जगह-जगह से उधार लेना पड़ा अब वही उधार चुका रहे थे।"
 
गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन ने राज्य सरकार से 10 अरब रुपये के राहत पैकेज की मांग की है ताकि नौकरियां खोने वाले कारीगरों की मदद की जा सके। यूनियन के उपाध्यक्ष भावेश टांक बताते हैं, "हमने मुख्यमंत्री को बताया कि अगर आने वाले दिनों में हालात नहीं सुधरे तो हमारे कारीगर आत्महत्या करने की स्थिति में पहुंच जाएंगे। सूरत ने दुनिया को इतना कुछ दिया है। सूरत ने सारी दुनिया के लिए हीरे घिसे हैं लेकिन अब वही घिसाई करने वाले कारीगर घिसे जा रहे हैं। हम बस ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं कि युद्ध खत्म हो। अगर युद्ध नहीं रुका तो पता नहीं हालात कितने खराब हो जाएंगे।"
 
वीके/एए (एएफपी)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जी-7 सम्मेलन : सिर्फ एक शो या उससे कुछ ज्यादा?