राजधानी दिल्ली में एक बार फिर आग की चपेट में आने से अब तक कम से कम 27 लोगों की मौत हुई है जबकि 12 लोग घायल हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर दिन भारत में 35 लोगों की मौत आग संबंधी हादसे में होती है।
पश्चिमी दिल्ली के मुंडका इलाके में चार मंजिला कारोबारी इमारत में एक कंपनी सिक्योरिटी कैमरे और दूसरे उपकरणों को बनाने और बेचने का काम करती थी। हादसा शुक्रवार शाम हुआ और दमकल विभाग के कर्मचारी आग पर काबू पाने के लिए देर रात तक जूझते रहे। कंपनी का दफ्तर भी इसी इमारत में था। पुलिस ने कंपनी के दो मालिकों को गिरफ्तार भी कर लिया है। आग लगने के कारण का पता नहीं चला है लेकिन बिजली के शॉर्ट सर्किट की आशंका जताई जा रही है।
पुलिस ने कंपनी के मालिकों पर गैर-इरादतन नरहत्या का (हत्या नहीं) और आपराधिक साजिश रचने का मामला दर्ज किया है जिसमें अधिकतम उम्रकैद या10 साल के जेल की सजा हो सकती है। गिरफ्तार किए गए दोनों शख्स हरीश गोयल और वरुण गोयल भाई हैं।
फैलती चली गई आग
दिल्ली अग्निशमन विभाग के निदेशक अतुल गर्ग ने बताया कि आग पहली मंजिल से शुरू हुई और उसके बाद इमारत के बाकी हिस्सों में फैल गई। यहां काफी मात्रा में प्लास्टिक और कागज का सामान मौजूद था जिससे आग और भड़की।
मारे गए सभी 27 लोगों के शव दूसरी मंजिल से मिले हैं। सभी कंपनी के कर्मचारी थे। वे यहां एक बैठक में शामिल होने के लिए आये थे। कम से कम 50 लोगों को आग लगने के बाद यहां से सुरक्षित बाहर निकाला गया। एक चश्मदीद ने बताया कि इमारत से बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक ही दरवाजा था।
भारत की राजधानी में मौजूद इस इमारत के लिए अग्निशमन विभाग से मंजूरी नहीं ली गई थी। गर्ग ने कहा है कि इमारत में आग बुझाने वाले यंत्र जैसे सुरक्षा के उपकरण भी नहीं थे। यह पहली बार नहीं है जब सुरक्षा के उपायों में लापरवाही या बदइंतजामी के कारण आग लगी हो और लोगों की जान गई हो।दिल्ली के कई इलाकों में इस तरह के सैकड़ों बल्कि हजारों छोटे-छोटे वर्कशॉप चल रहे हैं जिनमें सुरक्षा उपायों की खुली अनदेखी की जाती है। इसका नतीजा जब-तब आग लगने के हादसों के रूप में सामने आता रहा है।
आगजनी में लगातार मरते लोग
जून 2021 में पश्चिमी दिल्ली के ही उद्योग नगर में एक जूता फैक्ट्री में आग लगने से 6 लोगों की मौत हो गई थी। आग लगने के कई हफ्तों बाद फैक्ट्री के फरार मालिक को गिरफ्तार किया गया।
जनवरी 2020 में पीरागढ़ी की एक इमारत में लगी आग की चपेट में आकर 1 आदमी की मौत हो गई जबकि 17 लोग घायल हो गये इनमें तीन मजदूर और 14 अग्निशमन विभाग के कर्मचारी थे।
इससे पहले 2019 में बिजली के शॉर्ट सर्किट से नई दिल्ली की एक इमारत में आग लग गई और 43 लोग जल कर मर गए। इसमें भी ज्यादातर मजदूर ही थे जो रात में फैक्ट्री की इमारत में ही सो रहे थे।
2019 में ही करोल बाग की एक होटल में आग लगने से 17 लोगों की मौत हुई जिनमें एक महिला और एक बच्चा भी था, जो जान बचाने के लिए खिड़की से कूद पड़े थे।
जनवरी 2018 में दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्ट्री में पटाखों के कारण लगी आग ने 17 लोगों की जिंदगी खत्म कर दी थी।
इसी तरह 1997 के दिल्ली में उपहार सिनेमा कांड को कौन भूल सकता है जब एकसाथ 59 लोगों की मौत आग लगने के कारण हुई थी।
दिल्ली के आस-पास भी बुरा हाल
अब तक बताए गए हादसे तो सिर्फ दिल्ली में हुए थे। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उपनगरों में होने वाले हादसों की संख्या मिला दें तो यह मरने वालों का तादाद हजारों में होगी। आग बुझाने पहुंचे कई दमकलकर्मी भी इस दुर्घटनाओं में मारे जा चुके हैं। हर बार हादसा होने के बाद उससे सबक लेने के दावे होते हैं लेकिन फिर बात आगे बढ़ती नहीं। एक दो लोगों की गिरफ्तारी या सजा होती है लेकिन ऐसी घटना फिर से ना हो इसके लिए कोई पक्का उपाय नहीं किया जाता। सरकार मुआवजा और आश्वासनों से ही काम चला लेती है।
राजधानी दिल्ली और उपनगरों में आज भी हजारों ऐसी इमारतें हैं जिनमें ना सिर्फ सुरक्षा के जरूरी उपकरण नहीं हैं बल्कि उनके निर्माण के डिजायन और दूसरी कई जरूरी नियमों का पालन भी नहीं हुआ है या फिर सक्षम विभाग से मंजूरी नहीं ली गई है। कई फैक्ट्री या वर्कशॉप की इमारतें ऐसी संकरी गलियों में हैं जहां आग या किसी हादसे की स्थिति में बचाव और राहत दल के कर्मचारियों का पहुंचना मुश्किल है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2019 में केवल दिल्ली में आग लगने की घटनाओं में कम से कम 150 लोगों की मौत हुई थी और दूसरे सालों के आंकड़े भी इससे कुछ बहुत ज्यादा अलग नहीं हैं। 2018 में यह संख्या 145 थी। यह आधिकारिक आंकड़े हैं यानी असल संख्या यकीनन इससे ज्यादा होगी।
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में हर दिन पूरे देश में 35 लोगों की जान आग संबंधी हादसों में गई है।