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रैंकिंग की परवाह न करें तो फिर क्या करें

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, बुधवार, 28 अगस्त 2019 (12:00 IST)
प्रतीकात्मक चित्र
आईआईटी बंबई के निदेशक शुभाषीश चौधरी का कहना है कि आईआईटी वालों को रैंकिग की चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन निदेशक ने ये नहीं बताया कि अगर वे रैकिंग की चिंता नहीं करेंगे तो क्या देखकर दाखिला लेंगे। छात्रों की चिंता है कि रोजगार की क्या गारंटी होगी, क्या देखकर संस्थानों को सरकारी और गैर सरकारी और कॉरपोरेट फंडिंग मिल पाएगी और इन्स्टीट्यूट ऑफ एमिनेन्स (आईओई) का दर्जा मिल सकेगा। क्योंकि ये कुछ सच्चाइयां हैं जो रैंकिंग से जुड़ी हुई हैं।
 
आईआईटी निदेशक चौधरी के मुताबिक रैंकिंग के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करते रहने के बजाय खुद को बेहतर बनाने के लिए मेहनत करते रहनी चाहिए। आईआईटी खड़गपुर के 69वें स्थापना दिवस में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल आईआईटी बंबई के निदेशक ने कहा कि प्रौद्योगिकी संस्थानों को रोजगार पैदा करने, नयी कंपनियां बनाने, उद्योग और अकादमिक जगत की खाई को पाटने और समाज से एक जुड़ाव निर्मित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उनके मुताबिक आईआईटी क्या कर रही है इसका जवाब इसमें निहित है कि उनके छात्र और एलुमनाई क्या कर रहे हैं।
 
काश निदेशक, रैंकिंग्स से जुड़ी अन्य सच्चाइयों से भी रूबरू करा पाते। वो बेशक रैंकिंग को लेकर संस्थानों की जरूरतों और विवशताओं को समझते होंगे और शायद वो इस विवशता की सख्त दीवार को तोड़ने का ही आह्वान अपने साथी संस्थानों से कर रहे हों, या छात्रों को रैंकिंग की बंद गली से बाहर सोच सकने का माद्दा रखने की ओर इशारा कर रहे हों। लेकिन चारों ओर रैंकिंग को लेकर जैसा हाहाकार है उसमें उनकी बात की गंभीरता को समझा जाएगा, कहना कठिन है। दिलचस्प ये है कि खुद आईआईटी बंबई को इस साल क्यूएस की विश्व रैंकिग में टॉप 200 संस्थानों में स्थान मिला है। और इसके लिए पिछले दिनों भारतीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक आईआईटी बंबई के दीक्षांत समारोह में संस्थान को बधाई भी दे चुके हैं।
 
रैंकिंग का ये पूरा माजरा ही विसंगति, विरोधाभास और असमंजस से भरा नजर आता है। यूजीसी ने बीस ऐसे संस्थानों की सूची जारी की है जिन्हें इन्स्टीट्यूट्स ऑफ एमीनेंस (आईओई) का दर्जा मिला है। इनमें से 10 सरकारी हैं और 10 निजी। लेकिन इनकी संख्या 30 किए जाने पर विचार चल रहा है। बताया गया है कि "पारदर्शी” और "सत्यापन योग्य” मापदंडों के आधार पर ऐसे संस्थान चयनित होंगे। सरकार का उच्च शिक्षा-तंत्र कहता है कि आईओई में वे संस्थान शामिल नहीं किए जाएंगें जो किसी भी वैश्विक या राष्ट्रीय रैंकिंग में अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज करा पाते हैं। यानी रैंकिंग होगी तभी ध्यान जाएगा तभी विशिष्टता और श्रेष्ठता का दर्जा भी नसीब होगा और तभी वित्तीय और दूसरे संरचनागत संसाधन मुहैया कराए जाएंगें। इसका अर्थ क्या ये है कि रैंकिंग ही श्रेष्ठता की सूचक है।
 
अब शिक्षा की सरकारी मशीनरी के इस फैसले के साए में आईआईटी निदेशक के बयान को कैसे समझें। रैंकिंग की चाहत से आगे उसकी अनिवार्यता की बात हो रही है। और रैंकिंग की ये मांग पूरे शिक्षा ढांचे में पैबस्त है। स्कूली नतीजों से लेकर स्कूलों के प्रदर्शन, शिक्षा बोर्डों की सफलता विफलता, आगे चलकर इंजीनियरिंग और डॉक्टरी, लॉ, प्रबंधन, सिनेमा, मीडिया फैशन या सोशल साइंसेस या कोई और क्षेत्र- हर जगह रैंकिंग में अव्वल रहने या श्रेष्ठता की होड़ मची हुई है।
 
स्कूलों में दाखिलों से लेकर, सीए, नीट और जेईई की तैयारियों के लिए भयानक तेजी से फैल चुके कोचिंग संस्थानों का पूरा बाजार रैंकिंग पर चल रहा है। रैंकिंग्स के बूते जब सर्वश्रेष्ठ अंकों वाले छात्रों का एक हिस्सा आईआईटी में दाखिला लेता है तो वो भी रैंकिंग देखकर ही आता है। पत्र-पत्रिकाओं में विशेष परिशिष्ट और अंक निकाले जाते हैं। शैक्षणिक, प्रौद्योगिकीय, प्रबंधकीय या चिकत्सकीय या किसी अन्य क्षेत्र के निजी संस्थान अखबारों और पत्रिकाओं और टीवी चैनलों को अपने विज्ञापनों से पाट देते हैं।
 
यूजीसी की ओर से जारी एमीनेंट के दर्जाधारी संस्थानों में आईआईटी बंबई पहले आईआईटी दिल्ली, आईआईएससी तीसरे और आईआईटी मद्रास चौथे और आईआईटी खड़गपुर पांचवे नंबर पर है। इनमें से क्यूएस 2020 की विश्व रैंकिंग में आईआईटी बंबई 152वें, दिल्ली 182, मद्रास 271वें और खड़गपुर 281वें नंबर पर है। क्यूएस 2019 की राष्ट्रीय रैंकिंग में ये चारों आईआईटी क्रमशः पहले, चौथे, तीसरे और पांचवें नंबर पर हैं। दूसरे नंबर पर आईआईएससी बंगलौर है। इससे आगे सरकारी और निजी विश्वविद्यालय आते हैं जो विश्व रैंकिंग में 400 और 500 से नीचे हैं। लेकिन राष्ट्रीय रैंकिंग में उनके नंबर पहले 10 या पहले 20 में तो आ ही जाते हैं।
 
हाल में एक रैंकिंग हैकररैंक नाम के एक टेक्निकल हाइरिंग प्लेटफॉर्म की ओर से आई थी। जिसमें प्रॉब्लम सॉल्विंग कैटगरी में एशिया प्रशांत क्षेत्र की सबसे टॉप संस्थान आईआईटी गुवाहाटी को आंका गया था। भाषाई दक्षता की श्रेणी में वेल्लोर इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी, डाटा संरचना ज्ञान में भी वही और कम्प्यूटर विज्ञान में आईआईटी कानपुर अव्वल पाया गया। पहली दो श्रेणियों में दूसरे नंबर पर आईआईटी मद्रास, तीसरे पर कानपुर और चौथी श्रेणी में गुवाहाटी दूसरे नंबर पर था।
 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) भी अपनी सालाना रैंकिंग जारी करता है। 2019 की इसकी रैंकिंग में आईआईटी मद्रास पहले नंबर पर है, दूसरे नंबर पर आईआईएससी है, तीसरे, चौथे, पांचवे और छठे नंबर पर क्रमशः आईआईटी दिल्ली, बंबई, खड़गपुर और कानपुर हैं। आठवें पर आईआईटी रुड़की और नौवें पर आईआईटी गुवाहाटी है। आईआईटी से इतर जेएनयू सातवें और बीएचयू दसवें नंबर पर है। आंकड़े देने का आशय ये है कि किसी भी रैंकिग प्लेटफॉर्म को देखें तो एक से लेकर दस तक अधिकांश आईआईटी का बोलबाला है।
 
रैंकिंग सिस्टम को स्वस्थ प्रतियोगिता के लिए जरूरी बताया जाता है लेकिन आंख मूंदकर रैंकिंग के "प्रताप” के आगे सर नवाने की प्रवृत्ति भी सही नहीं। इसीलिए आईआईटी के ही एक वरिष्ठ अकादमिक की ओर से रैंकिंग की अवधारणा से प्रभावित या विचलित न होने की अपील से एक तसल्ली तो मिलती ही है कि अंततः मुनाफे, होड़ और कॉरपोरेटी हितों का पोषण करने वाले इस प्रेत का प्रतिकार संभव है।
 
रिपोर्ट शिवप्रसाद जोशी

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