ऑर्थोरेक्सी एक ऐसी बीमारी है जो ज्यादा स्वस्थ खाना खाने वाले लोगों को होती है। इसलिए स्वस्थ खाना खाने का मतलब ये कतई नहीं है कि आप बीमार नहीं होंगे।
स्वस्थ रहने के लिए हम एक दम हेल्दी खाना खाना शुरू कर देते हैं। हेल्दी खाना खाने, शुगर और फैट कम कर देने से लगता है कि हम बिल्कुल स्वस्थ रहेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। इस हेल्दी खाने के चक्कर में ऑर्थोरेक्सी बीमारी भी हो सकती है। अच्छा स्वस्थ खान पान, आजकल ट्रेंडी हो गया। लेकिन ज्यादा स्वस्थ खाने की लत लग जाए तो वो भी अच्छा नहीं होता।
सोफिया 19 साल की हैं और ऑर्थोरेक्सी का शिकार हैं। इस बीमारी में इंसान पर सिर्फ सेहतमंद भोजन करने का जुनून सवार हो जाता है। अपनी बीमारी के बारे में सोफिया कहती हैं, "शुरू में मुझे लगता था कि मैं स्वस्थ खाना खा रही हूँ, उसके साथ एक्सरसाइज़ भी कर रही हूं, मतलब कि मेरी एक स्वस्थ लाइफस्टाइल है। लेकिन फिर मुझे लगा कि मेरा वजन लगातार कम हो रहा है, हालांकि मैं ऐसा नहीं चाहती थी। फिर कभी मुझे चिंता होने लगती थी कि वजन और मोटापा फिर से आ जाएगा। इस चक्कर में मैं वही सब खाती रही और ये आदत बीमारी बन गई।"
ऑर्थोरेक्सी की खास बात ये है कि इसमें खाने की मात्रा महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि खाने की क्वालिटी महत्वपूर्ण होती है। इसमें खाने को अच्छे-बुरे और स्वस्थ व अस्वस्थ खाने में बांटा जाता है। सामान्य होने के लिए सोफिया आर्ट थेरेपी का सहारा ले रही हैं। वह अपनी लिखी एक कहानी को तस्वीरों में ढाल रही हैं।
जर्मनी के बाड बोडेनटाइष के क्लीनिक में काम करने वाली बियांका श्वेनेन के मुताबिक हाल के दिनों में खाने की समस्या को लेकर आने वाले मरीजों की तादाद बढ़ी है। डुसेलडॉर्फ यूनिवर्सिटी के एक रेंडम सर्वे में 1340 लोगों में से तीन प्रतिशत में ऑर्थोरेक्सी के संकेत मिले। बियांका कहती हैं, "स्वस्थ खाद्य पदार्थों की खोज के सिलसिले में अकसर ऐसा होता है कि लोग खाने की चीजों के विकल्प घटाते जाते हैं। खाना खाद्य सामग्री नहीं रह जाता बल्कि जिंदगी का केंद्रबिंदु बन जाता है।"
जब सोफिया क्लीनिक पहुंची तो उसका वजन सिर्फ 36 किलो रह गया था। 19 साल की लड़की के लिए यह बहुत ही कम है। ऑर्थोरेक्सी के शिकार लोगों की जिंदगी सिर्फ खाने के इर्द गिर्द घूमने लगती है, वे अपना दिन इसी के अनुसार ढालते हैं। वो खाने को अपने हिसाब से खाते हैं जो बहुत कम मात्रा में होता है। यही हाल सोफिया का था। इसमें एक बात की खास भूमिका थी। वो था डर। सोफिया का कहना है कि वो जगह-जगह मीठे और फैट के दुष्प्रभावों के बारे में पढ़ने लगीं। इस वजह से उन्होंने इनका सेवन बहुत कम कर दिया। और इसका नतीजा बीमारी के रूप में सामने आया।
मीडिया में सचमुच आजकल हर कहीं टिप्स होते हैं कि आप कैसा खाना खाएं। सोशल मीडिया पर तो इसकी बाढ़ आ गई है। फेसबुक और इंस्टाग्राम भी इन टिप्स से भरे पड़े हैं। हर कोई इस कोशिश में लगा है कि खुद को और बेहतर कैसे बनाएं। अच्छा खाना इसका जरूरी हिस्सा है। एक ब्रिटिश सर्वे के अनुसार इंस्टाग्राम पर अधिक सक्रिय लोग खाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इसलिए उनमें अकसर ऑर्थोरेक्सी के संकेत ज्यादा होते हैं।
डॉ. बियांका का कहना है कि पोषण और खान-पान समाज और मीडिया में एक मुद्दा है। वो समझती हैं कि यदि इस तरह ऑर्थोरेक्सी पर बात हो जैसे औद्योगिक पैमाने पर पशुपालन, मुर्गापालन, सालमोनेला बीमारी या दूसरे वायरस की बात होती है तो लोगों को इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी होगी।
बियांका के क्लीनिक में किशोर मरीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। तय नियमों के अनुसार खाने की आदतों को फिर से सामान्य बनाया जाता है। इस क्लीनिक में मरीजों के पासखाने के लिए आधे घंटे का समय होता है। आधे घंटे का ये नियम इसलिए है कि वे फिर से खाने की सामान्य मात्रा, सामान्य खाने और सामान्य दिनचर्या की आदत लगा सकें। यहां दिन में छह बार खाना मिलता है, हर बार ताजा और स्वादिष्ट। फिर भी इनके खाना खा पाना आसान नहीं होता। ऑर्थोरेक्सी बीमारी में खाने का कंट्रोल छोड़ना मुश्किल होता है। हालांकि इलाज से धीरे-धीरे आदतें बदलती हैं और मरीज फिर से सामान्य हो जाता है।