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पाकिस्तान में इतना प्राचीन भव्य मंदिर

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, मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017 (15:05 IST)
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जिला चकवाल में कोहिस्तान नमक पर्वत श्रृंखला में कटासराज नाम का एक गांव है जो हिंदुओं के लिए बहुत ऐतिहासिक और पवित्र है। इसका जिक्र महाभारत में भी मिलता है।
नहीं रही हिंदू आबादी : कटासराज मंदिर के ये अवशेष चकवाल शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में हैं। बंटवारे से पहले यहां हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी रहती थी लेकिन 1947 में बहुत से हिंदू भारत चले गए। इस मंदिर परिसर में राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर खास तौर से देखे जा सकते हैं।
 
कई मंदिर : कटासराज मंदिर परिसर में एक नहीं, बल्कि कम से कम सात मंदिर है। इसके अलावा यहां सिख और बौद्ध धर्म के भी पवित्र स्थल हैं। इसकी व्यवस्था अभी एक वक्फ बोर्ड और पंजाब की प्रांतीय सरकार का पुरातत्व विभाग देखता है।
 
शिव के आंसू : हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब शिव की पत्नी सती का निधन हुआ तो शिव इतना रोए कि उनके आंसू रुके ही नहीं और उन्हीं आंसुओं के कारण दो तालाब बन गए। इनमें से एक पुष्कर (राजस्थान) में है और दूसरा यहां कटाशा है। संस्कृत में कटाशा का मतलब आंसू की लड़ी है जो बाद में कटास हो गया।
 
सबसे ऊंचे मंदिर से नजारा : कटासराज की ये तस्वीर वहां के सबसे ऊंचे मंदिर से ली गई है जिसमें मुख्य तालाब, उसके आसपास के मंदिर, हवेली, बारादरी और पृष्ठभूमि में मंदिर के गुम्बद भी देखे जा सकते हैं। बाएं कोने में ऊपर की तरफ स्थानीय मुसलमानों की एक मस्जिद भी है।
 
प्राकृतिक चश्मे : कटासराज की शोहरत की एक वजह वो प्राकृतिक चश्मे हैं जिनके पानी से गुनियानाला वजूद में आया। कटासराज के तालाब की गहराई तीस फुट है और ये तालाब धीरे धीरे सूख रहा है। इसी तालाब के आसपास मंदिर बनाए गए हैं।
 
पहाड़ी इलाके में मंदिर : कोहिस्तान नमक का इलाका छोटी-बड़ी पहाड़ियों से घिरा है। ऊंची पहाड़ियों पर बनाए गए इन मंदिरों तक जाने के लिए पहाड़ियों में होकर बल खाते पथरीले रास्ते हैं। इस तस्वीर में कटासराज का मुख्य मंदिर और उसके पास दूसरे भवन दिख रहे हैं।
 
दीवारों पर सदियों पुराने निशान : ये खूबसूरत कलाकारी एक हवेली की दीवारों पर की गई है जो यहां सदियों पहले सिख जनरल हरी सिंह नलवे ने बनवाई थी। इस हवेली के अवशेष आज भी इस हालत में मौजूद हैं कि उस जमाने की एक झलक बखूबी मिलती है।
 
नलवे की हवेली के झरोखे : सिख जनरल नलवे ने कटासराज में जो हवेली बनवाई, उसके चंद झरोखे आज भी असली हालत में मौजूद हैं। इस तस्वीर में एक अंदरूनी दीवार पर झरोखे के पास खूबसूरत चित्रकारी नजर आ रही है। कहा जाता है कि कटासराज का सबसे प्राचीन स्तूप सम्राट अशोक ने बनवाया था।
 
बीती सदियों के प्रभाव : इस तस्वीर में कटासराज की कई इमारतें देखी जा सकती हैं, जिनमें मंदिर भी हैं, हवेलियां भी हैं और कई दरवाजों वाले आश्रम भी हैं। इस तस्वीर में दिख रही इमारतों पर बीती सदियों के असर साफ दिखते हैं।
 
खास निर्माण शैली : कटासराज की विशिष्ट निर्माण शैली और गुंबद वाली ये बारादरी अन्य मंदिरों के मुकाबले कई सदियों बाद बनाई गई थी। इसलिए इसकी हालत अन्य मंदिरों के मुकाबले में अच्छी है। पुरातत्वविदों के अनुसार कटासराज का सबसे पुराना मंदिर छठी सदी का है।
 
धार्मिक महत्व : पुरातत्वविद् कहते हैं कि इस तस्वीर में नजर आने वाले मंदिर भी नौ सौ साल पुराने हैं। लेकिन पहाड़ी पर बनी किलेनुमा इमारत इससे काफी पहले ही बनाई गई थी। तस्वीर में दाईं तरफ एक बौद्ध स्तूप भी है।
 
सदियों का सफर : इस स्तूपनुमा मंदिर में शिवलिंग है। भारतीय पुरातत्व सर्वे की 19वीं सदी के आखिर में तैयार दस्तावेज बताते हैं कि कटासराज छठी सदी से लेकर बाद में कई दसियों तक हिंदुओं का बेहद पवित्र स्थल रहा है।
 
मूंगे की चट्टानें : कटासराज के मंदिरों और कई अन्य इमारतों में हिस्सों में मूंगे की चट्टानों, जानवरों की हड्डियों और कई पुरानी चीजों के अवशेष भी देखे जा सकते हैं।
 
शिव और सती का निवास : हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव ने सती से शादी के बाद कई साल कटासराज में ही गुजारे। मान्यता है कि कटासराज के तालाब में स्नान से सारे पाप दूर हो जाते हैं। 2005 में जब भारत के उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी पाकिस्तान आए तो उन्होंने कटासराज की खास तौर से यात्रा की थी।

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