रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं। बंगाल समेत विभिन्न राज्यों में इसकी वजह से कम से कम 1 दर्जन लोगों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में पंजाब का एक दंपति भी शामिल है। केरल में तो 7 लोग लॉकडाउन के कारण से शराब नहीं मिलने की वजह से अवसादग्रस्त होकर जान दे चुके हैं। कई दूसरे राज्यों से भी ऐसी खबरें सामने आने लगी हैं।
देशभर में मानसिक अवसाद की वजह से आत्महत्या के मामलों को छोड़ भी दें तो भारी तादाद में लोग अवसाद की चपेट में आ रहे हैं। कोई कमाई ठप होने से अवसाद में है, तो कोई लगातार घर में बंद रहने की वजह से। किसी को भविष्य की चिंता खाए जा रही है तो किसी को करियर की। यही वजह है कि अस्पतालों के मानसिक रोग विभाग में ऐसे मरीजों की कतारें दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही हैं।
पश्चिम बंगाल में एक युवक ने तो लॉकडाउन शुरू होने के 5 दिनों बाद ही आत्महत्या कर ली। उसने सुसाइड नोट में लिखा कि वह मानसिक अवसाद के चलते आत्महत्या कर रहा है। इसी तरह मेघालय की राजधानी शिलांग के रहने वाले एक युवक ने आगरा में अपनी जान दे दी। उसका रोजगार ठप हो गया था।
एक कोरोना पीड़ित युवक ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की 7वीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। पंजाब के अमृतसर में एक अधेड़ दंपति ने तो इस डर से जहर खाकर जान दे दी कि आगे चलकर उनको भी कोरोना वायरस का संक्रमण हो सकता है। उसने अपने सुसाइड नोट में इस डर की बात लिखी थी।
देश के सबसे दक्षिणी राज्य केरल में तो कोरोना से ज्यादा मौतें मानसिक अवसाद की वजह से हुई हैं। राज्य में कोरोना के संक्रमण से तो अब तक 2 लोगों की ही मौत हुई है। लेकिन लॉकडाउन में शराब नहीं मिलने की वजह से कम से कम 7 लोग विभिन्न तरीकों से आत्महत्या कर चुके हैं। यही वजह है कि राज्य सरकार ने शराब की दुकानों और बार को बंद करने का फैसला देरी से लिया। मुख्यमंत्री पिनारई विजयन की दलील थी कि इससे गंभीर सामाजिक समस्या पैदा हो जाएगी।
पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में भी यही स्थिति है। यही वजह है कि प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने मुख्यमंत्री कोनराड संगमा को पत्र लिखकर शराब की दुकानों को तत्काल खोलने की अपील की है। उनका कहना है कि शराब पीना मेघालय के आम जनजीवन का अभिन्न अंग है।
पुणे में अपना बिजनेस चलाने वाली श्रद्धा केजरीवाल को 1 सप्ताह से बुरे-बुरे सपने आ रहे हैं। वे कहती हैं कि कारोबार ठप होने और अनिश्चित भविष्य की चिंता ने मेरी नींद उड़ा दी है। वह फिलहाल एक मनोचिकित्सक की सेवाएं ले रही हैं। पुणे महाराष्ट्र के उन शहरों में है, जो सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित है। यहां 2 सप्ताह से कर्फ्यू जैसे हालात हैं। वैसे भी इस राज्य में कोरोना के मामले सबसे ज्यादा हैं।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में तो सैकड़ों लोग मानसिक अवसाद की चपेट में हैं। किसी को लगातार हाथ धोने की वजह से कोरोनाफोबिया हो गया है तो किसी को छींक आते ही कोरोना का डर सताने लगता है। ऐसे कई मरीज मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं।
सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों ने भी स्थिति को और गंभीर कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास सलाह के लिए आने वालों या फोन करने वालो में कई लोग ऐसे हैं जिनका मानसिक स्वास्थ्य पहले एकदम दुरुस्त था।
मनोचिकित्सक रंजन घोष बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से लोगों को भीड़ से डर लगने लगा है। ट्रॉमा थैरेपिस्ट रुचिका चंद्रशेखर कहती हैं कि कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन की वजह से अवसाद और चिंता के लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे जीवन पर खतरा भी बढ़ेगा।
ऑनलाइन काउंसलिंग पोर्टल चलाने वालीं आकृति तरफदार कहती हैं कि लॉकडाउन की वजह से लाखों लोग घर से काम कर रहे हैं। इसका मतलब जीवन को नए सिरे से व्यवस्थित करना है। इसका दिमाग पर भारी असर पड़ता है। सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहें भी दिमाग पर प्रतिकूल असर डालती हैं।
रुचिका कहती हैं कि लंबे समय से घरों में बंद रहने की वजह से पहले से इस बीमारी की चपेट में रहने वाले लोगों की समस्या और गंभीर हो रही है। बीते 10 दिनों में मेरे पास पहुंचने वाले मरीजों की तादाद दोगुनी से ज्यादा हो गई है।
इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के उपाध्यक्ष गौतम साहा का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। रोजाना सैकड़ों नए मामले भी सामने आ रहे हैं। कइयों के लिए यह लॉकडाउन उनके जीवन का सबसे अंधेरा दौर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के मुताबिक देश की 1.30 अरब की आबादी में से 9 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी किस्म के मानसिक अवसाद की चपेट में हैं। संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में वर्ष 2020 के आखिर तक 20 फीसदी आबादी के मानसिक बीमारियों की चपेट में आने का अंदेशा जताया था।
लेकिन देश में 9,000 से कुछ ही ज्यादा मनोचिकित्सकों की वजह से हर 1 लाख मरीजों पर महज ऐसा 1 डॉक्टर ही उपलब्ध है। इससे परिस्थिति की गंभीरता का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। लांसेट साइकियाट्री में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अवसाद और घबराहट की बीमारियों से ग्रसित लोगों की तादाद वर्ष 1990 से 2017 के बीच बढ़कर दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है।
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्री एंड बिहैवियरल साइंस के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव मेहता बताते हैं कि कोविड-19 के बारे में सूचनाओं की ऑनलाइन बाढ़ ने बड़े पैमाने पर आतंक फैलाया है। अब हालत यह हो गई है कि एक बार छींकने व खांसने पर भी लोगों को संक्रमण का अंदेशा होने लगता है। इसी तरह क्वारंटाइन केंद्रों में रहने वालों को यह एक जेल की तरह लगता है। इसके अलावा संक्रमित लोगों को सामाजिक कलंक का डर भी सता रहा है।
लॉकडाउन की वजह से बढ़ते मानसिक अवसाद ने अब वैज्ञानिकों, सरकारों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि भारत आखिर इस मानसिक स्वास्थ्य संकट से कैसे उबर सकेगा? विशेषज्ञों का कहना है कि हर 5वां भारतीय किसी न किसी तरह के मानसिक अवसाद से ग्रस्त है।
विडंबना यह है कि नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम (एनएमएचपी) के लिए बजट में लगातार कटौती हो रही है। वर्ष 2018 में जहां इसके लिए 50 करोड़ का प्रावधान था वहीं वित्त वर्ष 2019 में इसे घटाकर 40 करोड़ कर दिया गया।
'इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री' के एक हालिया अध्ययन में कहा गया था कि मोटे अनुमान के मुताबिक मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 को लागू करने में 95 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। लेकिन हकीकत में इसका एक छोटा हिस्सा भी इस पर खर्च नहीं किया जा रहा है। इससे स्थिति और भयावह होने का अंदेशा है।
लेकिन लगातार बढ़ते मानसिक अवसाद पर आखिर कैसे काबू पाया जा सकता है? मनोचिकित्सक इसके लिए कई तरीके सुझा रहे हैं। उनका कहना है कि लोगों को अपनी सोच सकरात्मक रखनी होगी। उनको सोचना होगा कि इस संकट में वे अकेले नहीं हैं।
वे कहते हैं कि इसके अलावा सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों पर आंख मूंदकर भरोसा करना छोड़ना होगा। किसी भी खबर पर भरोसा करने से पहले उसकी सच्चाई जांचना जरूरी है। इसके साथ ही गूगल पर बीमारी के लक्षण देकर अपने शरीर के लक्षणों से उसका मिलान करना उचित नहीं है। किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टरों पर ही भरोसा करना होगा। इसके अलावा लोग सांस लेने की कसरत कर सकते हैं और मेडिटेशन का सहारा ले सकते हैं।
डॉक्टर साहा कहते हैं कि लोगों को किसी भी शंका की स्थिति में डॉक्टरों और मानसिक रोग विशेषज्ञों की सलाह लेने से हिचकिचाना नहीं चाहिए।