शरद पवार के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से मना कर देने के बाद विपक्ष के लिए एक साझा लोकप्रिय उम्मीदवार चुनना और चुनौतीपूर्ण हो गया है। लेकिन उम्मीदवार मिल भी जाए तो भी क्या विपक्ष के पास चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त वोट हैं?
18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में विपक्ष की तरफ से एक साझा उम्मीदवार चुनने की कोशिश में दिल्ली में बुधवार 15 मई को विपक्षी दलों की एक बैठक हुई। बैठक में 16 पार्टियों ने हिस्सा तो लिया लेकिन उम्मीदवार का नाम तय नहीं हो पाया।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम सुझाया था लेकिन पवार ने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया। मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि बनर्जी ने बाद में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी का नाम भी सुझाया। लेकिन इन नामों पर अभी सहमति नहीं हुई है।
लेकिन नाम पर विपक्षी पार्टियों में आम सहमति बनाना इस चुनौती की सिर्फ एक कड़ी है। बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष के पास अपने उम्मीदवार को जीत दिलाने का संख्याबल है। इसके लिए राष्ट्रपति चुनावों की पूरी प्रक्रिया को समझना जरूरी है।
कैसे चुना जाता है भारत का राष्ट्रपति
संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) करता है जिसमें शामिल होते हैं लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित सदस्य, सभी राज्यों और दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू और कश्मीर की विधान सभाओं के सभी चुने हुए सदस्य।
मतदान गुप्त होता है और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ साथ एकल हस्तांतरणीय पद्धति के आधार पर होता है। इस समय निर्वाचन मंडल की कुल संख्या करीब 10।86 लाख मतों की है, जिसमें बीजेपी और एनडीए के घटक दलों के पास करीब 5।26 लाख, यानी करीब 48 प्रतिशत, मत हैं।
चुनाव जीतने के लिए बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 50 प्रतिशत से ज्यादा मत यानी कुछ और पार्टियों का समर्थन चाहिए। बीजेडी, वाईएसआरसीपी और एआईएडीएमके ऐसी पार्टियां हैं जिनका निर्वाचन मंडल में संख्याबल भी अधिक है और वो आधिकारिक रूप से ना सत्ता पक्ष का हिस्सा हैं और ना विपक्ष के साथ हैं।
बीजेपी का दावा है कि उसे इन तीनों पार्टियों का समर्थन हासिल हैं और लेकिन अगर ऐसा हो भी जाए तो भी बीजेपी को जीतने के लिए और मतों की आवश्यकता होगी। इसीलिए विपक्षी पार्टियां भी पूरी कोशिश कर रही हैं कि ज्यादा से ज्यादा पार्टियां साथ आ कर एक साझा उम्मीदवार मैदान में उतारे जो एनडीए के उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे सके। अब देखना होगा कि विपक्ष का साझा उम्मीदवार बन कर कौन निकलता है।