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नदियों से रेत निकालने में मरते मजदूर

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, शुक्रवार, 21 जुलाई 2017 (12:25 IST)
रेत के अवैध खनन में मजदूरों की मौत हो रही है वहीं नदियों और खाड़ियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। वहीं स्थानीय पुलिस रेत के गैर कानूनी खनन की बात से इंकार करती आई है।
 
गर्मियों की उमस भरी सुबह में बलराम राउत मुम्बई के बाहरी इलाके में हिचकोले खाती नाव के पास खड़े हैं। वह इंतजार कर रहे हैं कि सुबह हो और वह रेत की खुदाई शुरू कर सके।
 
कुछ मिनटों बाद वह वसई की खाड़ी में गले तक डूबे हुए थे। यहां पानी में जहरीले रसायन और उद्योगों से निकला कचरा तैरता रहता है। कई बार तो स्थिति ऐसी भी होती है कि उसी पानी में साथी मजदूरों की लाश भी तैर रही होती है।
 
भारतीय अधिकारी और रेत निकालने में लगे कर्मचारी गैरकानूनी खनन की बात को पूरी तरह नकार रहे हैं। हालांकि कुछ समाचार एजेंसियों ने इस बारे में खबर दी है कि खनन मजदूर निर्माण क्षेत्र में बढ़ती रेत की मांग पूरी करने के लिए अपनी जान भी खतरे में डाल रहे हैं।
 
हालांकि, यह कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 15 करोड़ डॉलर की रेत अवैध तरीके से निकाली जा रही है।  इनमें गुजरात और महाराष्ट्र प्रमुख राज्य हैं। मुम्बई, ठाणे और आस पास के गावों में दो महीने की छानबीन के बाद मालूम चला कि पिछले एक साल में लगभग दो लोगों की मौत रेत के खनन के दौरान हुई और इसके पहले के सालों में भी कई मौतें हुई हैं और किसी भी मामले में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी है।
 
27 साल के राउत ने कहा, "मुझे डर नहीं लगता। पानी के भीतर बस मेरी एक ही चिंता है कि मुझे अच्छी रेत मिल जाए।" राउत उन 75,000 लोगों में से हैं जो भारत के सबसे गरीब इलाकों में से हैं और मुम्बई की वसई की खाड़ी के इलाके से रेत का अवैध खनन करते हैं। ये लोग रेत निकालने के लिए लगभग 40 फीट गहरे पानी में उतरते हैं। यहां पानी एकदम काला और गंदा है और ये सिर्फ एक लोहे के सरिये के सहारे 12 मीटर पानी में लोहे की बाल्टी लेकर उतर जाते हैं।
 
हलांकि भारत में कानूनी तौर पर सक्शन पंप की मदद से नदियों से रेत का खनन किया जाता है और उसकी तुलना में इस खनन की मात्रा बहुत अधिक नहीं है। हालांकि भारत में तेजी से बढ़ते शहरों और निर्माण क्षेत्र में बढ़ती रेत की मांग की वजह से इस तरह की गैरकानूनी खनन प्रक्रिया जारी है।
 
रेत का इस्तेमाल घरों के फर्श, छत और दीवार बनाने के लिए भी किया जाता है। खासतौर पर मुम्बई जैसे इलाके में जहां हर दिशा में कोई न कोई घर या गगनचुंबी इमारत बन रही है।
 
अनगिनत अदालती याचिकाओं के साथ भारत के ज्यादातर हिस्सों में रेत खनन को अवैध घोषित किया गया है। इन याचिकाओं में रेत खनन से समुद्र तटों, समुद्री जीवन और रेत भंडार के लिए पैदा होने वाले खतरों की बातें कही गयी हैं। गैरकानूनी खनन की वजह से खाड़ी और नदियों में असमान गहराई बन सकती है जिसे बुरे परिणाम हो सकते हैं।
 
भारत में तथाकथित "रेत माफिया" व्यापारियों का एक नेटवर्क है, जिनके राजनीतिक व्यक्तियों, अपराधियों और अन्य व्यापारियों से घनिष्ठ संबंध हैं, जो इन सबका सहयोग संरक्षण और हिंसा में लेते हैं। 
 
इस काम में जोखिम होने के बावजूद रेत निकालने वाले मजदूर लगातार यह काम कर रहे हैं। एक पूरी नाव रेत और बजरी निकालने की कीमत 1 हजार रुपए है जो भारत में मिलने वाली औसत दिहाड़ी से कई गुना अधिक है। आम तौर पर भारत में एक मजदूर को दिनभर काम करने की मजदूरी 270 रुपए मिलती है। इसी रेत को साफ करके पांच हजार रुपए कीमत तक में मकान बनाने के लिए आगे बेचा जाता है।
 
इस गैर कानूनी खनन ने नदियों-समुद्रों और मजदूरों के साथ साथ उन लोगों के लिए खतरा पैदा कर दिया है जो इसके खिलाफ काम कर रहे हैं। माफिया के हमलों में हाल ही में मध्य प्रदेश में एक पुलिस कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हुआ, वहीं राजस्थान में एक पुलिस कर्मचारी की हत्या कर दी गयी।
 
अप्रैल माह में कर्नाटक में अवैध खनन की एक छापेमारी में एक जिला प्रमुख पर हमला किया गया था। इसी महीने में उत्तर प्रदेश के एक पुलिस कर्मचारी ने जब अवैध खनन की रेत ले जा रहे ट्रक को रोकना चाहा तो वह उसे लगभग कुचलते हुए निकल गया। दूसरी तरफ हाथ से रेत का खनन करने वाले मजदूरों का कहना है कि रेत के इस तरह के खनन को कानूनी घोषित किया जाए। उनका तर्क है कि इस तरह के खनन से वैसे नुकसान नहीं है जो सक्शन पंप से होते हैं।
 
हालांकि इस मामले में आलोचकों का कहना है कि रेत के अवैध ट्रकों के पकड़े जाने पर खनन मालिकों को भारी फाइन चुकाना पड़ता है और इसीलिए वे हाथ से होने वाले इस तरह के खनन को कानूनी घोषित करना चाहते हैं।  इस पूरी प्रक्रिया में सबसे चुनौतीपूर्ण स्थिति यह है कि स्थानीय पुलिस मजदूरों की मौत और अवैध खनन की बात को मानने से पूरी तरह इंकार कर रही है। 
- एसएस/एनआर (रॉयटर्स)


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