भारत में कोरोना काल के दौरान डोलो 650 का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर हुआ। यह दवा बुखार के इलाज में कारगर बताई जाती है। अब इस दवा को बनाने वाली कंपनी को लेकर चौंकाऊ बातें सामने आई हैं। दवा निर्माता पर आरोप लगाए गए हैं कि ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए उसने डॉक्टरों को प्रभावित कर यह दवा लिखवाई। इसके लिए कथित तौर पर डॉक्टरों को एक हजार करोड़ रुपए के उपहार बांटे गए।
एक गैर-सरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने डोलो टेबलेट बनाने वाली चर्चित फार्मा कंपनी पर डॉक्टरों को उपहार देने के लिये 1000 करोड़ रुपए खर्च करने का आरोप लगाया है।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 13 जुलाई को डोलो 650 टेबलेट के निर्माताओं पर "अनैतिक तरीकों" में लिप्त होने का आरोप लगाया था। आयकर विभाग ने 6 जुलाई को 9 राज्यों में माइक्रो लैब्स लिमिटेड के 36 परिसरों पर छापेमारी के बाद यह दावा किया था।
फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से वरिष्ठ वकील संजय पारिख और अपर्णा भट सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच के सामने पेश हुए। पारिख ने आरोप लगाया कि डोलो टैबलेट बनाने वाली कंपनी ने डॉक्टरों को मुफ्त उपहार बांटे। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद वह इस तरह के और तथ्यों को अदालत के संज्ञान में लाना चाहेंगे।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने भी कोविड होने पर यही दवा ली थी। उन्होंने कहा, "यह एक गंभीर मुद्दा है और हम इस पर गौर करेंगे।"
क्या है नियम
साल 2002 में भारत सरकार ने एलोपैथी के डॉक्टरों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट जारी किए थे। जिसमें कहा गया था कि विज्ञापन के जरिए मरीजों को आकर्षित नहीं किया जा सकता है। मतलब डॉक्टर अपना प्रचार नहीं कर सकते हैं। डॉक्टरों के लिए आचार संहिता के मुताबिक मरीजों को दवा, डायग्नोस्टिक और अन्य उपचारों के लिए रेफर करना अनैतिक कार्य है। आचार संहिता के मुताबिक फार्मा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले तोहफे, मनोरंजन, यात्रा सुविधाएं, टिकट या धन पर रोक है।
दिल्ली के कई मशहूर डॉक्टर फार्मा कंपनियों के साथ इस तरह के संबंध पर बोलने से कतराते हैं। डीडब्ल्यू हिंदी ने डोलो-650 वाले मामले को लेकर कई डॉक्टरों से सवाल किए लेकिन अधिकतर डॉक्टरों ने सवालों को टाल दिया।
नोएडा के एक बड़े अस्पताल के डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि डॉक्टर अपने ज्ञान और मेडिकल दिशानिर्देश के हिसाब से सबसे बेहतर दवा लिखता है। वह कहते हैं भारत सरकार के नियमों के मुताबिक डॉक्टरों को सॉल्ट लिखना चाहिए ना कि कोई ब्रांड।
इस डॉक्टर ने समझाया कि डोलो 650 के मामले में डॉक्टरों को पैरासिटामोल लिखना चाहिए, इसमें जेनेरिक दवा भी उपलब्ध है और अच्छे ब्रांड की दवा भी। इस डॉक्टर का कहना है कि बेहतर है कि मरीजों के लिए डॉक्टर सॉल्ट लिखें।
उन्होंने बताया कि फार्मा कंपनी से किसी तरह का लाभ लेना, टिकट लेना या कॉन्फ्रेंस कराना एक तरह का भ्रष्टाचार माना जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर कोई डॉक्टर ऐसा करता है तो यह पक्षपात माना जाएगा। उनका कहना है कि मरीजों को यह अधिकार होना चाहिए कि वह किस ब्रांड की दवा खरीदते हैं।
साथ ही यह डॉक्टर सलाह देते हैं कि शुगर, हार्ट और ब्लड प्रेशर की जरूरी दवाइयों की कीमत सरकार को निर्धारित करनी चाहिए। उनका कहना है कि ऐसा नहीं है कि सभी दवा कंपनियां गलत कर रही हैं लेकिन दवा कंपनियों को यह सुनिश्चित करवाना चाहिए कि वह गलत मार्केटिंग न करे।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई 29 सितंबर को करेगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दस दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।