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भारत में जहरीली होती हवा

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, गुरुवार, 1 नवंबर 2018 (12:13 IST)
जहरीली हवा दुनिया भर के लोगों को परेशान कर रही है, लेकिन भारत पर इसका असर कुछ ज्यादा ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रदूषण की वजह से भारत में 20 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है।
 
 
हवा जीवन के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन यही हवा अगर जहरीली हो जाए तो जानलेवा हो सकती है। भारत और खासकर राजधानी दिल्ली में इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। हवा की गुणवत्ता बेहद खराब होने की वजह से दिल्ली बीते लगभग दस दिनों से लगातार सुर्खियों में है। पूरे देश में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।
 
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 के दौरान जहरीली हवा की वजह से देश में पांच साल से कम उम्र के 1.10 लाख बच्चों की मौत हो गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण की वजह से भारत में 20 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है जो पूरी दुनिया में इस वजह से होने वाली मौतों की एक-चौथाई है। बढ़ते प्रदूषण से युवाओं में भी दिल या दिमाग के दौरे का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही मधुमेह के मरीजों व गर्भवती महिलाओं पर भी इसका बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
 
 
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि हवा में मौजूद पाटिर्कुलेट मैटर (पीएम) यानी महीन कण 2.5 के जहरीले असर की वजह से वर्ष 2016 में भारत में पांच साल से कम उम्र वाले जिन 1.10 लाख बच्चों की मौत हुई उनमें 60,987 लड़कियां थीं और 49013 लड़के।
 
 
इस मामले में भारत अफ्रीका के पिछड़े देश नाइजीरिया और पड़ोसी पाकिस्तान से भी आगे है। यह दोनों देश क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण की वजह से पांच साल से कम उरम वाले प्रति एक लाख बच्चों में मौत की दर 50.8 फीसदी है। इनमें लड़कियों की तादाद लड़कों के मुकाबले ज्यादा है। वर्ष 2016 में इस प्रदूषण की वजह से पांच से 14 साल के आयु वर्ग के 4,360 बच्चों की मौत हो गई। इसी साल पीएम 2।5 के प्रदूषण के चलते दोनों आयु वर्ग के एक लाख से ज्यादा बच्चे असमय ही मौत के मुंह में समा गए।
 
 
एयर पोल्यूशन एंड चाइल्ड हेल्थ- प्रेसक्राइबिंग क्लीन एयर शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा में प्रदूषण के बढ़ते स्तर की वजह से जहां विभिन्न बीमारियां तेजी से फैल रही हैं वहीं इससे मौतों की तादाद भी बढ़ रही है। पीएम 2.5 हवा में मौजूद उन महीन कणों को कहा जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होते हैं। यह सांस के साथ व्यक्ति के शरीर में चले जाते हैं।
 
 
संगठन ने कहा है कि भारत में प्रदूषण की वजह से 20 लाख से ज्यादा लोग असमय ही मौत का शिकार हो जाते हैं। यह वायु प्रदूषण की वजह से दुनिया में होने वाली कुल मौतों का एक-चौथाई है। इसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषण का सबसे घातक असर बच्चों व गर्भवती महिलाओं पर देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से गर्भवती महिलाओं में समय से पहले जन्म देने और नवजातों का वजन कम होने जैसे मामले बढ़ रहे हैं।
 
 
राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। बीते एक सप्ताह से यहां लगातार प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इस सप्ताह तो वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 401 तक पहुंच गया। इस हालत को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने पहले नवंबर से दस दिनों के लिए निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है।
 
कुप्रभाव
खतरनाक स्थिति तक पहुंचते वायु प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों और सांस पर ही नहीं होता। देश में डाइबिटीज या मधुमेह के मरीजों व गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भ में पलने वाले शिशुओं पर भी इनका काफी प्रतिकूल असर होता है। बीते साल अमेरिकी विशेषज्ञों के अध्ययन के आधार पर लैंसेट स्वास्थ्य पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था कि पीएम 2.5 का मधुमेह के मरीजों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
 
 
वर्ष 2017 में देश में मधुमेह के मरीजों की तादाद 7.20  करोड़ होने का अनुमान था। वर्ष 2025 तक इस तादाद के दोगुनी होने का अंदेशा है। गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मोटे अनुमान के मुताबिक देश में पैदा होने नवजातों में से लगभग एक चौथाई समय से पहले ही पैदा हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण ही इसकी सबसे प्रमुख वजह है।
 
 
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि हवा में घुलते जहर के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें वाहनों से निकलने वाले धुएं के अलावा विभिन्न औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाला कचरा और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को ठीक से लागू नहीं किए जाने जैसी वजहें शामिल हैं।
 
 
कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्वारण विशेषज्ञ डॉ. सुगत हाजरा कहते हैं, "यह समस्या बहुआयामी है। दशकों से किसी भी सरकार या प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों ने बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। अब नतीजा सामने है।''
 
 
डॉ. हाजरा कहते हैं कि इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए आम लोगों में जागरुकता फैलाने के साथ ही एक एकीकृत योजना बना कर उसे गंभीरता से लागू करना होगा। कोलकाता स्थित चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के पूर्व सहायक निदेशक मानस रंजन रे कहते हैं, "वायु प्रदूषण एक साइलेंट किलर है। यह एक राष्ट्रीय समस्या है, जिससे निपटने के लिए तत्काल ठोस उपाय करना जरूरी है।''
 
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 
 

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