भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बन गई है। नई सरकार में मंत्रालयों का बंटवारा भारत की नई प्राथमिकताओं का संकेत है। अंतराराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठा बढ़ाना और रोजगार का सृजन नई सरकार की चुनौतियां।
पांच साल पहले की तरह इस बार भी नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों के नेताओं को शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित किया, लेकिन इस बार पाकिस्तान को छोड़ दिया। पिछली बार सार्क के नेताओं को बुलाया गया था, इस बार बंगाल की खाड़ी पर बसे देशों के संगठन बिम्सटेक के देशों को बुलाया गया। यह फैसला विदेश नीति के क्षेत्र में दो संकेत देता है। एक तो पाकिस्तान को दरकिनार करने का संकेत, यदि वह आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को रियायतें नहीं देता। दूसरा संकेत यह कि भारत एक्ट ईस्ट को गंभीरता से ले रहा है और उसके लिए पूरब के पड़ोसी देशों के अलावा एशिया प्रशांत का इलाका आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण रहेगा।
यह इलाका अमेरिका के लिए भी महत्वपूर्ण है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक ओर चीन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है और दूसरे इस इलाके को एशिया प्रशांत से इंडो प्रशांत का नाम देकर अमेरिका ने भारत के साथ रणनीतिक संबंधों के भविष्य को साफ कर दिया है। भारत ने भी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ गुट बनाकर इस इलाके में अपनी दिलचस्पी का संकेत दे दिया है। अब पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को अपनी नई कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाकर मोदी ने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार के निशाने पर अब पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन होगा। जयशंकर चीन और अमेरिका में राजदूत रह चुके हैं और विदेश सचिव के रूप में सामरिक महत्व के विषयों पर मोदी के साथ निकट रूप से काम कर चुके हैं।
निर्मला सीतारामण को वित्त मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने वाणिज्य और विदेश व्यापार के अपने अनुभवी सहयोगी को कारोबारियों में भरोसा बनाने और विदेशी सरकारों को आश्वस्त करने की जिम्मेदारी दी है। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। आर्थिक आंकड़ें भरोसा पैदा करने लायक नहीं हैं।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यलय के अनुसार पिछली तिमाही में सकल घरेलू उत्पादन की दर पांच साल में सबसे कम 5.8 प्रतिशत रही और बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा रही। निवेश और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए भारत को भी बड़े औद्योगिक देशों की जरूरत है। मोदी की पहली सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी रोजगार के मोर्चे पर रही है। हालांकि हाल के चुनावों में यह कमजोरी राष्ट्रवाद और सुरक्षा के मुद्दों के साए में ढंक गई लेकिन अगले चुनाव जीतने के लिए इसमें सफलता बहुत ही जरूरी होगी।
बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश के लिए कारोबार के आसान नियमों के अलावा घरेलू मोर्चे पर शांति तथा कुशल कामगारों की जरूरत होगी। कारोबार की शर्तों को और आसान बनाने की जिम्मेदारी निर्मला सीतारमण की होगी तो घरेलू मोर्चे पर शांति की जिम्मेदारी बीजेपी प्रमुख अमित शाह की होगी, जो मोदी के निकट सहयोगी हैं और जिन्हें मोदी ने गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है।
अमित शाह को इन आशंकाओं को दूर करना होगा कि उनके गृह मंत्रालय का मुखिया बनने से भारत में सुरक्षा प्रतिष्ठानों में ध्रुवीकरण बढ़ेगा और उदारवादियों की मुश्किलें बढ़ेंगी। दूसरी ओर पार्टी के लिए दिखाया गया उनका कौशल पुलिस सुधार और भारत को सुरक्षित बनाने के काम आ सकता है। वे गैरजिम्मेदार हिंदू संगठनों को भी अनुशासित कर सकते हैं, जो पिछले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे हैं। उद्योग और व्यापार के लिए उचित माहौल बनाने की जिम्मेदारी नए मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय की होगी जो इस समय उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रमुख हैं।
नरेंद्र मोदी का दूसरा मंत्रिमंडल अनुभव और नवीनता का मिश्रण है। आगे की सरकारों के लिए युवा राजनीतिज्ञों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी को मनमोहन सिंह पूरा नहीं कर पाए थे और यही कांग्रेस की हार का कारण भी बना था। नरेंद्र मोदी मनमोहन सिंह से सबक लेकर नेताओं की ऐसी पौध खड़ी कर रहे हैं जो उनके बाद भी देश को नेतृत्व दे पाए। देश के करीब करीब हर राज्य को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देकर नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को सही मायने में अखिल भारतीय पार्टी बनाने की भी नींव रखी है। विपक्षी दलों को कमर कस लेनी होगी। उनके लिए आने वाले दिन आसान नहीं होने वाले।