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बहुत बीमार है गंगा

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, गुरुवार, 13 जुलाई 2017 (12:30 IST)
भारत के सवा अरब लोगों के लिए गंगा केवल एक जीवनदायिनी नदी ही नहीं बल्कि हिंदुओं के लिए पूजनीय भी है। देश के 40 करोड़ लोग पानी के मुख्य स्रोत के रूप में इस पर निर्भर हैं। लेकिन प्रदूषण इसे और बीमार बना रहा है।
 
"मां गंगा" के लिए प्रार्थना
भारत में 2,600 किलोमीटर से भी लंबी नदी गंगा उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर हिंद महासागर तक फैली है। हिंदू मान्यता में गंगा एक साथ सब कुछ है - पीने के पानी का स्रोत, देवी, पाप धोने वाली, पावन करने वाली, शवों को बहाने वाली और चिता की राख को अपने में समाहित करने वाली। देश में गंगा के कई घाटों पर होती है "मां गंगा" की आरती भी।
 
"कहीं न जाऊं इसे छोड़ कर"
उत्तराखंड के देवप्रयाग में रहने वाले केवल 19 साल के पुजारी लोकेश शर्मा बताते हैं, "मैंने कभी यह जगह छोड़ कहीं और जाकर रहने के बारे में सोचा तक नहीं।" देवप्रयाग ही वो जगह है जहां भागीरथी और अलकनंदा नदियां मिलती हैं और गंगा बनती हैं। देवप्रयाग में गंगा का पानी अपेक्षाकृत साफ दिखता है।
 
गंदगी फैलाने वाला कौन?
...इंसान। भारत और बांग्लादेश से बहते हुए गंगा कितने ही छोटे बड़े गांव, शहर और महानगरों से गुजरती है। करीब डेढ़ करोड़ की आबादी वाले कोलकाता में गंगा का पानी धुंधला दिखता है। लोग नदी के पानी में नहाते हैं, कपड़े धोते हैं और जानवरों को भी नहलाते हैं।
 
बन गया कूड़ादान
नदी के कुछ हिस्सों में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि वहां नहाना खतरनाक है। कई लोग, छोटे कारोबारी और फैक्ट्री इस नदी में अपना कचरा बहाते हैं। हिंदू धर्म मानने वाले कई लोग लाशों को नदी के घाट पर जलाते हैं और चिता की राख को भी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में बहाने की परंपरा है। सन 1985 से ही भारत सरकार गंगा को साफ करने की कोशिश कर रही है।
 
जानलेवा पानी
इंडस्ट्री से निकलने वाला कचरा नदी के पानी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है। आजकल रोजाना गंगा से बहने वाले लगभग पचास लाख लीटर पानी का एक चौथाई हिस्सा साफ किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में चमड़ा उद्योग से निकलने वाले रसायन सीधे पानी में जा रहे हैं। इसलिए नदी में पानी की सतह पर झाग तैरता दिखता है।
 
जैव विविधता का नुकसान
कानपुर के ही पास एक जगह पर गंगा इतनी प्रदूषित हो गयी है कि वो लाल रंग की दिखती है। पानी में ऑक्सीजन की कमी होने से कई जलीय जीव मर रहे हैं और धीरे धीरे मिटते जा रहे हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार, गंगा में डॉल्फिन की तादाद 1980 के दशक में 5,000 से घट कर अब 1,800 पर आ पहुंची है।
 
राजनैतिक असफलता
भारत की सरकारों की राजनैतिक इच्छाशक्ति भी गंगा की बीमारी को बढ़ने से नहीं रोक पाई है। गंगा को साफ करने के लिए तमाम योजनाएं चल रही हैं। नदी में कचरा गिरने से रोकने के लिए और ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं और तट के पास लगी कम से कम 400 फैक्ट्रियों को दूर ले जाया जाना है। 
 
- (हेलेना काशेल/आरपी)

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