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भारत: चाय के फूलों से ऐसे सुधरेगी सेहत और अर्थव्यवस्था

हरी पत्तियों से बनने वाली चाय के गुणों के बारे में तो सब जानते ही हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चाय के फूलों में भी कम गुण नहीं होते? यह सेहत भी सुधार सकते हैं और अर्थव्यवस्था भी।

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, शनिवार, 22 नवंबर 2025 (07:36 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
पूर्वोत्तर भारत स्थित नागालैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने लंबे अध्ययन के बाद कहा है कि अब तक कृषि अपशिष्ट या कचरा समझ कर फेंक दिए जाने वाले चाय के फूलों में काफी मात्रा में ताकतवर शक्तिशाली जैव-सक्रिय यौगिक होते हैं। इनके इस्तेमाल से सेहत सुधारने वाले कई पेय तैयार किए जा सकते हैं।
 
इसके साथ ही इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी काफी मदद मिलेगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि अब तक दुनिया में तमाम शोध चाय की पत्तियों पर ही होते रहे हैं। इनका ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन अब तक इन फूलों को बेकार समझ कर नजरअंदाज किया जाता रहा है।
 
यह दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादक क्षेत्रों में शामिल असम में अपनी किस्म का पहला अध्ययन है। इसमें पारंपरिक तौर पर चाय की हरी पत्तियों की बजाय चाय के फूलों के जैव-रासायनिक गुणों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह अध्ययन रिपोर्ट फूड रिसर्च जर्नल के ताजा अंक में छपी है।
 
अध्ययन रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सेक्टर में सक्रिय न्यूट्रास्युटिकल कंपनियां चाय के फूलों के अर्क का इस्तेमाल सेहत सुधारने के प्राकृतिक स्रोत के तौर पर कर सकती हैं। न्यूट्रास्युटिकल कंपनियां फूड सप्लीमेंट, फंक्शनल फूड, विटामिन और हर्बल अर्क बनाती हैं जिनका इस्तेमाल सेहत को मजबूत करने, बीमारियों के लक्षणों को नियंत्रित करने और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को रोकने में मदद के लिए किया जाता रहा है।
 
अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि सेहत संबंधी फायदों के अलावा इस नई जानकारी के तहत फूलों के संग्रहण और प्रसंस्करण के जरिए लघु चाय उत्पादकों और किसानों के लिए आय के नए रास्ते खुल सकते हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी मजबूती आएगी।
 
शोधकर्ताओं की टीम में विदेशी भी
शोधकर्ताओं की टीम में असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलजी एंड बायोइन्फॉर्मेटिक्स की डॉ. सागरिका दास और रसायन विभाग के जीवन सैकिया के साथ असम के जोरहाट स्थित टोकलाई टी रिसर्च सेंटर के मशहूर बायोकेमिस्ट मनोरंजन गोस्वामी और नागालैंड विश्वविद्यालय के स्कूल आफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के प्रोफेसर तन्मय कारक, डॉ. अनिमेश सरकार, प्रोफेसर सी. एस. माइती के अलावा अमेरिका की कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ. सौमिक पांजा के अलावा दिल्ली स्थित इंडियन एग्रीकल्चर स्टैटिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईसीएआर) के दो वैज्ञानिक - डॉ. रंजीत कुमार पाल और डॉ. मोहम्मद यासीन भी शामिल थे।
 
नागालैंड विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर प्रोफेसर जगदीश के। पटनायक ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारा मुख्य फोकस ऐसे शोध पर है जिससे स्थानीय समुदायों को फायदा मिले। ताजा अध्ययन से सेहत और अर्थव्यवस्था सुधारने में काफी मदद मिल सकती है।"
 
डॉ. सागरिका दास डीडब्ल्यू को बताती हैं, "चाय के फूलों में भरपूर मात्रा में स्वास्थ्यवर्धक यौगिक होते हैं। इनमें पॉलीफेनोल, कैटेचिन, टरपेनोइड्स और एल-थीनाइन की सांद्रता की उल्लेखनीय मौजूदगी होती है। इसके साथ ही पारंपरिक चाय की पत्तियों की तुलना में इसमें कैफीन का स्तर भी कम होता है। चाय के फूलों के इस्तेमाल के जरिए कृषि अपशिष्ट को कम करने, ग्रामीण आय बढ़ाने और सेहत संबंधी उत्पादों के निर्माण से चाय उद्योग में विविधता पैदा करने में मदद मिल सकती है। यह आगे चल कर पूरे चाय उद्योग को मजबूत बना सकता है।"
 
सेहत भी, आय भी
इस टीम के एक अन्य सदस्य प्रोफेसर तन्मय कारक बताते हैं कि इस अध्ययन से साबित होता है कि चाय के फूलों का इस्तेमाल हर्बल चाय के अलावा कई अन्य उत्पाद बनाने में किया जा सकता है। इससे मधुमेह और हृदय रोग जैसी दीर्घकालिक बीमारियों की रोकथाम में भी काफी मदद मिल सकती है। इन फूलों को सिर्फ कृषि अपशिष्ट नहीं मानना चाहिए। इनके समुचित इस्तेमाल से किसानों की आय बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
 
अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि यह नई खोज देश की समृद्ध जैव विविधता और स्थायी स्वास्थ्य समाधानों के प्रति हमारे संकल्प को भी साबित करती है।
 
चाय उद्योग इस शोध को उम्मीद की नई किरण के तौर पर देख रहा है। अपनी बेहतर गुणवत्ता के लिए दुनिया भर में मशहूर दार्जिलिंग चाय उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि यह उद्योग लंबे समय से तमाम दिक्कतों से जूझ रहा है। दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के सदस्य प्रणय गोस्वामी डीडब्ल्यू से कहते हैं, "चाय उद्योग के लिए ऐसे शोध संजीवनी की तरह है। चाय की पौधों और फूलो को लेकर आगे ऐसे और बी नए शोध की जरूरत है। उद्योग में विविधता पैदा कर ही इसे मुश्किलों से उबारा जा सकता है।"

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