इंसानों का जंगल में बढ़ता दखल और जंगलों की खराब व्यवस्था तो जंगलों की आग के पीछे है ही लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है।
गर्म, सूखा और तेज हवाओं वाला मौसम
आग से लड़ने वाला कोई भी कर्मचारी आपको बता देगा कि सूखा, गर्म और तेज हवाओँ वाला मौसम आग को कैसे भड़काता है। ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि आग से तबाह हुए कई इलाके ऐसे हैं जहां की जलवायु में तापमान और सूखा बढ़ने के कयास लगाए गए थे। गर्मी से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज होती है और सूखा कायम रहता है।
सूखा मौसम मतलब सूखे पेड़, झाड़ी और घास
मौसम सूखा होगा तो वनस्पति सूखेगी और आग को ईंधन मिलेगा। सूखे पेड़-पौधों, और घास में आग न सिर्फ आसानी से लगती है बल्कि तेजी से फैलती है। सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक भरा पूरा भंडार तैयार हो जाता है। गर्म मौसम में हल्की सी चिंगारी या फिर पेड़ पौधों के आपस में घर्षण से पैदा हुई आग जंगल जला देती है।
सूखे में उगने वाले पेड़ पौधे
नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर रही हैं और कम पानी में उग सकने वाले पेड़ पौधों की तादाद बढ़ती जा रही है। नमी में उगने वाले पौधे गायब हो रहे हैं और उनकी जगह रोजमैरी, वाइल्ड लैवेंडर और थाइ जैसे पौधे जड़ जमा रहे हैं जो सूखे मौसम को भी झेल सकते हैं और जिनमें आग भी खूब लगती है।
जमीन की कम होती नमी
तापमान बढ़ने और बारिश कम होने के कारण पानी की तलाश में पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें मिट्टी में ज्यादा गहराई तक जा रही हैं और वहां मौजूद पानी के हर कतरे को सोख रही हैं ताकि अपनी पत्तियों और कांटों को पोषण दे सकें। इसका मतलब है कि जमीन की जो नमी से आग को फैलने से रोकता था, वह अब वहां नहीं है।
कभी भी लग सकती है आग
धरती के उत्तरी गोलार्ध में तापमान की वजह से आग लगने का मौसम ऐतिहासिक रूप से छोटा होता था। ज्यादातर इलाकों में जुलाई से लेकर अगस्त तक। आज यह बढ़ कर जून से अक्टूबर तक चला गया है। कुछ वैज्ञानिक तो कहते हैं कि अब आग पूरे साल में कभी भी लग सकती है। अब इसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं।
बिजली गिरने का खतरा
जितनी गर्मी होगी उतनी ज्यादा बिजली गिरेगी। वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तरी इलाकों में अकसर बिजली गिरने से आग लगती है। हालांकि बात अगर पूरी दुनिया की हो तो जंगल में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से शुरू होती हैं।
कमजोर जेट स्ट्रीम
उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में मौसम का पैटर्न शक्तिशाली, ऊंची हवाओँ से तय होता है। ये हवाएं ध्रुवीय और भूमध्यरेखीय तापमान के अंतर से पैदा होती हैं। इन्हें जेट स्ट्रीम कहा जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक इलाके का तापमान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना बढ़ गया है और इसके कारण ये हवाएं कमजोर पड़ गई हैं।
आग रोकना मुश्किल
तापमान बढ़ने से कारण ना सिर्फ जंगल में आग लगने का खतरा रहता है बल्कि इनकी आंच के भी तेज होने का जोखिम रहता है। फिलहाल कैलिफोर्निया और ग्रीस में कुछ हफ्ते पहले यह साफ तौर पर देखने को मिला। वहां हालात ऐसे बन गए कि कुछ भी कर के आग को रोका नहीं जा सकता। सारे उपाय नाकाम हो गए।
झिंगुरों का आतंक
तापमान बढ़ने के कारण झिंगुर उत्तर में कनाडा के जंगलों की ओर चले गए और भारी तबाही मचाई। रास्ते भर वो अपने साथ साथ पेड़ों को खत्म करते गए। वैज्ञानिकों के मुताबिक झींगुर ना सिर्फ पेड़ों को खत्म कर देते हैं बल्कि कुछ समय के लिए जंगल को आग के लिहाज से ज्यादा जोखिमभरा बना देते हैं।
जंगल जलने से कार्बन
दुनिया भर के जंगल पृथ्वी के जमीनी क्षेत्र से पैदा होने वाले 45 फीसदी कार्बन और इंसानों की गतिविधियों से पैदा हुईं 25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों को सोख लेते हैं। हालांकि जंगल के पेड़ जब मर जाते हैं या जल जाते हैं तो कार्बन की कुछ मात्रा फिर जंगल के वातावरण में चली जाती है और इस तरह से जलवायु परिवर्तन में उनकी भी भूमिका बन जाती है।