Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जबरन बच्चा जनने को मजबूर हैं ये महिलाएं

हमें फॉलो करें जबरन बच्चा जनने को मजबूर हैं ये महिलाएं
यौन उत्पी़ड़न की शिकार महिलाओं को गर्भपात कराने के लिए 20 हफ्ते की समयसीमा में छूट नहीं है। इसके चलते वे मजबूरन बच्चे को जन्म देती हैं और बच्चे को गोद देने वाली एजेंसियों को सौंपने के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं रहता।
देहव्यापार और यौन शोषण के खिलाफ तमाम कानून होने के बावजूद आज भी पीड़ित महिलाओं की तकलीफों को कम नहीं किया जा सका है। यौन उत्पी़ड़न, सेक्स कारोबार और बलात्कार आदि की शिकार महिलाओं के लिए गर्भपात के लिए 20 हफ्ते की समय सीमा में कोई छूट नहीं है। इसके चलते मजबूरन इन्हें बच्चे को जन्म देना पड़ता है और इसके बाद बच्चे को गोद देने वाली एजेंसियों को सौंपने के अलावा इनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। लेकिन यह पूरी प्रकिया इन महिलाओं के लिए किसी मानसिक पीड़ा से कम नहीं है।
 
पुणे में रेस्क्यू फाउंडेशन में काम करने वाली शाइनी वर्गीस एक ऐसी ही पीड़ित महिला के बारे में बताती हैं जिसे एक वेश्यालय से बचाकर लाया गया था। शाइनी ने बताया कि जब उस महिला को लाया गया था तब उसके पेट में 19 हफ्ते का गर्भ था लेकिन वह गर्भपात कराना चाहती थी। उस महिला की लड़ाई समय के विरूद्ध थी लेकिन फिर भी हमने न्यायालय में गर्भपात से जुड़ी एक याचिका दायर की। लेकिन जब तक सुनवाई का समय आता एक हफ्ते का समय गुजर चुका था। अदालत ने याचिका मंजूर करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकती। इसके बाद उस महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया और उसे बाद में गोद देने के लिए सौंप दिया गया।
 
देह कारोबार, बलात्कार और यौन शोषण से ऐसी महिलाओं और लड़कियों को बचाने वाले काउंसिलर कहते हैं कि पहले अनचाहे गर्भ और फिर गोद देने की प्रक्रिया इन महिलाओं के लिए बहुत कष्टदायक होती है। काउंसिलर लीना जाधव के मुताबिक "एक 16 वर्षीय लड़की ने बताया था कि जब वह गर्भपात कराना चाहती थी तो उसे कोई मदद नहीं दी गई और उसे जन्म के बाद बच्चे को गोद देने के लिए कहा गया।
 
याचिकाओं का दौर
पिछले कुछ समय में महिलाओं से जुड़ी ऐसी तमाम याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं। एक बलात्कार पीड़िता ने अपनी याचिका में 20 हफ्ते से भी अधिक के गर्भ को गिराने की मांग की थी। ऐसे हर मामले को न्यायालय विशेषज्ञों की समिति के पास भेज देता है और इसके बाद ही फैसला सुनाता है। भारतीय कानून गर्भ धारण करने के 20 हफ्ते बाद गर्भपात की अनुमति नहीं देता लेकिन चिकित्सीय परामर्श के बाद कुछ मामलों में यह संभव है।
 
काउंसिलर और इस दिशा में काम कर रहे कार्यकर्ता चाहते हैं कि 20 हफ्ते की इस अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते तक किया जाना चाहिए। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अदालत के फैसले विशेषज्ञों की राय पर आधारित होते हैं इसलिए डॉक्टरों को कानूनी रूप से सशक्त बनाया जाना चाहिए ताकि इन पीड़ित महिलाओं को इस तरह की कानूनी लड़ाई में न फंसना पड़े। स्वास्थ्य संस्था, सेंटर फॉर इनक्वाइरी इंटू हेल्थ ऐंड एलाइड थीम्स (सीईएचएटी) की संगीता रेगे के मुताबिक महिलाएं गर्भधारण की जानकारी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक वजहों के चलते देर से देती हैं इसलिए अस्पतालों में विशेष समिति बनाई जानी चाहिए जो इन मामलों में निर्णय ले सकें।
 
आधे पीड़ित नाबालिग
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में मानव तस्करी और शोषण के कुल 9127 मामलों को दर्ज किया गया था। इनमें 43 फीसदी में पीड़ितों की उम्र 18 वर्ष से कम थी। एक एनजीओ में काम करने वाली प्रीति कहती हैं कि कई बार देह व्यापार में फंसी इन लड़कियों को अपने गर्भवती होने के बारे में पहले ही पता चल जाता है लेकिन उन्हें लगता है कि गर्भपात गैरकानूनी है और वह कुछ नहीं कर सकती।
 
अगर पीड़ित महिलाएं 20 हफ्ते बाद अस्पताल में गर्भपात के लिए जाती हैं तो उनसे यौन अपराध से जुड़ी एफआईआर की कॉपी मांगी जाती है जो इनके लिए पेश करना बहुता मुश्किल होता है। कार्यकर्ता मानते हैं कि अब भी गर्भपात को अधिकार का दर्जा नहीं दिया गया है। अधिकतर मामलों में बलात्कार पीड़ित महिलाएं कोई आपराधिक मामले दर्ज नहीं करातीं लेकिन गर्भपात के लिए उन्हें एफआईआर दर्ज करानी होती है। परामर्शी सेवाएं देने वाले काउंसिलर्स ने बताया कि यौन उत्पीड़न के चलते गर्भ धारण करने की स्थिति में कानूनी रूप से गर्भपात का प्रावधान है लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ऑस्कर के ऐतिहासिक भूल वाले ड्रामे के पीछे कौन?