पाकिस्तान में बैन किए गए दर्जनों चरमपंथी गुट सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से सक्रिय हैं। फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप के जरिए वे लोगों की भर्ती कर रहे हैं, चंदा जुटा रहे हैं और नफरत फैला रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार ने आतंकवादियों से संपर्क रखने या दूसरे समुदायों के खिलाफ नफरत फैलाने के आरोप में कम से कम 65 संगठनों पर बैन लगाया है। लेकिन इनमें से 40 ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय हैं।
पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) के एक अधिकारी ने बताया कि ये गुट सोशल मीडिया को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के जरिए सुन्नी बहुल पाकिस्तान में लोगों को अल्पसंख्यक शियाओं के खिलाफ भड़काते हैं, उनसे भारत प्रशासित कश्मीर और अफगानिस्तान में जिहाद करने को कहते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब अधिकारी सोशल मीडिया पर सरकार, सेना और खुफिया एजेंसियों की आलोचना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। पाकिस्तानी गृह मंत्रालय ने तो एफआईए को यहां तक आदेश दिया है कि वह सोशल मीडिया पर सेना का मजाक उड़ाने वालों के खिलाफ कदम उठाए।
किसकी सरपस्ती
एफआईए के अधिकारी ने बताया कि एजेंसी ने आलोचनात्मक पोस्ट डालने वाले 70 से ज्यादा कार्यकर्ताओं से पूछताछ की है। लेकिन इनमें से दो को छोड़ कर बाकी सब को रिहा कर दिया गया है जबकि एक तीसरे व्यक्ति के खिलाफ अभी जांच चल रही है।
पाकिस्तान के साइबर स्पेस पर नजर रखने वाले कार्यकर्ता, पत्रकार और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि प्रतिबंधित संगठन पाकिस्तान में सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि इनमें से कुछ सेना, उसकी एजेंसियों और कुछ कट्टरपंथी संगठनों की सरपरस्ती में करते हैं। यहां तक कि वोट पाने की खातिर कुछ राजनेता भी ऐसे गुटों को सहारा देते हैं।
एफआईए अधिकारी का तो ये भी कहना है कि सरकार भी कुछ प्रतिबंधित गुटों का समर्थन करती है, लेकिन उनके मुताबिक दुनिया की और भी कई सरकारी एजेंसियां ऐसा करती हैं। अधिकारी का कहना है, "हर कोई अपने आंतकवादियों की सुरक्षा करता है। जिसे आप अच्छा समझते हैं, उसे मैं बुरा समझ समझ सकता हूं। या फिर आप जिसे बुरा कहते हैं, वह मेरी नजर में अच्छा हो सकता है।"
अधिकारी के मुताबिक प्रतिबंधित संगठनों की कुछ साइटों की गतिविधियों को जानबूछ कर अनदेखा किया जाता है ताकि उनसे खुफिया जानकारी हासिल की जा सके।
नाम कुछ और, काम कुछ और
एक फेसबुक पेज पर अफगान तालिबान का झंडा व्यूवर्स का स्वागत करता है। वहीं एक दूसरे पेज पर भारत के मोस्ट वांटेड और लश्कर ए तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद की फोटो नजर आती है। इस संगठन को भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका ने भी एक आतंकवादी गुट घोषित किया है। प्रतिबंध के बावजूद हाफिज सईद ने दूसरे संगठनों के नाम से अपना काम जारी रखा।
हाफिज सईद के संगठन के फेसबुक पर कई पेज चल रहे हैं। फला ए इंसानियत नाम का गुट फेसबुक पर दावा तो यह करता है कि वह कल्याणकारी कामों में लगा है लेकिन उसके पेज पर भारत विरोधी वीडियो हैं। इसके अलावा 9/11 के बाद अमेरिका का साथ देने के लिए पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ की आलोचना की गयी है। इस साइट पर सीरिया को एक रिसता हुआ जख्म बताया गया है।
फेसबुक और ट्विटर का कहना है कि वह आतंकवादी सामग्री को बैन कर रहे हैं। ट्विटर ने कहा कि 2016 में जुलाई से लेकर दिसंबर तक उसने 376,890 अकाउंट निलंबित किये क्योंकि वे आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे थे। हालांकि उनका कहना है कि ऐसे अकाउटों में सिर्फ दो प्रतिशत को ही सरकारों के कहने पर रोका गया है। वहीं फेसबुक का कहना है कि वह आतंकवादी सामग्री को हटाने के लिए आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के साथ साथ मानवीय समीक्षा का भी सहारा ले रहा है। फेसबुक प्रवक्ता क्लेयर वारेइंग ने एपी को भेजे एक ईमेल में कहा कि फेसबुक पर आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है।
"कम्युनिकेशन वॉर"
इस्लामाबाद में सोशल मीडिया अधिकारों से जुड़े समूह बाइट्स फॉर ऑल से जुड़े शहजाद अहमद कहते हैं कि पाकिस्तान की ताकतवर सेना और खुफिया एजेंसी प्रगतिशील और उदारवादी समूहों के खिलाफ "कम्युनिकेशन वॉर" चला रही है। उनके मुताबिक ऐसे लोगों के खिलाफ कदम उठाये जा रहे हैं जो सरकार और उससे भी आगे जाकर सेना और खुफिया एजेंसियों की आलोचना करते हैं।
शहजाद के मुताबिक ये एजेंसियां अपनी आलोचना को शांत करने के लिए ऐसे गुटों को इस्तेमाल करती हैं। सेना की आलोचना करने वाले ब्गॉलर वकास गोराया को हफ्तों तक अगवा करके रखा गया और उनका उत्पीड़न भी किया गया। वह इसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ मानते हैं।
सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी गुटों की सक्रियता पर एफआईए के अधिकारी का कहना है कि ऐसे गुट अकसर प्रॉक्सी सर्वर इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उन्हें ट्रैक करना मुश्किल होता है। हालांकि सोशल मीडिया एक्टीविस्ट हारून बलोच इसे कार्रवाई न करने का सिर्फ बहाना मानते हैं क्योंकि बात जब सरकार और सेना की आलोचना की आती है तो अधिकारी ऐसे कार्यकर्ताओं, ब्लॉगरों और पत्रकारों को ढूंढ ही निकालते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई होती है।