Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कोरोना के कारण मुश्किल में हिमालय का कस्बा

हमें फॉलो करें कोरोना के कारण मुश्किल में हिमालय का कस्बा
, गुरुवार, 2 अप्रैल 2020 (08:34 IST)
हिमालय की तलहटी में बसा खुमजुंग इस समय एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों से भरा रहता है। कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में तालाबंदी है और हिमालय की चढ़ाई भी बंद है। शेरपाओं के लिए रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
 
कई मशहूर शेरपाओं का घर इसी कस्बे में है। अब तक यहां कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है। हिमालय के इस इलाके में लेकिन वैसे ही तालाबंदी चल रही है, क्योंकि हवाई यात्राओं पर रोक के कारण कोई पर्वतारोही यहां नहीं आया। 17 साल की उम्र से एवरेस्ट पर चढ़ते आ रहे फुरबा न्यामगाल शेरपा को अपने भविष्य की चिंता सता रही है। यही हाल सैकड़ों दूसरे गाइडों और कुलियों का भी है।
 
रस्सियां और फावड़े खुमजुंग के घरों की छतों पर पड़े हैं। पर्वतारोहियों और ट्रेकिंग करने वालों से भरे रहने वाले हॉस्टल और चाय की दुकानें खाली पड़ी हैं। 8,848 मीटर की ऊंचाई पर चढ़ने से पहले लोग यहीं पर वातावरण में खुद को ढालते हैं।
नेपाल ने 12 मार्च से पर्वत पर चढ़ने के सारे अभियानों पर रोक लगा दी, वास्तव में उसने अपने पर्वतों की चोटियों की तालाबंदी कर दी है। इसका मतलब है कम से कम 40 लाख अमेरिकी डॉलर के राजस्व का नुकसान, जो नेपाल को चढ़ाई के परमिट रूप में मिलता है। 1 परमिट की कीमत ही करीब 11,000 डॉलर है।
 
सामान ले जाते शेरपा
 
आमतौर पर शेरपा अपने परिवार में कमाने वाले अकेले सदस्य होते हैं और उनके सामने ज्यादा बड़ी समस्या है। एवरेस्ट पर चढ़ाई का मौसम अप्रैल में शुरू होकर मई के आखिर तक चलता है। शेरपाओं की सीजन में 5 से 10 हजार डॉलर की कमाई होती है। इससे उनका पूरे साल का खर्च चलता है। फिलहाल बेस कैंप वीरान पड़ा है। ऐसे में उनके सामने पूरे साल के लिए इस स्थिति से लड़ने की चुनौती होगी।
 
एक शेरपा ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि हम पहाड़ों में अपनी मर्जी से नहीं जाते, हमारे पास काम का बस यही जरिया है। 31 साल के इस शेरपा की 26 साल की बीवी है और 6 साल का बेटा। वह 8 बार एवरेस्ट की चोटी पर गया है और दर्जनों पर्वतारोहियों को वहां तक पहुंचने में मदद की है।
 
आमतौर पर शेरपा इस समय तक एवरेस्ट के बेस कैंप में पहुंच जाते हैं। वहां सैकड़ों लोग पर्वत पर चढ़ाई के लिए अच्छे मौसम के इंतजार में होते हैं। पिछले साल 885 लोग एवरेस्ट पर पहुंचे थे, जो एक रिकॉर्ड है। इनमें से 644 ने नेपाल की तरफ से चढ़ाई की थी।
बैस कैंप
 
कोरोना वायरस के कारण बेस कैंप में कोई नहीं है। कैंप से पहले आखिरी कस्बा नामचे बाजार भी खाली पड़ा है। गाइड, कुली, रसोइये और दूसरे लोग यहां तक आते हैं और फिर खाली हाथ लौट जाते हैं। केवल शेरपा ही परेशान नहीं हैं। नेपाल की जीडीपी में करीब 8 फीसदी की हिस्सेदारी पर्यटन की है। कम से कम 10 लाख लोगों को इसकी वजह से रोजगार मिलता है।
 
नेपाल अब भी 2015 के भूकंप की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा है। 2020 में कम से कम 20 लाख लोगों के आने की उम्मीद थी, जो अब ध्वस्त हो गई है।
 
बावजूद इसके लोग यही मान रहे हैं कि सरकार का फैसला सही है। यहां संक्रमण का सचमुच खतरा है। वसंत के मौसम में सैकड़ों विदेशी पर्वतारोही और ट्रेकर आते हैं। बेस कैंप में ये लोग नेपाली लोगों के आसपास ही रहते हैं। हवा जैसे-जैसे पतली होती जाती है, ऊंचाई पर सांस लेना मुश्किल होता जाता है। ऐसे में अगर यहां कोई महामारी फैल गई तो जोखिम बहुत ज्यादा होगा।
 
21 बार एवरेस्ट पर चढ़ चुके विख्यात फुरबा ताशी शेरपा का कहना है कि हिमालयी गांवों में अगर कोरोना वायरस पहुंच गया तो तबाही मच जाएगी। फुरबा ताशी ने कहा कि हमारी नौकरी चली गई है लेकिन यह सही फैसला है। खुमजुंग में हमारे पास बस एक छोटा-सा अस्पताल है और संसाधन ज्यादा नहीं हैं। कल्पना कीजिए अगर लोग बीमार होने लगे तो यहां क्या होगा? सरकार से राहत की मांग की जा रही है, पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।
 
एनआर/एमजे (एएफपी)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वेतन काटना शुरू कर चुकी हैं कंपनियां