न्यूजीलैंड के लोगों ने यूथेनेसिया यानी इच्छामृत्यु को वैध बनाने के लिए भारी समर्थन दिया है। इस मुद्दे पर 17 अक्टूबर को हुए मतदान के शुरुआती नतीजे बता रहे हैं कि 65 फीसदी से ज्यादा लोग इच्छामृत्यु का अधिकार चाहते हैं।
इच्छामृत्यु के अधिकार का समर्थन करने वाले इसे 'इच्छा' और 'गरिमा' के साथ जीवन की जीत बता रहे हैं। इच्छामृत्यु पर जनमतसंग्रह देश के आम चुनाव के साथ ही करा लिया गया। इन चुनावों में प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न को भारी जीत मिली। शुक्रवार को वोटों की गिनती से पता चला कि 65.2 फीसदी लोग यूथेनेसिया के पक्ष में हैं, जबकि 33.8 फीसदी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इन नतीजों से साफ है कि न्यूजीलैंड जल्द ही उन मुट्ठीभर देशों में शामिल हो जाएगा जो डॉक्टर की मदद से इच्छामृत्यु की अनुमति देते हैं।
पांच साल से चल रही थी बहस
न्यूजीलैंड के कानून में इस सुधार के लिए अभियान चला रहे डेविड सेमूर ने इसे "जबर्दस्त जीत" बताया और कहा कि यह न्यूजीलैंड को मानवता के लिए ज्यादा दयालु बनाएगा। सेमूर ने कहा कि हजारों न्यूजीलैंडवासी जिन्होंने शायद अति दुखदायी मौत को सहन किया होगा, उनके पास अब इच्छा, गरिमा, नियंत्रण और अपने शरीर पर स्वतंत्रता होगी और कानून का शासन इसकी रक्षा करेगा।"
न्यूजीलैंड में इच्छामृत्यु पर बहस लेक्रेटिया सील्स ने शुरू की। 2015 में इस महिला की ब्रेन ट्यूमर के कारण मौत हो गई। मौत उसी दिन हुई जब कोर्ट ने अपनी इच्छा के समय पर मृत्यु की लंबे समय से चली आ रही उसकी मांग को ठुकरा दिया। सील्स के पति मैट विकर्स ने रेडियो न्यूजीलैंड से कहा कि आज मुझे बहुत राहत और कृतज्ञता का अनुभव हो रहा है।" हालांकि न्यूजीलैंड में चर्चों के संगठन साल्वेशन आर्मी का कहना है कि कानून में सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं हैं और इसके नतीजे में लोगों को अपनी जीवनलीला खत्म करवाने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
साल्वेशन आर्मी ने कहा है कि "कमजोर लोग जैसे कि बुजुर्ग और ऐसे लोग जो मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, वो इस कानून के कारण खासतौर से जोखिम में रहेंगे।" न्यूजीलैंड के मेडिकल एसोसिएशन ने भी इस सुधार का विरोध किया है और मतदान से पहले ही इसे "अनैतिक" करार दिया।
कई देशों में है इजाजत
इच्छामृत्यु को सबसे पहले नीदरलैंड्स में वैध बनाया गया। यह साल 2002 की बात है। इसके तुरंत बाद उसी साल बेल्जियम में भी इसे कानूनी घोषित कर दिया। 2008 में लग्जमबर्ग, 2015 में कोलंबिया और 2016 में कनाडा ने भी इसे कानूनी रूप दे दिया। यह अमेरिका के भी कई राज्यों में वैध है और साथ ही ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में। इसके अलावा कुछ देशों में "मदद से आत्महत्या" की भी अनुमति है जिसमें मरीज खुद ही किसी घातक दवा का सेवन करता है, बजाय किसी मेडिकल कर्मचारी या फिर किसी तीसरे पक्ष के।
यूथेनेसिया को लेकर पुर्तगाल की संसद में भी बहस चल रही है। हालांकि इस हफ्ते जनमत संग्रह कराने की मांग पिछले हफ्ते संसद ने ठुकरा दी। इसी महीने नीदरलैंड्स में 12 साल से कम उम्र के बच्चों को भी इच्छा मृत्यु का अधिकार दे दिया गया। अब तक वहां नाबालिगों के मामले में 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों या फिर माता-पिता की सहमति से नवजात शिशु को यूथेनेसिया का अधिकार था।
न्यूजीलैंड में पिछले साल मदद से मौत की अनुमति संसद से मिल गई थी, लेकिन सांसदों ने इसे लागू करने में जान-बूझकर देरी की ताकि लोगों की राय इस मामले में ली जा सके।
ना चाहते हुए भी किया समर्थन
यह कानून 2021 से लागू हो जाएगा। इसके तहत मानसिक रूप से स्वस्थ एक वयस्क अगर ऐसी बीमारी से पीड़ित है जिसमें 6 महीने के भीतर उसकी मौत होने की आशंका है और वह अगर 'असहनीय पीड़ा' झेल रहा है, तो उसे जहरीली दवा दी जा सकती है। इसके लिए अनुरोध पत्र पर मरीज के डॉक्टर, एक अलग स्वतंत्र डॉक्टर के दस्तखत होने चाहिए और अगर किसी भी तरह से मानसिक समस्या का संदेह हो, तो एक मानसिक चिकित्सक की भी सलाह लेना जरूरी होगा।
न्यूजीलैंड के मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई किसी को मरने में मदद देता है, तो उस पर आत्महत्या में मदद या विवश करने का आरोप लगेगा। इसके लिए उसे अधिकतम 14 साल की जेल या फिर हत्या का आरोप लग सकता है, जिसमें उम्रकैद की सजा होगी।
वास्तविकता में इस तरह के मामलों में जब भी किसी को अपराधी करार दिया गया है तो अदालतों ने गैर हिरासती सजाएं सुनाई हैं। देश की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने मृत्यु के अधिकार बिल का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि वे न चाहते हुए भी जनमत संग्रह के लिए इसलिए तैयार हुईं क्योंकि विधेयक को आगे बढ़ाने का सिर्फ यही तरीका था। एनआर/आईबी (एएफपी)