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राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने की लिव-इन को बैन करने की मांग

हमें फॉलो करें राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने की लिव-इन को बैन करने की मांग
, शुक्रवार, 6 सितम्बर 2019 (10:50 IST)
अपने तर्कों के लिए विवाद में रहने वाले राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अब राज्य मानवाधिकार आयोग के प्रमुख हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद वह लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।
 
 
राजस्थान मानवाधिकार आयोग के मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं को गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकारों की बलि देनी पड़ती है। यही तर्क देते हुए आयोग ने राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है। आयोग का कहना है कि कानून के जरिए समाज में गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार महिलाओं के लिए सुरक्षित हो सकेगा।
 
राजस्थान के ह्यूमन राइट्स कमीशन के प्रमुख रिटायर्ड जस्टिस महेश शर्मा हैं। आयोग के एक और सदस्य जस्टिस प्रकाश तांतिया के साथ मिलकर शर्मा ने राज्य के मुख्य सचिव और अतिरिक्त सचिव को पत्र लिखकर कानून बनाने की मांग की है। खत की प्रतिलिपि केंद्र सरकार को भी भेजी गई और उससे भी मांग की गई है कि वह इस दिशा में कदम बढ़ाए।
 
आयोग का दावा है कि उसने इस मुद्दे पर कई पक्षों से सुझाव भी मांगे। सुझाव भेजने वालों में पुलिस और सिविल सोसाइटी के लोगों को भी शामिल किया गया। आयोग ने पूछा कि क्या लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए कोई कानून बनना चाहिए।
 
आयोग का कहना है कि शादी के बिना किसी पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने मूलभूत अधिकारों को पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर सकती है। ऐसे में राज्य सरकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे शादी के दायरे के बाहर ऐसे सहजीवन के प्रति जागरुकता अभियान चलाएं। आयोग का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वे तुरंत कदम उठाएं और एक कानून बनाकर लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाएं।
 
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनन और अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत मान्यता है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में कह चुका है कि वयस्क जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं। सर्वोच्च अदालत लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा के कानून के दायरे में भी ला चुकी है। मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में भी महिलाओं को घरेलू हिंसा एक्ट 2005 के तहत सुरक्षा मिलती है।
 
यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस शर्मा विवादों में हैं। भारत के प्रमुख न्यूज मीडिया एनडीटीवी के मुताबिक तीन साल पहले भी राजस्थान हाई कोर्ट से रिटायर होते समय शर्मा ने बेहद अवैज्ञानिक और बोशिदा बयान दिया था। शर्मा ने कहा, "मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है। वह मोरनी के साथ कभी सेक्स नहीं करता है। मोरनी मोर का आंसू निगलकर गर्भ धारण करती है।"
 
ओएसजे/एमजे (आईएएनएस, रॉयटर्स)

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