सांकेतिक फोटो
हिमालय के पहाड़ी इलाकों में सैकड़ों संस्कृतियां बसी हैं। उनके अपने गीत और अपने पारंपरिक नृत्य हैं। देखिए पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके हुज्मा की संस्कृति को जरा करीब से।
बांसुरी की धुन
कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड की तरह ही पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके में भी बांसुरी पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं। हुज्मा के गुलमीत कस्बे का यह बच्चा पारंपरिक पोशाक में बांसुरी सिख रहा है।
बुलबीन संगीत
बांसुरी और इकतारे की मदद से बुलबुल जैसी आवाज निकाली जाते हैं। इसी के चलते इस संगीत को बुलबीन कहा जाता है।
रूफ ऑफ द वर्ल्ड
गुलमीत कस्बे में हर साल रूफ ऑफ द वर्ल्ड फेस्टिवल का आयोजन होता है। इस दौरान बुजुर्ग भी शरीक होते हैं।
गीत गाना
बुजुर्ग पारंपरिक गीतों का मुखड़ा गाते हैं और सामने वाले उन्हें दोहराते हैं और उन पर डांस करते हैं।
खड़ी होली सा
उत्तराखंड में होने वाली खड़ी होली की तरह गुलमीत में भी युवा एक लाइन में कदम से कदम मिलाते हुए डांस करते हैं।
महफिल
जो गा बजा नहीं सकते वो आराम से कालीन पर बैठकर यहां के सुरीले संगीत और नृत्य का आनंद लेते हैं।
संगीत से गुलजार वादियां
इलाके के युवाओं ने एक ग्रुप भी बनाया है। आम तौर वे सब मिलकर अपने संगीत का जादू बिखरेते हैं। इलाके की खूबसूरती इसमें चार चांद लगाती है।
धार्मिक कट्टरपंथ से दूर
कट्टरपंथी जहां इस्लाम में संगीत और अविवाहित व गैर रिश्तेदार युवक युवती के साथ बैठने को हराम करार देते हैं, वहीं पहाड़ों में बसे गुलमीत में हालात बहुत अलग दिखते हैं।
बच्चियों को भी मौका
रूफ ऑफ द वर्ल्ड फेस्टिवल के दौरान प्रतिभाली बच्चियों को भी मंच पर अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है।
स्कूल से बड़ी मदद
गुलमीत का बुलबीक स्कूल इलाके के बच्चों को अपने पारंपरिक संगीत की तालीम देता है। ऐसी कई कोशिशों के चलते ही यह परंपरा आज भी गर्व के साथ जिंदा है। (रिपोर्ट: सायमा हैदर)