दुनिया भर में अनाज, चारे और ऊर्जा के लिए जैविक पदार्थों की जरूरत लगातार बढ़ रही है। भूस्खलन और जमीन के गलत इस्तेमाल से हर साल 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो रही है।
जमीन के नीचे : मुट्ठी भर मिट्टी में उससे ज्यादा जीव रहते हैं जितने इंसान धरती पर रहते हैं। वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि खाद की परत में पोषक तत्व और पानी जमा रहता है। समुद्र के बाद जमीन ही कार्बन डाय ऑक्साइड का सबसे बड़ा भंडार हैं। वे सारे जंगलों से ज्यादा कार्बन सोखती है।
ढक दी जमीन : दुनिया भर में शहर बढ़ रहे हैं। खेती की जमीन कंक्रीट और रोड के नीचे दबकर खत्म हो रही है। नकली चादर के नीचे छोटे छोटे जीवों का दम घुट रहा है। वर्षा का पानी जमीन के नीचे जाने और उसे नम बनाने के बदले बहकर दूर चला जा रहा है।
हवा के झोंके : धरती की संवेदनशील त्वचा इंसान की त्वचा की ही तरह सूरज, हवा और ठंड से सुरक्षा चाहती है। जमीन में पानी न रहने से, उसकी नमी खत्म होने से बड़े बड़े इलाके सूख सकते हैं और हल जोतने के बाद ढीली हुई मिट्टी को तेज हवाएं उड़ाकर ले जाती है।
रेत बनती धरती : जमीन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी अच्छा नहीं। जंगल काटने, बहुत ज्यादा खाद डालने और अत्यधिक घास चराने से कम पानी वाले इलाके रेगिस्तान में बदल जाते हैं। सूखे जैसे कारक इंसान द्वारा शुरू की गई इस प्रक्रिया को तेज कर देते हैं।
बहा ले गया पानी : पानी की तेज धार भी उपजाऊ मिट्टी को बहा ले जाती है। जब तेज बरसात का पानी कंक्रीट या सड़कों पर गिरता है, जब गर्मी के कारण गलने वाले बर्फ का पानी नदी का जलस्तर बढ़ा देता है, तो इसके साथ अच्छी फसल देने वाली मिट्टी भी बह जाती है।
फायदे के लिए चूसा खेत : बड़े इलाके में एक ही तरह की फसल के लिए अतिरिक्त खाद और कीटनाशकों की जरूरत होती है। फसल को फायदेमंद बनाने के लिए खाद का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में करीब 40 फीसदी जमीन खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से खतरे में है।
अनुपयोगी होती जमीन : बड़ी झीलों में बहुत सारा पानी भाप बन जाता है, मौसम बदलने के कारण बहुत से इलाकों में पर्याप्त बरसात नहीं होती। इसकी वजह से पानी में मिला लवण ऊपरी सतह पर रह जाता है। इसका असर मिट्टी की उर्वरता पर पड़ता है और जमीन को अनुपयोगी बनाता है।
दूषित जमीन : उद्योग का कचरा हो, दुर्घटना या युद्ध की वजह से हुआ प्रदूषण या खाद के सालों के नियमित उपयोग से, कोई जमीन एक बार दूषित हो जाए तो नुकसान को खत्म करना बहुत ही मुश्किल और खर्चीला होता है। चीन में 20 फीसदी जमीन के दूषित होने का अंदेशा है।
खनन की जरूरत : खनिज हासिल करने के लिए मिट्टी को हटाया जा रहा है। जर्मनी में भी भूरे कोयले के खनन के लिए उपजाऊ जमीन की बलि दी जा रही है। इस तरह जमीन का इस्तेमाल जैव विविधता की रक्षा, खेती या रिहाइश के लिए नहीं किया जा सकता।
नया जीवन : प्रकृति को जमीन की सतह पर उर्वरक मिट्टी की परत डालने में दो हजार साल लगते हैं, जिस पर पेड़ पौधे उग सकें और पानी तथा पोषक तत्व जमा हो सकें। फसल लायक उपजाऊ जमीन की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय भूमि वर्ष मनाने का फैसला किया है।