मां के दूध और आलू के चिप्स के बीच क्या संबंध है? ज्यादातर लोग कहेंगे कोई संबंध नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि इन दोनों के तार इंसान की स्मृति से जुड़ते हैं।
चिप्स या जंक फूड खाना इंसान की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इंसान चिप्स, फ्रेंच फ्राइस, आलू के पकोड़ों, मिठाई या केक की तरफ खिंचा चला जाता है। ऐसा क्यों होता है? वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक ये चीजें वसा और कार्बोहाइड्रेट से लबालब होती हैं। हमारा मस्तिष्क इस बात को भली भांति जानता है, इसीलिए जब ये चीजें सामने आती हैं तो मुंह में पानी आने लगता है।
प्रकृति से मिलने वाले ज्यादातर आहारों में ऐसी कोई भी चीज नहीं जो पूरी तरह फैट और कार्बोहाइड्रेट से भरी हो। आलू, गेंहू, मक्का या धान जैसी चीजों में कार्बोहाइड्रेट तो बहुत होता है लेकिन फैट नहीं होता। वहीं बीजों में फैट बहुत होता है पर कार्बोहाइड्रेट बहुत कम होता है। सिर्फ एक ही प्राकृतिक आहार है जिसमें ये दोनों पोषक तत्व खूब भरे होते हैं और वह है, मां का दूध।
जर्मन शहर कोलोन के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर मेटाबॉलिज्म रिसर्च के वैज्ञानिकों के मुताबिक, मां के दूध में मौजूद फैट और कार्बोहाइड्रेट की जानकारी को शिशु का मस्तिष्क स्टोर कर लेता है। उम्र बढ़ने के बावजूद मस्तिष्क को पता रहता है कि तेज पोषण के लिए फैट और कार्बोहाइड्रेट का एक साथ मिलना कितना जरूरी है। बड़े होने के बाद जब हम चिप्स या जंक फूड खाते हैं तो दिमाग फिर से सक्रिय हो जाता है और इस तरह के आहार को मां के दूध की तरह सुपर फूड की श्रेणी में रख देता है।
लेकिन स्मृति का यही खेल आज मोटापे की समस्या पैदा कर रहा है। बहुत ज्यादा फैट और कार्बोहाइड्रेट वाले आहार से टाइप 2 डाइबिटीज का खतरा होता है। माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सलाह देते हुए कहते हैं कि चिप्स से दूरी बनाए रखाना ही बेहतर है क्योंकि दिमाग पूरा पैकेट खत्म करने तक हमें एक और, एक और करके उकसाता रहेगा।
(डायबिटीज बहुत ही चुपचाप आने वाली बीमारी है। लेकिन अगर आप अपने शरीर और व्यवहार पर ध्यान देंगे तो आप इससे बचाव कर सकते हैं।)