मलेरिया के खिलाफ लड़ाई को और आगे ले जाते हुए रिसर्चरों ने मलेरिया के विषाणु को खून में फैलने से पहले लिवर में ही मारने वाले अणु खोज निकाले हैं। जगी मलेरिया के प्रभावी इलाज की उम्मीद।
मलेरिया के खिलाफ अधिक प्रभावी हथियार की तलाश में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने बताया है कि वो ऐसा रास्ता खोज रहे है जिससे विषाणु को लिवर में ही मार दिया जाए। खून में फैलने से पहले ही वे इसे मार सकेंगे जिससे शरीर में बीमारी पैदा ना हो पाए।
रिसर्चरों का कहना है कि अभी तक इस बारे में ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन में औषध विज्ञान पढ़ाने वाली प्रोफेसर एलिजाबेथ विनजेलर का कहना है कि लिवर के स्तर पर काम करना बहुत मुश्किल है। समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमने पारंपरिक रूप से ऐसी दवाओं की तलाश की है जो मलेरिया का इलाज करें।"
अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित नवीनतम शोध के अनुसार वैज्ञानिकों ने लाखों मच्छरों को काट के उनके अंदर से परजीवी को हटा दिया। उसके बाद हर परजीवी को एक ट्यूब में रखा गया और अलग अलग रासायनिक यौगिक से इलाज किया गया। ऐसे पांच लाख प्रयोग किये गये। शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ अणु परजीवी को मारने में सफल थे।
लगभग छह साल तक चले प्रयोग के बाद रिसर्चरों ने ऐसे 631 उम्मीदवार अणुओं की पहचान की है जिनसे भविष्य में "रासायनिक टीका" विकसित किया जा सकेगा। यह एक ऐसा टीका होगा जिससे शरीर में एंटीबॉडी बन सकेंगे। मलेरिया पर एक प्रोग्राम चलाने वाले लैरी स्लटस्कर बताते हैं यह तो शानदार होता अगर ऐसी कोई दवा होती जो आप दिन में एक बार, एक ही समय पर देते और वो लिवर और खून में मौजूद सारे मलेरिया परजीवियों को मार देती, साथ ही जिसका असर तीन से छह महीने तक रहता। लेकिन अभी तो ऐसी कोई दवा नहीं है।
इलाज में कहां होती है गलती
फिलहाल मौजूद मलेरिया की दवाओं के साथ यह समस्या है कि उसकी कई खुराक लेनी पड़ती है। रिसर्चरों का मानना है कि खुराक की संख्या को कम करना अहम है। 'मेडिसिन फॉर मलेरिया वेंचर्स' के सीईओ डेविड रेड्डी का कहना है कि आज मिलने वाली कई दवाएं तीन दिनों में लेनी चाहिए। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि जब बच्चा दवा की पहली खुराक के बाद अच्छा महसूस करने लगता है और बुखार कम हो जाता है, तो माता-पिता बाकी के दो खुराक अपने बाकी बच्चों के लिए बचा लेते हैं। रेड्डी बताते हैं कि इसके दोहरा असर होता है। एक तो, बच्चा पूरी तरह से ठीक नहीं होता और दूसरा ये कि बच्चे के अंदर दवा के लिए प्रतिरोधक क्षमता बनने लगती है।
मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक एक छोटे परजीवी के कारण होता है। मादा मच्छर जब किसी व्यक्ति को काटते हैं तो इसके साथ ही वे मलेरिया परजीवी को फैलाते हैं। इसके बाद परजीवी लिवर में पहुंचता है और वहां अपनी संख्या बढ़ाने लगता है। कुछ ही हफ्तों में लिवर में परजीवियों की आबादी इतनी ज्यादा हो जाती है कि वो लिवर से निकल कर खून में दौड़ने लगते हैं।
क्यों चाहिए मलेरिया का टीका
संक्रमित व्यक्ति में कंपकंपी के साथ बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द शुरू हो जाता है। अगर इलाज ना कराया जाए तो संक्रमित व्यक्ति को एनीमिया, सांस लेने में कठिनाई और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। ऐसा ज्यादातर अफ्रीका में देखने को मिलता है जहां प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम से संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा हैं।
फिलहाल दुनिया भर में मलेरिया के लिए पौधे से मिलने वाले आर्टेमिसिनिन का इस्तेमाल होता है। रिसर्चर मानते हैं कि इसके लिए नए तरीकों और नई दवाओं को खोजे जाने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मानता है कि मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में दुनिया भर में नई कोशिशों की जरूरत है। 2016 के मुकाबले 2017 में मलेरिया के 20 लाख ज्यादा मामले सामने आए हैं। 2017 में मलेरिया ने चार लाख पैंतीस हजार लोगों की जानले ली, जिनमें से अधिकतर अफ्रीका में पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे।
दुनिया का सबसे पहला टीका 2019 में अफ्रीका के बच्चों पर आजमाया जाएगा। इसे आरटीएस, एस कहा जाता है, जिसकी चार खुराक लेने पर मलेरिया का खतरा करीब 40 प्रतिशत कम हो जाएगा। रिसर्च में अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी मलेरिया से पूरी तरह बचाने वाला कोई प्रभावी समाधान नहीं निकल सका है।