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विटामिन डी की कमी को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है

भारत में विटामिन डी की कमी को अब मौन महामारी कहा जाता है। इससे देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास पर लम्बे समय के लिए असर हो सकता है।

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DW

, रविवार, 23 फ़रवरी 2025 (07:53 IST)
प्रेरणा देशपांडे
आत्महत्या के विचारों से पीड़ित लगभग 60 फीसदी लोगों में एक बात समान है: विटामिन डी की ​​कमी। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की एक नई रिपोर्ट बताती है कि विटामिन डी की कमी को अब तक जितना माना गया था उससे ज्यादा हानिकारक हो सकती है।  यह मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और आत्महत्या की प्रवृत्तियों को और बढ़ा सकती है। 
 
भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां लोगों में विटामिन डी की कमी सबसे अधिक है। टाटा 1एमजी लैब्स के 2023 के आंकड़ों से पता चलता है कि हर चार में से तीन भारतीय, यानी करीब 76 फीसदी लोग, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा सूरज की रोशनी पाने वाले देशों में शामिल होने के बावजूद क्यों यहां "विटामिन डी" की कमी की समस्या इतनी बड़ी है?
 
विटामिन डी की कमी बनी मौन महामारी 
रिसर्च रिपोर्ट बताती है हमारी खाने-पीने की आदतें और संस्कृति से जुड़े कुछ तौर तरीके इसके लिए जिम्मेदार हैं। देश में ऐसे लोगों की संख्या बड़ी है जो मछली, अंडे की जर्दी और फोर्टिफाइड डेयरी जैसे विटामिन डी से भरपूर चीजों को अपने आहार में शामिल नहीं करते। इसके अलावा, पारंपरिक पहनावा भी अक्सर धूप को सीधे त्वचा तक पहुंचने नहीं देता। यह कमी पूरे देश में हुई है, लेकिन शहरों में स्थिति और गंभीर है। इसके कारण हैं प्रदूषण, बदलती जीवनशैलियां, सनस्क्रीन का बढता इस्तेमाल और सस्ते सप्लीमेंट्स की कमी। शहरी इलाकों में पर्याप्त धूप भी विटामिन डी के पर्याप्त स्तर में तब्दील नहीं होती क्योंकि लोग बाहर कम समय बिताने लगे हैं और हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। 
 
विटामिन डी का पर्याप्त स्तर सेहत के लिए बड़ा महत्वपूर्ण होता है, और इसकी कमी से प्रतिरक्षा तंत्र, उपापचय, हृदय स्वास्थ्य और समग्र स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकता है। चिंताजनक रूप से लोगों पर इसका बढ़ता असर और इसके बारे में कम जागरूकता होने की वजहों से भारत में विटामिन डी की कमी को अब "मौन महामारी" कहा जा रहा है।
 
दूसरी मौन महामारी
इस बीच, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं के चलते, एक और मौन महामारी की आखिर कार देश के लिए नीतियां बनाने वालों का ध्यान गया है, यह है मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट।
 
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहांस) के रिसर्चरों की एक रिपोर्ट से पता चला है कि कॉलेज के छात्रों में अवसाद, चिंता और आत्महत्या के विचार परेशान करने वाले स्तर पर हैं। इस परिस्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसमे शामिल हैं नेशनल वेलबीइंग कॉन्क्लेव जो केंद्र सरकार के जरिए हो रहा है। इसके अलावा कई और कार्यक्रम हैं जो आईआईटी ने शुरू कराए हैं।
 
लेकिन और कोशिशें जरूरी हैं क्योंकि यह संकट काफी बड़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में 115 से ज्यादा छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई है। आत्महत्या के विचारों में विटामिन डी की कमी की भूमिका पर आए नए आंकड़ों के मद्देनजर सवाल उठता है: क्या देश में चल रहीं दोनों मौन महामारियों के बीच कोई अंतर्संबंध हो सकता है?
 
आगे का रास्ता
विटामिन डी और समग्र मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध है, कम से कम यह बात तो अनुसंधान साफ दिखाता है। रिसर्चर यह सलाह देते हैं कि विटामिन के स्तर की नियमित जांच होनी चाहिए, और सस्ती सप्लीमेंट्स और भरपूर पोषण वाली खाने पीने की चीजें मुहैया कराई जानी चाहिए। रिसर्चरों का कहना है कि ऐसे कदम भारत में विटामिन डी की कमी पूरा करके देश के सार्वजनिक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं। देश में चल रहे स्वास्थ्य की समस्याओं पर तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो लंबे समय के लिए देश कि उत्पादकता और प्रगति पर भी इनका असर हो सकता है।

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