भारत में फेक न्यूज की समस्या लगातार बढ़ रही है। फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल गलत और झूठी सूचनाएं फैलाने के लिए धड़ल्ले से हो रहा है। जानिए इसके क्या खतरे हैं। आज सच्ची खबरें गलत और झूठी खबरों के बीच दबी जा रही हैं। भारत में आजकल फेक न्यूज जंगल में आग की तरह फैल जाती हैं जिससे विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के बीच मतभेद पैदा हो रहे हैं।
हाल के समय में ऐसी कई मिसालें मिलती हैं जब लोगों को गुमराह करने वाली खबरें और प्रोपेगेंडा सोशल मीडिया पर वारयल हो गया। पिछले महीने ही रोहिंग्या लोगों के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया गया। इससे पहले झारखंड में व्हाट्सएप के जरिए बच्चों को अगवा करने वाले एक गैंग के बारे में अफवाह फैली। इसके बाद कई लोगों को सरेआम लोगों ने पीट पीट कर मार डाला। बाद में पता चला कि वह झूठी अफवाह थी और मारे गये लोग निर्दोष थे।
कुछ महीने पहले सरकार समर्थक एक वेबसाइट और मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने एक खबर चलायी जिसमें कहा गया कि जानी मानी लेखक अरुंधति राय ने कश्मीर में भारतीय सेना की भारी मौजूदगी का विरोध किया। इसके बाद समाज के राष्ट्रवादी तबके ने अरुंधति राय पर हमले तेज कर दिये। लेकिन बाद में अरुंधति राय ने बताया कि उन्होंने तो कश्मीर में भारतीय सेना को लेकर कोई बयान ही नहीं दिया है।
पिछले महीने सोशल मीडिया पर एक दिल दहलाने वाला वीडियो चल रहा था। इस वीडियो में जमीन पर एक लड़की की लाश पड़ी है जबकि उसकी बहन बालकनी से छलांग लगाती है और अपनी बहन के पास जमीन पर ही दम तोड़ देती है। दावा किया गया कि यह वीडियो भारत का ही है। लेकिन बाद में पता चला कि वह वीडियो इंडोनेशिया है और ये दोनों बहनें 2006 में अपनी मां की मौत के बाद डिप्रेशन का शिकार थीं।
इसी तरह कुछ महीनों पहले सोशल मीडिया पर एक सैनिक की लाश की फोटो वायरल हुई जिसे तेज बहादुर यादव की लाश बताया गया था। तेज बहादुर ने अपने एक वायरल वीडियो में सीमा सुरक्षा बल में जवानों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठाया था। लेकिन बाद में पता चला कि वह फोटो छत्तीसगढ़ में माओवादी हमले की है।
फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी जटिल होती जा रही है क्योंकि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अभी भारत की 27 फीसदी आबादी यानी 35।5 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं। चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं।
मीडिया विश्लेषक हरतोष बल कहते हैं, "कुछ कंपनियां अपने ग्राहकों को हर दिन 4 जीबी डाटा फ्री दे रही हैं। इससे दूसरी कंपनियों को भी प्रतियोगिता में बने रहने के लिए सस्ते डाटा प्लान लाने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसकी वजह से भी फेक न्यूज और फोटो का सर्कुलेशन बढ़ रहा है।"
भारत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है। दुनिया भर में व्हाट्सएप के मासिक एक अरब से ज्यादा सक्रिय यूजर्स में से 16 करोड़ भारत में हैं। वहीं फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की तादाद 14.8 करोड़ और ट्विटर अकाउंट्स की तादाद 2.2 करोड़ है।
खबरों की पड़ताल करने वाली एक वेबसाइट ऑल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने डीडब्ल्यू को बताया, "फेक न्यूज के फैलने की दो वजह हैं। पहली, हाल के वर्षों में स्मार्टफोन के दाम लगातार कम हुए हैं। दूसरा इंटरनेट डाटा के दामों में आने वाली कमी है। गांवों में रहने वाले लोग सोशल मीडिया पर चलने वाली लगभग हर बात पर विश्वास कर लेते हैं।"
तो फिर निहित स्वार्थों से फैलायी जा रही फेक न्यूज को काबू कैसे किया जाए। सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषक परंजॉय गुहा ठाकुरता कहते हैं, "सजगता और निरगानी को बहुत ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है। कई राजनीतिक पार्टियों और कोरपोरेट संस्थाओं के पास गुमनाम इंटरनेट यूजर्स की पूरी फौज है। वे सच बताकर झूठी खबरों को फैलाते हैं।"
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि खबरें पढ़ने वाले भी ऐसा कुछ देखना और पढ़ना नहीं चाहते जो उनके विचारों से मेल ना खाता हो। उन्हें सिर्फ वही चीज चाहिए जो पहली नजर में उनकी सोच और ख्यालों के मुताबिक हो।
डिजिटल न्यूज पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के अभिनंदन शेखरी कहते हैं, "अगर हमने फेक न्यूज को रोकने के लिए कदम नहीं उठाये तो यह समस्या बढ़ती ही चलेगी जाएगी। हर फेक न्यूज में कुछ ना कुछ संकेत होते हैं और उसे आगे प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले समाचार संस्थानों को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।"
इस बीच कुछ ऐसे टूल भी लोकप्रिय हो रहे हैं जिनके जरिए आप किसी खबर की सत्यता का पता लगा सकते हैं। गूगल सर्च के अलावा आप रिवर्स इमेज सर्च के जरिए पता लगा सकते हैं कि कोई फोटो कितनी सच है।
एसएम होअक्स स्लेयर के पंकज जैन कहते हैं, "संवेदनशील सामग्री को परखने के लिए मैं विभिन्न एल्गोरिद्म इस्तेमाल करता हूं। झूठी खबर का स्रोत पता करने के लिए बहुत ऑनलाइन रिसर्च और फैक्ट चेकिंग करनी पड़ती है।"
जैन और सिन्हा, दोनों ही इस बात पर सहमत है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की सत्यता को जांचने की जिम्मेदारी मुख्यधारा के मीडिया की तो है ही, साथ ही सरकार को भी इस बढ़ते चलन को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। जैन की राय में, "सरकारी संस्थाओं को ग्रामीण स्तर पर लोगों को इंटरनेट साक्षरता के बारे में जागरुक किया जाना चाहिए। वे लोग बिना जांचे परखे किसी भी खबर को सच समझ लेते हैं। इसे रोकने के लिए इंटरनेट में ही कुछ अंदरूनी टूल तैयार करना होगा।"
भारत की नहीं, दुनिया के और देशों में भी हाल में कई राजनेताओं, कंपनियों और सरकारों ने अपने हितों को साधने के लिए फेक न्यूज का इस्तेमाल किया है। ऐसा हम ब्रेक्जिट और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी देख चुके हैं। लेकिन चुनौती यह है कि इससे प्रभावी तरीके से कैसे निपटा जाए।