चारु कार्तिकेय | सलाहुद्दीन जेन, दिल्ली से
52 साल की बिलकिस जहां दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में रहती हैं। वह उन लाखों मतदाताओं में से हैं, जिन्होंने कश्मीर के हालिया विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
बिलकिस खुश हैं कि लंबे अरसे बाद उन्हें अपने प्रदेश की विधानसभा में प्रतिनिधि चुनने का मौका मिला, लेकिन वह नहीं जानतीं कि चुनाव तो सफलतापूर्वक हो गए हैं, लेकिन इस विधानसभा के पास वो शक्तियां नहीं हैं जो पहले हुआ करती थीं।
नहीं होंगी आवश्यक शक्तियां
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत, प्रदेश की विधानसभा से उसकी पुरानी शक्तियों में से कई छीन ली गई थीं और उपराज्यपाल के हाथों में सौंप दी गई थीं। इनमें जमीन, पुलिस और सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसी महत्वपूर्ण शक्तियां शामिल हैं।
दिल्ली में भी ये शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं और इनकी कमी हर निर्वाचित सरकार को खलती है। ऐसे में यह चिंता बनी हुई है कि जम्मू-कश्मीर को छह सालों बाद चुनी हुई सरकार तो मिलने जा रही है, लेकिन इसके पास आवश्यक शक्तियां नहीं होंगी।
42 सीटें जीतकर नेशनल कॉन्फ्रेंस उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रही है। चार निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के साथ पार्टी की विधानसभा में स्थिति और भी मजबूत हो गई है, लेकिन शक्तियों के अभाव में उसकी सरकार कितनी मजबूत स्थिति में होगी इसपर संशय है।
पार्टी के प्रवक्ता इमरान नबी दर ने चुनाव नतीजे आने से पहले डीडब्ल्यू से कहा था कि उनकी राय में इस विधानसभा का दर्जा एक 'महिमामंडित नगरपालिका' से ज्यादा नहीं होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा था, "हम यह मंच भी छोड़ना नहीं चाहते हैं। 'महिमामंडित नगरपालिका' ही सही, लेकिन समीक्षकों की नजर हमेशा कश्मीर पर रहेगी। इस विधानसभा से जो बात निकलेगी, वो महत्वपूर्ण होगी।"
राज्य के दर्जे का इंतजार
हालांकि, कई लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा और तब शायद यह समस्या खत्म हो जाए। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की कानूनी वैधता को सही ठहराते हुए यह आदेश भी दिया था कि प्रदेश का राज्य का दर्जा जल्द ही बहाल किया जाए।
प्रदेश में बीजेपी के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ध्यान दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों खुद कह चुके हैं कि विधानसभा चुनाव होने के बाद जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश से वापस राज्य बना दिया जाएगा।
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जो शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं, वो मुख्यमंत्री के पास ट्रांसफर कर दी जाएंगी। यह कहना कि ऐसा नहीं होगा, सिर्फ प्रोपेगेंडा है।"
हालांकि यह कब होगा, इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत इस समय नजर नहीं आ रहा है। जानकारों का मानना है कि इस समय कश्मीर के लोगों के लिए बड़ी बात यही है कि सालों बाद उन्हें वोट डालने और अपने नुमाइंदे चुनने का मौका मिला।
शायद नहीं देते वोट
राजनीतिक विश्लेषक और कश्मीर के मामलों पर पूर्व वार्ताकार राधा कुमार ने डीडब्ल्यू से कहा कि कश्मीर के नेताओं और शायद आम लोगों के लिए भी यह चुनाव सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं थे। चुनाव और विधानसभा गठन की अहमियत को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया, "लोगों को मौका मिला है कि वो अपनी भी आवाज उठाएं। 2019 से तो ऐसा कोई भी मौका उन्हें मिला ही नहीं है।"
विधानसभा की कम हो चुकी शक्तियों के बारे में प्रदेश के सभी नेता तो बखूबी जानते हैं, लेकिन शोपियां की बिलकिस का उदाहरण यह दिखाता है कि शायद सभी मतदाताओं को इसके बारे में जानकारी नहीं है। यह जानकारी पाकर बिलकिस नाराज होकर कहती हैं, "इन नेताओं को अगर पहले से पता था कि इनके पास शक्तियां नहीं होंगी, तो ये हमारे घर वोट मांगने क्यों आए थे? अगर मुझे पहले से यह बात पता होती, तो मैं वोट नहीं डालती।"