केरल में निपा वायरस की चपेट में आकर दर्जन भर लोगों की मौत के बाद पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हो गया है। वहां करीब 18 साल पहले इस महामारी से पांच दर्जन से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
एक बहुत पुरानी कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। सुदूर दक्षिणी राज्य केरल में निपा वायरस का संक्रमण फैलते ही फौरन अलर्ट मोड में आकर पश्चिम बंगाल सरकार इसी कहावत को चरितार्थ कर रही है। केरल में इस वायरस की चपेट में आकर अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है। वहां मजदूरी करने वाले एक युवक को भी बुखार की हालत में लौटने के बाद कोलकाता में संक्रामक रोगों के एक अस्पताल में रखा गया है। स्वास्थ्य विभाग के बदहाल आधारभूत ढांचे के बावजूद सरकार और स्वास्थ्य विभाग खासकर उत्तर बंगाल के जिलों और कोलकाता से सटे नदिया जिले में खास सतर्कता बरत रही है।
वायरस का कहर
इसकी वजह यह है कि केरल में आतंक फैलाने वाले निपा वायरस से पहली मौत वर्ष 2000 में बंगाल के दार्जिलिंग जिले में सिलीगुड़ी में हुई थी। वर्ष 2001 में इसकी चपेट में यहां 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उसके बाद वर्ष 2007 में नदिया जिले में सात लोगों की मौत हो गई थी इनमें से चार एक ही परिवार के थे इसलिए केरल में इससे होने वाली मौतों के बाद पश्चिम बंगाल में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है और इससे निपटने की रणनीति तैयार की जा रही है।
वर्ष 2000 और 2001 में इस वायरस की चपेट में 60 से ज्यादा लोगों की मौत के समय स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस वायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। तब एक नर्सिंग होम में तो तमाम मरीजों, डाक्टरों और नर्सों की एक अज्ञात तेज बुखार से मौत हो गई थी। उस समय डाक्टरों ने इसे रहस्यमयी बुखार का नाम दिया था। मृतकों में जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय माइती भी शामिल थे। चार साल बाद पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वेरोलॉजी के वैज्ञानिकों ने इस वायरस के बारे में खुलासा किया था।
सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में पहली बार इस वायरस का संक्रमण फैलने के समय या उसके बाद सरकार ने कुछ खास नहीं किया था। उनको इस बीमारी की कोई वजह समझ में नहीं आई थी। बुखार की दवाएं देने पर कुछ दिनों के भीतर ही मरीजों की मौत हो जाती थी। यही वजह है कि सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया था। उसके छह साल बाद नदिया जिले में इस वायरस ने एक बार फिर सिर उठाया था। तब सात लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद सरकार ने मरीजों के खून के नमूने जांच के लिए पुणे भेजे थे। वहां से रिपोर्ट आने तक पीड़ितों की मौत हो चुकी थी।
सक्रिय सरकारी मशीनरी
अबकी सरकार कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए केरल से शुरुआती खबरें सामने आते ही सरकारी मशीनरी सक्रिय हो उठी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, ने खुद इस मामले पर ध्यान देते हुए पूरे राज्य और खासकर उन इलाकों में हाई अलर्ट जारी किया जहां पिछली बार निपा वायरस का हमला हुआ था।
इसके तहत अलग-अलग समितियों का गठन कर बुखार के मरीजों पर निगरानी रखने और दक्षिणी राज्यों से आने वाले लोगों की यात्राओं का रिकार्ड तैयार करने का निर्देश दिया गया। कूचबिहार जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी सुमित गांगुली बताते हैं, "हमने इलाके में इस वायरस के प्रति जागरुकता अभियान शुरू किया है। इसके अलावा तेज बुखार के लक्षणों के साथ अस्पताल में आने वाले मरीजों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। निजी अस्पतालों से भी जिला प्रशासन को ऐसे मामलों की तत्काल सूचना देने को कहा गया है।"
नदिया जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी तापस कुमार राय बताते हैं, "जिले में विभाग के तमाम कर्मचारियों को अलर्ट कर दिया गया है। विभिन्न इलाकों में जागरुकता शिविरों का आयोजन किया जा रहा है।" राय ने बताया कि नदिया जिले के हजारों मजदूर केरल व दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में काम करते हैं। वहां से लौटने वालों पर खास निगाह रखी जा रही है।
राज्य स्वास्थ्य विभाग ने बीते शुक्रवार को हाई अलर्ट जारी कर दिया। राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक अजय चक्रवर्ती का दावा है कि अब तक बंगाल में निपा वायरस के संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। राय बताते हैं कि सरकार तमाम एहतियाती कदम उठा रही है ताकि वर्ष 2001 जैसी परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़े। इस वायरस के फैलने के अंदेशे को ध्यान में रखते हुए अस्पतालों से भी मुस्तैद रहने को कहा गया है। तमाम अस्पतालों से रोजाना भर्ती होने वाले मरीजों पर रिपोर्ट जमा करने को कहा गया है। इन रिपोर्टों की निगरानी के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय में एक नोडल आफिसर के तहत टीम बना दी गई है।
अब भी है निपा वायरस
सिलीगुड़ी स्थित उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज अस्पताल के एक सेवानिवृत्त डॉक्टर एनबी देबनाथ का कहना है कि राज्य में निपा वायरस पहले से मौजूद है। यह एक बेहद संक्रामक और खतरनाक बीमारी है। डॉ। देबनाथ ने वर्ष 2000 और 2001 में इस बीमारी की भयावहता देखी है। वह कहते हैं, "हमें वायरस के बारे में कुछ पता ही नहीं चल रहा था। रोज लगता था कि अब हम लोग नहीं बचेंगे।"
सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर और स्थानीय सीपीएम विधायक अशोक भट्टाचार्य तब लेफ्ट फ्रंट सरकार में शहरी विकास मंत्री थे। वह कहते हैं, "उस समय इस रहस्यमयी बीमारी की वजह से पूरे शहर में आतंक फैल गया था। आम लोगों के अलावा डॉक्टर तक शहर छोड़ कर भाग रहे थे।" भट्टाचार्य बताते हैं कि हालात पर काबू पाने के लिए कोलकाता से 30 डाक्टरों की एक टीम वहां भेजनी पड़ी थी। डॉ। देबनाथ और अशोक भट्टाचार्य मानते हैं कि निपा वायरस उस समय संभवतः बांग्लादेश से आने वाले किसी मरीज के जरिए यहां पहुंचा था। वह मरीज जिस नर्सिंग होम में था वहीं तमाम लोगों इसकी चपेट में आकर मारे गए थे।
स्वास्थ्य सेवा निदेशक अजय राय कहते हैं, "सरकार अबकी निपा के मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार है। लेकिन इससे सफलतापूर्वक निपटने के लिए आम लोगों का सहयोग भी जरूरी है। दिमागी बुखार के लक्षण देखते ही मरीजों को तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल में इसकी जानकारी देने पर इस वायरस की चपेट में आकर मरने से लोगों को बचाया जा सकता है।" अब तक इस वायरस का कोई टीका नहीं बना है। ऐसे में इन मरीजों का इलाज उसी तरीके से किया जाता है जिस तरह दिमागी बुखार के मरीजों का होता है। लेकिन लक्षण नजर आते ही अस्पताल पहुंचने पर इससे होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।