भारत सरकार एक खास तरह के हेल्मेट को बढ़ावा दे रही है जो प्रदूषण को फिल्टर कर सकता है। एक भारतीय इंजीनियर ने इसे अपने घर में ही बनाया था।
गर्मियां खत्म होते-होते दिल्ली में सर्दियों का डर बढ़ना शुरू हो जाएगा। उत्तर भारत, खासतौर पर दिल्ली के आसपास सर्दियां सिर्फ मौसम का बदलाव नहीं होतीं। वे प्रदूषण की एक ऐसी भयानक चादर बनकर आती हैं जो खांसी से लेकर दमे तक तमाम खतरनाक बीमारियों के रूप में लोगों को ढक लेती है। यही वजह है कि लोग सर्दियां आते ही उस प्रदूषण से बचने का भी प्रबंध करने लगते हैं। इसी सिलसिले में भारत सरकार ने भी एक पहल की है।
भारत सरकार एक खास तरह के हेल्मेट को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है जो लोगों को खतरनाक दूषित हवा से बचा सकेगा। सरकार ने इस खास हेल्मेट में करोड़ों रुपये का निवेश किया है। अमित पाठक नामक एक उद्यमी ने यह हेल्मेट तैयार की है जो शेलियोस टेक्नोलैब्स नामक एक स्टार्टअप कंपनी के तहत बनाया जा रहा है।
पाठक ने 2016 में इस हेल्मेट पर काम करना शुरू किया था। उन्होंने अपने घर के अहाते में ही यह काम शुरू किया। वही साल था जब दिल्ली की दूषित हवा ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं। दिसंबर से फरवरी तक की ठंडी हवा, कुहासा, धुआं और वाहनों का धुआं मिलकर लोगों की जान का दुश्मन बन गया था, तब पाठक ने यह हेल्मेट बनाने पर काम करना शुरू किया।
पेशे से इलेक्ट्रिक इंजीनियर अमित पाठक बताते हैं, "घर और दफ्तर में तो आप एयर प्यूरीफायर लगा सकते हैं। लेकिन जो लोग बाइक पर सवारी करते हैं, उनके पास तो कोई सुरक्षा नहीं है।”
इस समस्या से निपटने के लिए पाठक की कंपनी ने एक ऐसा हेल्मेट डिजाइन किया जिसमें हवा साफ करने वाला यंत्र लगा है। हेल्मेट में एक फिल्टर और एक पंखा भी है। फिल्टर बदला जा सकता है और पंखा बैट्री से चलता है जो एक बार चार्ज होने पर छह घंटे तक काम करता है। उसे माइक्रोयूएसबी से चार्ज किया जा सकता है।
2019 में इस हेल्मेट की बिक्री शुरू हुई थी। पाठक बताते हैं कि एक निष्पक्ष एजेंसी ने दिल्ली की सड़कों पर इसका परीक्षण करने के बाद कहा है कि यह 80 फीसदी प्रदूषक तत्वों को छान सकता है। 2019 में हुई यह जांच कहती है कि हेल्मेट पहनने से फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले पीएम 2.5 पार्टिकल हवा के बाहर 43.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थे, हेल्मेट के अंदर सिर्फ 8.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गए।
ये प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 पार्टिकल बेहद जानलेवा होते हैं। अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि अति सूक्ष्म कणों का प्रदूषण पूरी दुनिया में लोगों की आयु-संभाविता (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) उम्र कम कर रहा है। अधिकतर जीवाश्म ईंधन से होने वाला यह प्रदूषण कम किया जाए पीएम तत्वों (पार्टिकुलेट मैटर) के स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्तर के अनुरूप रखा जाए तो दक्षिण एशिया में औसत व्यक्ति पांच साल और ज्यादा जिंदा रहेगा।
भारत का विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय कहता है कि यह हेल्मेट "बाइक सवारों के लिए ठंडी ताजा हवा का झोंका” है। दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में 35 भारत में हैं और देश की बड़ी आबादी को ताजा स्वच्छ हवा के झोंके की सख्त जरूरत है।
पाठक का मानना है कि यह हेल्मेट एक बड़ा मौका है। वह मानते हैं कि सालाना तीन करोड़ हेल्मेट की मांग वाले देश में ऐसे हेल्मेट का बड़ा बाजार बन सकता है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने कितनी बिक्री की है।
सस्ता करने की कोशिश
एक हेल्मेट की कीमत 4,500 रुपये जो सामान्य हेल्मेट से चार-पांच गुना ज्यादा है। इतनी महंगा हेल्मेट खरीदना हर भारतीय बाइक सवार के बस में नहीं है। एक और दिक्कत है इसका वजन। 1.5 किलोग्राम वजनी यह हेल्मेट आम हेल्मेट से भारी है।
हालांकि शेलिओस ने एक अन्य निर्माता के साथ साझेदारी की है ताकि हल्का रूप तैयार किया जा सके। फाइबर ग्लास की जगह वे लोग थर्मोप्लास्टिक का प्रयोग कर रहे हैं जिससे वजन भी घटे और निर्माण की लागत भी कम हो।
पाठक को उम्मीद है कि कुछ महीनों में ही यह हल्का हेल्मेट भी तैयार हो जाएगा। वह कहते हैं कि मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम आदि से भी लोगों ने उनके हेल्मेट में दिलचस्पी दिखाई है।
दुनिया में ज्यादा आबादी वाले लगभग सभी हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से ज्यादा है, लेकिन एशियाई देशों स्थिति सबसे खराब है। बांग्लादेश में इसका स्तर मानकों से 15 गुना, भारत में 10 गुना और नेपाल और पाकिस्तान में नौ गुना ज्यादा है।