Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कोरोना काल में वोटिंग के लिए कितना तैयार है बिहार?

हमें फॉलो करें कोरोना काल में वोटिंग के लिए कितना तैयार है बिहार?

DW

, मंगलवार, 29 सितम्बर 2020 (08:40 IST)
रिपोर्ट मनीष कुमार, पटना
 
कोरोना संकट के दौरान देश में पहली बार बिहार में अक्टूबर-नवंबर में मतदान होगा। निर्वाचन आयोग ने मतदान के कार्यक्रम की घोषणा कर दी। यक्षप्रश्न यह है कि बिहार वोटिंग के लिए कितना तैयार है?
 
निर्वाचन आयोग वोटरों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बिहार में 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव कराएगा। मतदान 3 चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होंगे। मतगणना 10 नवंबर को होगी। कोरोना काल में संक्रमण के खतरे को कम करने के लिहाज से उम्मीदवार और मतदाता, दोनों के लिए विशेष व्यवस्था करने के निर्देश जारी किए गए हैं। इससे पहले सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड को छोड़ लगभग सभी पार्टियों ने कोरोना काल में चुनाव कराने का विरोध करते हुए इसे टालने का अनुरोध किया था।
हालांकि बाद में अदालत द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार किए जाने के बाद सभी दलों ने तैयारी तेज कर दी। वर्चुअल सभाओं का दौर शुरू हो गया। सभी पार्टियां डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ गईं। किंतु इन सबसे इतर वोटरों में कोरोना के कारण संशय की स्थिति है। राज्य में संक्रमितों की संख्या में कमी आई है और रिकवरी दर काफी तेजी से बढ़ी है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जिन राज्यों में संक्रमण की दर कम है, वहां 15 अक्टूबर के बाद एक बार फिर तेजी से संक्रमण फैलने की चेतावनी के कारण वोटरों के अपेक्षित टर्नआउट में संदेह है। समाजशास्त्री अनमोल कुमार कहते हैं कि वोटर तो वोट डालकर घर लौट जाएगा किंतु उन लाखों चुनावकर्मियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जा सकेगी, जो विभिन्न समूहों में सफर करके मतदान केंद्रों पर 1 दिन पहले पहुंचेंगे और वहां रहेंगे या फिर वोटों की गिनती करेंगे। इनके लिए कौन-सा फूलप्रूफ प्लान है? आखिर इतने लोगों की जान से क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है?
 
व्याख्याता नरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि इसकी क्या गारंटी है कि हर घर प्रचार करने वाले नेता-कार्यकर्ता कोरोना संक्रमित नहीं होंगे? ये कैरियर का काम तो कर ही सकते हैं। वहीं व्यवसायी श्याम किशोर कहते हैं कि कोरोना से जीवन ठहर गया है। सुरक्षा का ख्याल रखते हुए चुनाव कराने में क्या ऐतराज है? मंदिर-मस्जिद, मॉल व स्कूल खुल गए तो चुनाव की प्रक्रिया बाधित करने का क्या औचित्य है? नए वादों के साथ नई सरकार बनेगी तो इससे राज्य का भला ही होगा।
कम नहीं मतदान की चुनौतियां
 
कोविड-19 को देखते हुए निर्वाचन आयोग तथा राजनीतिक दलों के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बिहार में करीब 7.18 करोड़ मतदाता हैं तो बूथों की संख्या 1.6 लाख है। वाकई इतनी बड़ी संख्या में वोटरों के लिए मतदान केंद्रों पर थर्मल स्क्रीनिंग, मास्क, ग्लव्स व सैनिटाइजर की पर्याप्त व्यवस्था एवं वितरण, सोशल डिस्टेंशिंग तथा मतदाताओं व चुनावकर्मियों से कोरोना प्रोटोकाल का अनुपालन सुनिश्चित करवाना दुरूह कार्य है। 
 
कंटेन्मेंट जोन में रह रहे कोरोना संक्रमित तथा असंक्रमितों के संबंध में भी गंभीरता से विचार करना होगा। वैसे कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकना तथा वोटरों व मतदानकर्मियों को संक्रमित होने से बचाने पर आयोग का सबसे ज्यादा जोर है। जुलाई के पहले सप्ताह में ही निर्वाचन आयोग को प्रस्ताव भेजा गया था जिनमें ईवीएम को छुए बिना वोटिंग, पोलिंग अधिकारी के समक्ष शीशे की दीवार व डिस्पोजेबल सीरिंज के जरिए अमिट स्याही डालने, बूथ पर सैनिटाइजर व ग्लव्स की व्यवस्था करने जैसे प्रस्ताव शामिल थे।
 
राजधानी पटना में हुए सर्वदलीय बैठक में भी राजनीतिक दलों ने प्रचार में कम समय लगने को ध्यान में रखते हुए एक ही चरण में मतदान कराने की बात कही थी। साथ ही, यह बात भी उठी थी कि पहले की तरह ही प्रत्याशियों व कार्यकर्ताओं को डोर-टू-डोर कैंपेन की इजाजत दी जाए। इन्हीं संदर्भों में आयोग ने पूरी सतर्कता के साथ चुनाव कराने की रणनीति बनाई। इसके लिए दिशा-निर्देशों में व्यापक बदलाव किए गए।
 
सतर्कता इस हद तक बरती जा रही कि मतदान केंद्र पर वोटरों को मतदाता रजिस्टर में हस्ताक्षर करने व ईवीएम का बटन दबाने से पहले बूथ के प्रवेश द्वार पर ग्लव्स दिए जाएंगे, जो केवल दाहिने हाथ के लिए ही होगा। बाएं हाथ पर अमिट स्याही लगाई जाएगी। जो वोटर दस्तखत नहीं कर सकते, उन्हें ईयरबड दिया जाएगा जिससे वे स्याही निकालकर अपने अंगूठे पर लगाएंगे जिसका निशान मतदाता रजिस्टर पर लिया जाएगा। राजधानी पटना के कंकड़बाग मोहल्ले की निवासी गृहिणी शोभा कहती हैं कि क्या जरूरत थी इतने झंझट लेकर चुनाव कराने की? अमेरिका की तरह चुनाव यहां बाध्यता नहीं है, राष्ट्रपति शासन लागू कर स्थिति सामान्य होने का इंतजार किया जा सकता था।
 
प्रत्याशी नहीं कर सकेंगे शक्ति प्रदर्शन
 
आयोग ने प्रत्याशियों के लिए जारी अपनी गाइडलाइंस में कहा है कि नामांकन के दौरान किसी भी उम्मीदवार के साथ 2 से ज्यादा लोग नहीं होंगे तथा डोर-टू-डोर प्रचार के वक्त उनके साथ अधिकतम 5 व्यक्ति रहेंगे, वहीं रोड शो के समय में भी वे 5 से ज्यादा वाहनों का काफिला लेकर नहीं चल सकेंगे। आयोग ने उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा भी तय कर दी है। वे अब 10 हजार नकद एवं 26 लाख से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेंगे। हालांकि कोरोना को देखते हुए प्रचार खर्च में बढ़ोतरी की मांग की गई है।
 
आयोग की रणनीति के अनुसार प्रत्येक मतदान केंद्र पर वोटरों के लिए 500 मिलीलीटर तथा मतदानकर्मियों व सुरक्षा बलों के लिए प्रति यूनिट 100 मिली. सैनिटाइजर की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा सभी मतदाताओं को 1-1 ग्लव्स तथा चुनावकर्मियों को 1-1 जोड़ी ग्लव्स दिए जाएंगे। सभी बूथों पर थर्मल स्क्रीनिंग डिवाइस भी उपलब्ध कराया जाएगा। मतदाताओं को मास्क पहनकर वोट डालने आना होगा। जो बिना मास्क पहने आएंगे, उन पर 50 रुपए के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। आयोग ने कोविड संक्रमित या पहले पॉजिटिव हुए लोगों की अलग मतदाता सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। ऐसे वोटरों के लिए हरेक बूथ पर अलग लाइन होगी।
 
चुनाव की तिथियों का ऐलान
 
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में कहा था कि आपदा की इस स्थिति में पूरे विश्व में चुनाव प्रबंधन संस्थाओं के लिए चुनौती है। ऐसा देखा गया है कि किसी राज्य में चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करने के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त 2 अन्य चुनाव आयुक्तों के साथ उस राज्य का दौरा करते हैं। वैसे चुनाव की घोषणा में इस बार एक हद तक विलंब हो चुका है।
 
2015 में 9 सितंबर को 5 चरणों में चुनाव की घोषणा की जा चुकी थी तथा पहले चरण की अधिसूचना 16 सितंबर को जारी कर दी गई थी। 12 अक्टूबर से शुरू होकर वोटिंग की प्रक्रिया 5 नवंबर तक चली थी जबकि 8 नवंबर को परिणाम घोषित कर दिया गया था। पिछली बार की तरह ही इस बार भी आयोग ने दशहरा, दीपावली व छठ महापर्व को ध्यान में रखते हुए चुनाव की तिथियों की घोषणा की है। इस बार 17 से 25 अक्टूबर तक नवरात्र, 14 नवंबर को दीपावली व 21 को छठ पूजा है।
 
इस साल मतदान 3 चरणों में हो रहा है। पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होगा जिसमें भागलपुर, बांका, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, जमुई, खगड़िया, बेगूसराय, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार जिले में चुनाव कराया जाएगा। दूसरे चरण का मतदान 3 नवंबर को होगा जिसमें उत्तर बिहार के जिलों मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिले में चुनाव होंगे। तीसरे चरण का मतदान 7 नवंबर को है जब पटना, बक्सर, सारण, भोजपुर, नालंदा, गोपालगंज, सिवान, बोधगया, जहानाबाद, अरवल, नवादा, औरंगाबाद, कैमूर और रोहतास जिलों में चुनाव होगा। चुनाव के नतीजे 10 नवंबर को घोषित होंगे।
 
दोगुने से ज्यादा बढ़ा चुनाव खर्च
 
कोविड-19 की वजह से इस बार पर्याप्त इंतजाम के कारण चुनाव खर्च में 131 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान है। विभागीय सूत्रों के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव का बजट 625 करोड़ रुपए का बनाया गया है। इसमें एक बड़ी राशि कोरोना से सुरक्षात्मक व्यवस्था पर खर्च की जाएगी। इनमें चुनाव की व्यवस्था में लगे लगभग 6 लाख कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क व सैनिटाइजर की व्यवस्था शामिल है। इस बार सुरक्षाबलों एवं मतदानकर्मियों को भी बूथ तक लाने व ले जाने में तमाम सुरक्षात्मक उपाय अपनाने होंगे।
 
पिछले चुनाव की तुलना में इस बार भारी संख्या में बस, ट्रक, एसयूवी व अन्य वाहनों की जरूरत होगी। एक विभागीय अधिकारी ने बताया कि मतगणना की प्रक्रिया के दौरान पोलिंग एजेंट व चुनावकर्मियों के बीच उचित सोशल डिस्टेंशिंग बनाए रखने के लिए मतगणना केंद्र भी बड़े आकार का होगा। फिर बूथों की संख्या में करीब 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। मतदान केंद्रों की संख्या 65 हजार से बढ़कर 1 लाख हो गई है। इन वजहों से खर्च में काफी इजाफा होना तय है। 2015 में यह राशि महज 270 करोड़ रुपए थी।
 
कोरोना संक्रमण के इस दौर में निरापद तरीके से चुनाव संपन्न कराना काफी कठिन है। मतदान का प्रतिशत क्या होगा, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है और यही आयोग की चिंता का कारण भी है। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक किसी भी स्तर पर थोड़ी-सी चूक भारी पड़ सकती है। वर्चुअल दौर में चुनाव का वह माहौल भी नहीं बन पाया है किंतु कोरोना के साथ ही जीवन ने जब रफ्तार पकड़ ली है तो बेहतर बूथ प्रबंधन के साथ चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

FCRA: मोदी सरकार ने 6 सालों में क्या NGO के लिए एक मुश्किल दौर बनाया है?