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बच्चों को कुपोषण से बाहर नहीं निकाल पा रहा भारत

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DW

, मंगलवार, 9 नवंबर 2021 (08:34 IST)
कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है। इस समय देश में 33 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा गंभीर रूप से कुपोषित हैं।
 
ताजा आंकड़े सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने दिए हैं। इन 33 लाख बच्चों में 17 लाख से भी ज्यादा गंभीर रूप से कुपोषित हैं। ये आंकड़े 34 राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों के हैं। राज्यवार सूची में सबसे ऊपर महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात का नाम है।
 
ये आंकड़े पोषण ट्रैकर ऐप पर डाले गए थे, जो पोषण कार्यक्रम की निगरानी करने के लिए विकसित किया गया एक ऐप है। एक साल पहले की स्थिति से तुलना करने पर ये आंकड़े और ज्यादा चिंताजनक हालत दिखाते हैं। नवंबर 2020 से 14 अक्टूबर 2021 के बीच गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत का उछाल आया है।
 
आंकड़ों में फर्क
हालांकि दोनों सालों के आंकड़ों में एक बड़ा फर्क यह है कि पिछले साल छह महीनों से छह साल की उम्र तक के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लेकर सार्वजनिक की थी। इस साल ये आंकड़े सीधे पोषण ट्रैकर से लिए गए हैं, जहां आंगनवाड़ियों ने खुद ही इनकी जानकारी दी थी।
 
एक फर्क और है। इस साल के आंकड़ों में बच्चों की उम्र के बारे में नहीं बताया गया है। हालांकि कुपोषण को लेकर परिभाषाएं वैश्विक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है, या जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है।
 
इससे एक दर्जा नीचे यानी अत्याधिक रूप से कुपोषित (एमएएम) बच्चे वो होते हैं जिनकी बांह की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है। दोनों ही अवस्थाओं का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है। एसएएम अवस्था में बच्चों की लंबाई के हिसाब से उनका वजन बहुत कम होता है।
 
कुपोषण का असर
ऐसे बच्चों का इम्यून सिस्टम भी बहुत कमजोर होता है और किसी गंभीर बीमारी होने पर उनके मृत्यु की संभावना नौ गुना ज्यादा होती है। एमएएम अवस्था वाले बच्चों में भी बीमार होने की और मृत्यु की संभावना ज्यादा रहती है।
 
महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम और तेलंगाना में भी कुपोषित बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत के लिए शायद सबसे ज्यादा शर्म की बात यह है कि दुनिया के सबसे जाने माने शहरों में गिनी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं।
 
इसके अलावा ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिर गया। 116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है।
 
रिपोर्ट चारु कार्तिकेय
 

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