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युद्ध से तबाह अलेपो में एक बाप बेटी का भावुक मिलन

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, मंगलवार, 6 दिसंबर 2016 (11:45 IST)
जुमा अल-कासिम निढाल हो कर घुटनों पर बैठ गए और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उनकी आंखों ने अभी-अभी अपनी 17 साल की बेटी को देखा था, जिससे मिलने की आस वह खो चुके थे।
जुमा ने डेढ़ साल में अपनी बेटी राशा को पहली बार देखा था। यह नजारा सीरिया के एक सेंटर है जहां युद्ध से तबाह अलेपो के लोग पहुंच रहे थे। जुमा ने बेटी को देखा, उसे चूमा और उससे दो छोटे-छोटे बेटों को उठाने में मदद की। वह कहते हैं, "मैंने सोचा था कि हम अब कभी नहीं मिल पाएंगे, क्योंकि हम इतनी दूर थे। मरने से पहले कुछ पल के लिए ही सही, लेकिन मैं उसका मुंह देखना चाहता था और अब मेरा सपना पूरा हो गया है।"
 
राशा उन दसियों हजार लोगों में शामिल हैं जो हाल के दिनों में विद्रोहियों के कब्जे वाले अलेपो से भाग कर आए हैं। सीरिया के इस दूसरे बड़े शहरों को विद्रोहियों से कब्जे से मुक्त कराने के लिए सीरियाई सेना ने वहां लड़ाई छेड़ी हुई है। 2012 में जब विपक्ष बलों ने अलेपो पर कब्जा कर लिया तो राशा और उनका परिवार कई बार बेघर हुआ। कई बार लड़ाई की वजह से तो कभी आसमान छूती घरों की कीमतों के कारण। जब दो साल पहले राशा की शादी हुई तो वह विद्रोहियों के नियंत्रण वाले शहर के पूर्वी हिस्से में रहने लगी जबकि उसके माता पिता सरकारी नियंत्रण वाले पश्चिमी इलाके में रहते थे।
 
एक इलाके से दूसरे इलाके में जाना मुश्किल था, लेकिन असंभव नहीं। 2015 की शुरुआत में राशा ने आखिरी बार अपने माता पिता को देखा था। अब वह हल्की बारिश के बीच सैकड़ों मीटर का सफर करते हुए अल नक्कारीन के सरकारी चेकपॉइंट पर पहुंची थी। वहां से बस लेकर वह 10 किलोमीटर दूर जिबरिन गई और यहीं नम आंखों के साथ अपने पिता से उसकी मुलाकात हुई।
 
51 साल के जुमा ने जैसे ही बेटी को देखा तो अपनी काली जैकेट उतार कर उसके भीगे कंधों पर डाल दी। वह अपने आंसुओं को नहीं छिपा पा रहे थे। अपने बेटी और दोनों नातियों को बस में लेकर अलेपो को पूर्वोत्तर छोर पर एक फैक्ट्री के खंडहर में पहुंचे। वहीं एक कमरे में राशा की मां रह रही थीं।
 
बेटी को देखते हुए राशा की मां मरियम कहती हैं, "फोन के अलावा बेटी के साथ हमारा और कोई संपर्क नहीं था। हम उसकी आवाज सुन सकते थे लेकिन उस तक पहुंचने का रास्ता नहीं था। मेरी आंखें रो-रो कर थक गई थीं। हम उसके पास नहीं जा सकते और वो हमारे पास नहीं आ सकती थी।"
 
राशा और उसके बच्चों की जिंदगी बहुत मुश्किल दौर से गुजरी है। अलेपो की चार महीने की घेरेबंदी में उन्होंने खाने और दवाइयों की किल्लत के बीच समय गुजारा है। लेकिन मरियम अब अपनी बेटी और नातियों के लिए कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती हैं। वह कहती हैं, "यह पहला मौका है जब मैंने अपने नातियों को देखा है। मैं अब इन्हें दूर नहीं जाने दूंगी।"
 
तीन महीने पहले अलेपो में हुए एक रॉकेट हमले में राशा के पति की मौत हो गई, जिसके बाद उसका और उसके बेटों का कोई सहारा नहीं बचा। राशा ने कहा कि वह अपने माता पिता के घर जाना चाहती थी लेकिन विद्रोही लड़ाकों ने उसे शहर से बाहर नहीं निकले दिया। वह बताती है, "फिर मैंने देखा कि एक दिन मेरे सारे पड़ोसी घर छोड़ कर जा रहे हैं। मैं रात तीन बजे उन्हीं के साथ वहां से निकल गई।" यह बात कहते हुए राशा अपनी मां के कंधे पर सिर रख लेती है और उसकी आंखों से फिर आंसू गिरने लगते हैं।
 
वहीं सिगरेट जलाते हुए जुमा कहते हैं, "अल्लाह का लाख शुक्रिया है कि अब मैं आराम से मर सकता हूं। मेरी बेटी सुरक्षित है।" लेकिन कासिम बताते है कि उनकी एक बेटी अब भी इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण वाले सीरिया के उत्तरी शहर रक्का में रहती है। वह कहते हैं, "हमने उसे तीन साल से नहीं देखा है। एक बेटी तुर्की में रहती है उसे हमें दो साल से नहीं देखा है। इस लड़ाई में हमें बहुत तन्हा और जुदा कर दिया है।" राशा कहती हैं, "मेरी एक आंटी और रक्का में फंसी हुई हैं। और भी बहुत सारे लोग हैं। यह सिर्फ हमारी कहानी नहीं है। हजारों लोग हैं जो अपने परिवारों से मिलने को तरस रहे हैं।"
 
- एके/वीके (एएफपी)

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