-मनीष कुमार
सरकारी सर्वे में जाति पर आधारित सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक डाटा मुहैया कराया गया है, जो राज्य का हाल बयान करता है। जातिगत आर्थिक सर्वे रिपोर्ट बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन, मंगलवार को पेश की गई. इससे पहले बीते 2 अक्टूबर को जातीय गणना की रिपोर्ट जारी की गई थी।
मंगलवार को पेश आंकड़े दिखाते हैं कि बिहार में सामान्य श्रेणी के 25.09 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 33.16 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के 33.58 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के 42.93 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 42.7 प्रतिशत परिवार गरीब हैं।
राज्य में कुल 2.76 करोड़ परिवारों की गणना हुई जिनमें 94.42 लाख यानी 34.13 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आमदनी प्रतिमाह 6 हजार रुपए या इससे से कम है। राज्य सरकार ने इन्हें गरीबों की श्रेणी में डाला है, वहीं 29.61 प्रतिशत परिवार की आय 6 से 10 हजार रुपए के बीच है जबकि 10 से 20 हजार तथा 20 से 50 हजार तक की आय क्रमश: 18.06 तथा 9.83 प्रतिशत परिवारों की है। महज 3.90 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी 50 हजार रुपए से ज्यादा है। ऐसे परिवार 4.47 फीसदी हैं जिन्होंने अपनी आय की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।
एक चौथाई से कम आबादी 5वीं तक शिक्षित
आंकड़ों के अनुसार बिहार की 22.67 फीसदी आबादी ने ही कक्षा 1 से 5 तक की शिक्षा हासिल की है, वहीं कक्षा 6 से 8वीं तक की शिक्षा मात्र 14.33 प्रतिशत आबादी के पास है। इसी तरह वर्ग 9 से 10 तक 14.71 फीसदी आबादी शिक्षित है जबकि कक्षा 11 से 12 तक की शिक्षा 9.19 फीसदी लोगों ने ही प्राप्त किया है। राज्य में 32.1 प्रतिशत लोगों ने स्कूल का मुंह ही नहीं देखा है। स्नातक की शिक्षा राज्य की मात्र 7 प्रतिशत आबादी को ही नसीब हो सकी है।
आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल साक्षरता दर 79.7 प्रतिशत है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में साक्षरता दरअधिक है, वहीं बिहार में प्रति 1000 पुरुष पर 953 महिलाएं हैं। प्रदेश की 13.07 करोड़ की कुल जनसंख्या में केवल 1.15 प्रतिशत आबादी ही कम्प्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल इंटरनेट के साथ कर रही है।
संख्या के हिसाब से यह आंकड़ा महज 15,08,085 है अर्थात करीब 98.63 फीसदी लोग डिजिटल दुनिया से परिचित ही नहीं है, वहीं बिहार में 36.76 फीसदी अर्थात 1,01,72,126 परिवारों के पास ही 2 या उससे अधिक कमरों का अपना पक्का मकान है, जबकि खपरैल या टीन की छत वाले गृहस्वामी 26.54 तथा झोपड़ी वाले 14.09 प्रतिशत हैं, वहीं 0.24 फीसदी परिवार आवासविहीन हैं।
कौन हैं सबसे गरीब?
गरीबी को देखा जाए तो सामान्य श्रेणी में भूमिहार जाति सबसे अधिक गरीब है। इस जाति के 27.58 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। इसके बाद गरीबी में दूसरे नंबर पर ब्राह्मण (25.32 प्रतिशत) तथा तीसरे नंबर पर राजपूत (24.89 फीसदी) समाज के परिवार हैं। सबसे अमीर कायस्थ हैं जिनकी महज 13.83 फीसदी आबादी ही गरीब है।
मुसलमानों की सामान्य श्रेणी में सबसे ज्यादा शेख समाज के 25.84 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। इनके बाद पठान (22.20 प्रतिशत) तथा सैयद (17.61 प्रतिशत) का नंबर आता है। सवर्णों की श्रेणी में हिंदू के 4 तथा मुसलमानों की 7 जातियां शामिल हैं। प्रदेश में सामान्य वर्ग के परिवारों की संख्या 42,28,282 है जिनमें से एक चौथाई यानी 10,85,913 (25.09 फीसदी) परिवार गरीब हैं।
पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा गरीब यादव जाति का परिवार है, इनकी संख्या 13,83,962 यानी 35.87 फीसदी है। इसके बाद कुशवाहा (कोइरी) परिवार है जिनकी संख्या 4,06,207 (34.32 प्रतिशत) है। कुर्मी जाति के 29.90 फीसदी परिवार गरीब हैं। आंकड़े बता रहे कि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42.93 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 10 हजार रुपए तक है, वहीं 25 फीसदी लोगों की आय 6 से 10 हजार रुपए के बीच है। 16 फीसदी लोगों की आय 10 से 20 हजार रुपए है।
अर्थशास्त्री एस.के. दास कहते हैं कि बिहार का आर्थिक-सामाजिक आंकड़ा यह बताने को काफी है कि राज्य अभी भी गरीब है। इससे यह भी साबित होता है कि गरीबी उन्मूलन की सरकार की योजनाएं धरातल से अभी भी दूर हैं। हालांकि बढ़ती जनसंख्या एक बड़ा कारण है। इसके लिए एक व्यापक रणनीति के तहत योजना बनाने की जरूरत है। इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि कोई क्षेत्र में नहीं गया, टेबल पर ही काम हो गया। इसी वजह से मुसहर या भुईयां जाति में 45-46 प्रतिशत लोग अमीर हो गए।
सरकारी नौकरी में जाति
नौकरी की बात करें तो सामान्य वर्ग के 6 लाख 41 हजार 281 लोगों को नौकरी मिली है। इस श्रेणी के 3.19 फीसदीी लोग नौकरी में हैं। भूमिहार जाति के पास सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी एक लाख 87 हजार 256 यानी 4.99 प्रतिशत है। ब्राह्मण जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.60 प्रतिशत है। अगर संख्या में देखें तो यह आंकड़ा 1 लाख 72 हजार 259 होता है। इसी तरह राजपूत जाति के 1 लाख 71 हजार 933 अर्थात 3.81 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी में हैं।
सबसे अमीर कायस्थ जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 6.68 प्रतिशत है, वहीं शेख जाति के 39 हजार 595 लोग (0.79 फीसदी) तथा पठान जाति के 10 हजार 517 लोग (1.07 फीसदी) एवं सैयद जाति के 7 हजार 231 लोग (2.42 फीसदी) सरकारी नौकरी में हैं। पिछड़ा वर्ग की बात करें तो भाट/ भट की सरकारी नौकरी में सर्वाधिक हिस्सेदारी 4.21 प्रतिशत है।
इसके बाद कुर्मी जाति के 3.11 फीसदी तथा कुशवाहा जाति के 2.04 प्रतिशत लोग सरकारी सेवा में हैं। जबकि महज 1.55 फीसदी यादव जाति की हिस्सेदारी है, वहीं अनुसूचित जाति (एससी) में सबसे अधिक 3.14 फीसदी हिस्सेदारी धोबी जाति के लोगों की है। प्रदेश में सबसे अधिक 67.54 फीसदी आबादी गृहणियों व विद्यार्थियों की है। इसके बाद मजदूर-मिस्त्री की संख्या 16.73 प्रतिशत है। किसान-काश्तकार 7.70 फीसदी हैं जबकि महज 1.57 प्रतिशत आबादी ही सरकारी नौकरी में है।
सरकारी नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया और फिर देर शाम कैबिनेट की बैठक बुलाकर इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। कैबिनेट के निर्णय के अनुसार बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 25 फीसदी, अनुसूचित जाति को 20 और अनुसूचित जनजाति को 2 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछड़े यानी ईडब्लूएस को 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। इस प्रकार राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाएगा।
बेगूसराय निवासी लघु उद्यमी शिव कुमार कहते हैं कि सबका अपना-अपना एजेंडा है। यहां सब कुछ वोट के लिए किया जाता है। गरीबी दूर करने के लिए कोई दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं है। उद्योग-धंधे व पलायन की स्थिति पहले जैसी ही है अन्यथा ट्रेनों में भर-भरकर लोग रोजी-रोटी की तलाश में बाहर नहीं जाते। आज भी करीब 50 लाख बिहारी आजीविका के लिए बाहर रह रहे हैं।
जानकार बता रहे कि 9 नवंबर को सरकार इसे सदन के पटल पर रखेगी। राजनीतिक विश्लेषक श्याम किशोर दास कहते हैं कि बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाने की तैयारी के बहुआयामी प्रभाव होंगे। 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर इसका असर तो पड़ेगा ही, पहले से चल रहे जाटों, पटेल व मराठों का आंदोलन भी और भड़केगा। नीतीश के इस दांव से निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
जनसंख्या नियंत्रण पर नीतीश की विवादास्पद टिप्पणी
जनसंख्या नियंत्रण में महिलाओं के योगदान की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ ऐसी बातें कही जिनसे विवाद हो गया है। रिपोर्ट पेश करते वक्त अपने भाषण में उन्होंने कहा कि किस तरह महिला व पुरुष यौन संबंध का आनंद लेकर भी जनसंख्या नियंत्रण में योगदान कर सकते हैं। मुख्यमंत्री की बातों पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
मुख्यमंत्री के भाषण के दौरान विधान परिषद में मौजूद एमएलसी निवेदिता सिंह ने इसे विधानमंडल के इतिहास का काला दिन बताते हुए कहा कि कुछ बातें पर्दे के पीछे की होती हैं, उसे पर्दे के पीछे ही रहने दिया जाता है। हालांकि मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में यह भी कहा कि आबादी बढ़ने की रफ्तार में कमी, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने की वजह से आई है। कहा कि जब पहली बार उनकी सरकार बनी थी तब राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर 4.3 फीसदी थी, जो लड़कियों की शिक्षा में सुधार के कारण घटकर अब 2.9 प्रतिशत हो गई है।