-अविनाश द्विवेदी
भारत के सामने महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते व्यापार घाटे की समस्याएं मुंहबाए खड़ी हैं। भारत का केंद्रीय बजट इन चुनौतियों से निपटने में कितना कारगर साबित होगा? वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार की कमाई और खर्च का बहीखाता यानी बजट पेश कर दिया है। इंकम टैक्स की लिमिट 5 लाख से बढ़ाकर 7 लाख रुपए कर दी गई है जिससे लोग खुश हैं। दूसरी ओर सीनियर सिटीजंस और महिलाओं के लिए सेविंग्स पर ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं। इससे भी मिडिल क्लास खुश हुआ है।
लेकिन बड़े स्तर पर देखें, तो देश पर इस बजट का क्या असर होगा? ये जानने के लिए सरकार की ही मदद लेते हैं। बजट से ठीक पहले आए इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि साल 2022-23 में आर्थिक वृद्धि हुई और इसकी 3 वजहें गिनाई गईं। पहली, कोरोना के बाद मांग में बढ़ोतरी। दूसरी, साल 2022 के पहले कुछ महीनों में बढ़ा निर्यात और तीसरी, सरकार की ओर से किए गए खर्चे।
मांग और निर्यात मुश्किल में
इन तीनों में से 2 बातें तो आगामी बजट के लिए डरावना इशारा कर रही हैं, क्योंकि बढ़ी हुई मांग के अगले साल और बढ़ने के आसार नहीं हैं। बाकी यह तो सब जानते हैं कि नई नौकरियां आती हैं और सैलरी बढ़ती है तो फिर मांग भी बढ़ती है। और अभी तो हालात भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इससे उलट हैं। तो इस साल मांग बढ़ेगी और इससे बहुत आर्थिक वृद्धि होगी, इसकी संभावना कम ही लगती है।
दूसरी बात है निर्यात में बढ़ोतरी की। तो दुनियाभर में मांग सिकुड़ रही है। यूरोपीय देशों में तो वृद्धि के आसार ही नहीं दिख रहे। ऐसे में निर्यात बढ़ने की भी कम ही संभावना है।
सरकार के खर्च बढ़ाने का विकल्प
इन हालात में एक ही विकल्प बचता है- सरकार खर्च बढ़ाए। सरकार इसके लिए तैयार भी है। बजट में ऐलान किया गया है कि अगले साल सरकार अपनी ओर से 100 खरब रुपए खर्च करेगी। यह मौजूदा साल के मुकाबले करीब एक-तिहाई ज्यादा होगा। इस खर्च से सरकार नौकरियां बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि लाने की कोशिश करेगी।
नौकरियां लाने के लिए सरकार ने अलग से कुछ योजनाएं बना रखी हैं। टूरिज्म को मिशन मोड में बढ़ाना इनमें से एक है। अगर ऐसा हुआ तो स्थानीय स्तर पर ही ढेर सारे रोजगार पैदा किए जा सकते हैं, जैसे मान लीजिए कि अगर बनारस और अयोध्या जैसे शहरों में बड़ी संख्या में पर्यटक आने लगें, तो वहां टैक्सी, रेस्टॉरेंट और होटल वगैरह के कितने ही रोजगार बढ़ जाएंगे।
नौकरियां लाने के लिए कई योजनाएं
फिर 'प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0' लॉन्च करने का भी प्लान है। इसके तहत अगले 3 सालों में लाखों युवाओं को ट्रेंड किया जाएगा। सरकार ने 5जी सेवाओं का इस्तेमाल करके लैब लगाने की भी बात कही है, जहां ऐप डेवलप करने की नौकरियां आएंगी। इसके अलावा किसी IIT के साथ मिलकर लैब में हीरे बनाने को और विस्तार देने की योजना है। सरकार को उम्मीद है कि इस सेक्टर में भारी नौकरियां आ सकती हैं। हालांकि ये सारी नौकरियां अभी भविष्य में हैं। ये तुरंत नहीं आ जाएंगी।
सरकार भी कर्ज की दरों से परेशान
वहीं पिछले कुछ वर्षों में कोविड के बाद अर्थव्यवस्था जिस हाल में थी, सरकार को उसे चलाने के लिए ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा था। इस वजह से ब्याज दरें बढ़ी हुई हैं। जिनकी EMI चल रही है, उनसे पूछ लीजिए। वैसे बढ़ी हुई ब्याज दरों से परेशान तो सरकार भी है।
आलम ये है कि वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने 94 खरब रुपए ब्याज चुकाने में दिए, जो सरकार के कुल खर्च का 22.50 फीसदी है। अगले साल यह ब्याज 108 खरब होने का एस्टीमेट है, जो सरकार के कुल खर्च का 24 फीसदी बनता है। यह सरकार का सबसे बड़ा खर्च बना हुआ है।
मांग बढ़े या बचत, यह भी उलझन
सरकार के राजकोषीय घाटे की भी बात कर लेते हैं यानी सरकार ने कितना खर्च किया और कितना कमाया। तो अगले साल यह घाटा 6 परसेंट से कम रहेगा, जो इस साल साढ़े 6 परसेंट रहने वाला है। और सरकार अपना घाटा कर्ज लेकर भर रही है। जब सरकार कर्ज लेती है, तो बड़ा कर्ज लेती है। जैसे इस साल करीब 120 खरब और अगले साल करीब 123 खरब रुपए। इतना बड़ा लोन लिया जाता है तो ब्याज दरें चढ़ी रहती हैं यानी कर्ज देने वाला ज्यादा ब्याज मांगता है।
जब सरकार के लिए ब्याज दरें बढ़ती हैं तो लोगों के लिए भी बढ़ती हैं। तो अगर सरकार इतना लोन लेती रही, तो आपकी ईएमआई की दर भी जल्द कम नहीं होने वाली। और लोग ज्यादा ब्याज दर का सोचकर ज्यादा सेविंग करने लगें, तो खर्च करना बंद कर देंगे। सरकार यह भी नहीं चाहती कि लोग खर्च कम करें। जब खर्च करेंगे, तभी तो मांग बढ़ेगी और इकोनॉमी चलेगी।
कागज पर अच्छा, जमीन पर मुश्किल
आखिरी बात सरकार की कमाई से जुड़ी यानी जनता के दिए जाने वाले टैक्स की बात। तो टैक्स से कमाई अच्छी हो रही है और आगे भी होती रहेगी। इस साल टैक्स से 300 खरब रुपए आने की गुंजाइश है और अगले साल के लिए 336 खरब आने का अनुमान है यानी सरकार की टैक्स से होने वाली कमाई बढ़ ही रही होगी। फिर दूसरा जरिया है विनिवेश का यानी सरकारी संपत्तियां बेचकर कमाई करने का। इसके टारगेट सरकार पिछले कई वर्षों से अचीव नहीं कर पा रही है।
तो सरकार ने जीडीपी ग्रोथ के जो टारगेट रखे हैं, उसे लेकर बजट के पन्नों पर तो सही तस्वीर खींची जा रही है। लेकिन अगर अर्थव्यवस्था में मांग नहीं बढ़ती है, वैश्विक अर्थव्यवस्था में घटी मांग से निर्यात स्थिर रहता है या घट जाता है और नौकरियां तुरंत नहीं आतीं तो बजट में पेश की गई तस्वीर को जमीन पर उतारना बहुत मुश्किल होगा।
Edited by: Ravindra Gupta