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पर्दे में इमरान की दुल्हनिया

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, मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018 (11:54 IST)
सबसे पहले तो इमरान खान को तीसरी शादी पर बधाई। शादी की तस्वीर देखी। लेकिन दुल्हन का चेहरा नहीं देख पाए। तो क्या पाकिस्तान को बदलने निकले इमरान खान खुद बदल गए हैं या फिर पाकिस्तान की सियासत ने उन्हें बदल दिया है?
 
कहते हैं उम्र भले ही बढ़ जाए लेकिन दिल जवान होना चाहिए। इमरान खान पर यह बात बिल्कुल फिट बैठती है। दिल भी जवान है और दिखने में भी जवान हैं। यह शायद पठान कद काठी का कमाल है, हालांकि वे 65 साल के हो चुके हैं। दुनिया में ऐसे कम लोग होते हैं जो 60 की उम्र पार करने के बावजूद किसी देश के 'मोस्ट एलिजिबल बैचलर' हों। आज भी कप्तान काला चश्मा पहनकर निकलें तो कहीं भी 'इम्मू इम्मू' का शोर मच जाता है।
 
इमरान खान की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह यह है कि उन्होंने पाकिस्तान को 1992 में क्रिकेट का वर्ल्ड चैंपियन बनाया है। वह इसलिए भी अहम हो जाते हैं कि उनके बाद कोई यह कारनामा दोबारा नहीं कर पाया। अकसर नकारात्मक खबरों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले पाकिस्तान के लोगों को निश्चित तौर पर यह बात खुशी देती है कि वे भी वर्ल्ड चैंपियन रहे हैं। और उन्हें यह खुशी देने वाले इमरान खान हैं।
 
इसलिए जब इमरान खान ने सियायत में कदम रखा तो नौजवान उनके साथ हो लिए। 'नया पाकिस्तान' बनाने के उनके नारे पर लोगों ने भरोसा किया। नया पाकिस्तान तो नहीं बना, लेकिन सियासत में इमरान खान 'पुराने' होते गए। दिलचस्प बात यह है कि इमरान खान को भी 'पुराना पाकिस्तान' पसंद आने लगा है।
 
शायद यही वजह है कि कभी जमैमा खान जैसी शख्सियत से शादी रचाने वाले इमरान खान के बगल में आज ऐसी दुल्हन बैठी है, जो दुनिया को अपना चेहरा भी नहीं दिखाना चाहती। इस सिलसिले में धार्मिक आजादी का तर्क दिया जा सकता है। लेकिन उसके विरोध में यह तर्क भी उतनी ही मजबूती से उठ सकता है कि इमरान खान पर भी कट्टरपंथी रंग चढ़ता जा रहा है। और बात तब और अहम हो जाती है जब इसी साल पाकिस्तान में चुनाव होने हैं।
 
सऊदी अरब और ईरान की महिलाएं जहां पर्दे से पिंड छुड़ाने के लिए जूझ रही हैं, वहीं इमरान खान की शादी की फोटो पर्दे को थोपती नजर आती है। आज नहीं तो कल बुशरा मानेका का चेहरा सामने आ ही जाएगा और कई लोग तो कुछ तस्वीरें पोस्ट भी कर रहे हैं। इनमें कौन सी तस्वीर असली और कौन सी नकली, यह तो इमरान खान जानें।
 
बहरहाल, भारत में जिस तरह राहुल गांधी पर 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की शरण में जाने के इल्जाम लगते हैं, कुछ वैसा ही मामला इमरान खान का भी है। एक पर्दानशीं से शादी करने से पहले उन पर तालिबान के प्रति नरम रवैया अपनाने के इल्जाम भी लगते रहे हैं। सीना ठोंककर खुद को "फादर ऑफ तालिबान" कहने वाले मौलाना समी उल हक से इमरान की दोस्ती है।
 
वैसे देखा जाए तो बीसियों साल से इमरान खान सियासत में दौड़ धूप कर रहे हैं, लेकिन अभी तक प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं मिली है। इस बार भी इमरान खान उम्मीद से हैं। इमरान के चाहने वाले तो उन्हें वोट देंगे ही लेकिन उनकी नई शादी से वे लोग भी खुश होंगे जो वैलेंटाइन डे का विरोध करते हैं, जो दिन रात समाज में बढ़ते पश्चिमी असर की चिंता में दुबले हुए जाते हैं और जो शरिया के पैरोकार हैं। लेकिन इमरान खान अगर इन लोगों को खुश करना चाहते हैं तो इसका मतलब है कि पाकिस्तान को बदलने निकले इमरान खान को ही पाकिस्तान ने सचमुच बदल दिया है।
 
अशोक कुमार

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