सुप्रीम कोर्ट ने बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती से उनके मुख्यमंत्री रहते हुए मूर्तियों को बनवाने में हुए खर्च को सरकारी खजाने में लौटाने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी।
सुप्रीम कोर्ट करीब 10 साल पुरानी उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मूर्तियों के निर्माण पर सार्वजनिक पैसे खर्च करने से मायावती को रोकने के लिए निर्देश जारी करने की अपील की गई है। याचिकाकर्ता रविकांत का कहना था, "हम लोगों ने इस पूरे मामले में करदाताओं के चार हजार करोड़ रुपये के दुरुपयोग के सबूत कोर्ट के सामने रखे हैं। हालांकि जमीन की कीमत भी इसमें जोड़ दी जाए तो ये राशि और भी ज्यादा हो जाती है क्योंकि दोनों ही जगहों पर ये निर्माण कार्य बेहद प्राइम लोकेशंस पर हुए हैं।”
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने साफतौर पर कहा कि प्रथम दृष्टया मूर्तियों पर खर्च पैसे को मायावती को अपने पास से सरकारी खजाने में वापस जमा कराना होगा। मायावती की ओर से कोर्ट में पेश हुए उनके वकील सतीश मिश्र ने इस मामले की सुनवाई मई के बाद करने की अपील की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को मायावती के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने साल 2007 से 2012 के अपने शासनकाल के दौरान लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनवाए थे। इन पार्कों में मायावती ने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी के अलावा खुद की भी कई मूर्तियां बनवाई थीं। ये सभी मूर्तियां पत्थर और कांसे की हैं। इन परियोजनाओं की लागत उस समय 1,400 करोड़ रुपए से ज्यादा थी, जिसमें मूर्तियों पर 685 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। प्रवर्तन निदेशालय ने इस पर सरकारी खजाने को 111 करोड़ रुपए का नुकसान होने का मामला दर्ज किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी साल 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से पार्क और मूर्तियों पर खर्च हुए सरकारी पैसे की जानकारी मांगी थी। उत्तर प्रदेश में आज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भले ही मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हों लेकिन उस वक्त समाजवादी पार्टी ने जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाया था और मायावती सरकार की ये कहकर आलोचना की थी कि वो सरकारी धन का दुरुपयोग कर रही हैं।
साल 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था और तब अखिलेश ने मायावती पर 40 हजार करोड़ के मूर्ति घोटाले का आरोप लगाया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद पत्रकारों के सवाल पर अखिलेश यादव चुप्पी साध गए।
यही नहीं, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार के दौरान लखनऊ विकास प्राधिरकरण की एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बनाए गए पार्कों पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। इन्हीं पार्कों में ये मूर्तियां लगाई गई हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 मूर्तियां लगवाई गईं थी। इसमें 685 करोड़ का खर्च आया था। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारी बहाल किए गए थे।
याचिकाकर्ता रविकांत का कहना था, "इस मामले में बचाव पक्ष का कहना था कि जो भी धनराशि खर्च हुई उसे राज्य की विधानसभा ने अपनी स्वीकृति दी थी इसलिए कानूनी तौर पर इसमें कोई गलती नहीं है लेकिन हमारी दलील थी कि चार हजार करोड़ रुपये यदि कोई पार्टी अपने चुनाव निशान और खुद की पब्लिसिटी पर खर्च कर दे तो वो करदाताओं के खून-पसीने की कमाई का दुरुपयोग है और राज्य को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।''
रविकांत का ये भी कहना था कि इस मामले में लोकायुक्त ने भी अपनी रिपोर्ट में कई सवाल उठाए हैं और हाथी की मूर्तियों पर चुनाव आयोग भी आपत्ति जता चुका है। जानकारों के मुताबिक चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से मायावती और बहुजन समाज पार्टी को आर्थिक रूप से झटका जरूर लगा है लेकिन राजनीतिक रूप से उन्हें इसका शायद ही कोई नुकसान हो।
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, "मायावती के इस काम की तब भी बहुत आलोचना हुई थी लेकिन उन्होंने ये सब दलित समाज के महापुरुषों के सम्मान के नाम पर यानी दलित अस्मिता के नाम पर ऐसा करने की बात की थी। जाहिर है, इससे उनके मतदाता खुश ही हुए थे और वो आज भी हैं। हां, बौद्धिक वर्ग में आलोचना जरूर हुई लेकिन मायावती ने 2017 में विधान सभा चुनाव से पहले ही ये स्पष्ट कर दिया था कि आगे से वो इस तरह के काम नहीं करेंगी।''
वहीं एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि अब तो राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर मायवाती को शायद ही घेर पाएं, "समाजवादी पार्टी तो अब उनके साथ ही है, कांग्रेस भी फिलहाल मायावती की आलोचना से बचेगी और भारतीय जनता पार्टी तो मूर्तियों के नाम पर सवाल उठाने का हक ही नहीं रखती क्योंकि अब तो वो खुद महापुरुषों की मूर्तियों के निर्माण पर न सिर्फ अरबों रुपये खर्च कर रही है बल्कि इसके लिए बाकायदा बजट में प्रावधान हो रहा है।''
बहरहाल, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि मायावती सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करती हैं या फिर कोई और कानूनी रास्ता निकालती हैं। विश्लेषकों के मुताबिक इस नए घटनाक्रम से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो या न हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख देखते ये कहा जा सकता है कि उन्हें आर्थिक नुकसान तो होना ही है।