उत्तरप्रदेश में सोलर चरखे ने बहुत से औरतों की जिंदगी बदल दी है। सरकार की तरफ गांव की औरतों को मिल रहा सोलर चरखा उनकी मुसीबतें घटाने के साथ ही कमाई भी बढ़ा रहा है और वो भी धरती को नुकसान पहुंचाए बगैर। यह उत्तरप्रदेश सरकार की पर्यावरणसम्मत तरीकों से ग्रामीण महिलाओं का काम और आय बढ़ाने की कोशिशों के तहत हुआ।
अनितादेवी ने हाथों में दर्द, मामूली कमाई और जरूरतें पूरी करने में लगातार संघर्ष के कारण पारंपरिक सूत कातने का पारंपरिक काम काम छोड़ दिया था। 2019 में अचानक उनकी जिंदगी तब बदल गई, जब उन्हें सौर ऊर्जा से चलने वाले 2 चरखे मिले।
यह उत्तरप्रदेश सरकार की पर्यावरणसम्मत तरीकों से ग्रामीण महिलाओं का काम और आय बढ़ाने की कोशिशों के तहत हुआ। 12 तिलियों वाले चरखा अनितादेवी के पुराने चरखे से दोगुना काम करता है। इसमें मोटर और बैटरी लगी है, जो 400 वॉट के सोलर पैनल से जुड़ा है।
काम और कमाई बढ़ी
34 साल की अनिता इस सोलर चरखे से हर दिन 1.5 किलो सूती धागा तैयार कर लेती हैं, जो पुराने चरखे से महज 400 ग्राम ही होता था। इसके कारण हर महीने उनकी औसत आमदनी 4 गुना बढ़कर 10 हजार रुपए तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि अतिरिक्त आय से हम अच्छा खाना और स्वास्थ्य सेवा के साथ ही बच्चों के लिए ट्यूशन का भी इंतजाम कर ले रहे हैं।
अनिता उत्तरप्रदेश की उन 4,000 महिलाओं में एक हैं जिन्हें हाल के वर्षों में राज्य सरकार की पहल पर सोलर चरखा मिला है। भारत बिजली पैदा करने के लिए कोयले का इस्तेमाल घटाना चाहता है। इनकी जगह अक्षय ऊर्जा स्रोत से 2030 तक 500 गीगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया है, जो फिलहाल 115 गीगावॉट है। उत्तरप्रदेश में सौर ऊर्जा से कारोबार, घर और समुदायों को ऊर्जा मुहैया कराने की तैयारी हो रही है। सबसे पहले उन लोगों पर ध्यान दिया जा रहा है, जो अभी ग्रिड से नहीं जुड़े हैं।
2018 से हर साल सोलर चरखा और 50,000 हजार रुपए उत्तरप्रदेश की 1,000 महिलाओं को राज्य खादी और ग्रामीण उद्योग बोर्ड यानी यूपीकेवीआईबी की तरफ से दिए जा रहे हैं। बहुत-सी औरतें घर से काम करती हैं जबकि दूसरे लोगों ने गांव में गैरलाभकारी संस्थाओं के बनाए उत्पादन केंद्रों का रुख किया है।
भारत में करोड़ों लोग खासतौर से हाशिये पर मौजूद समुदायों की महिलाएं अपने घर से कपास बुनने का काम करती हैं। हालांकि उन तक औद्योगिक विकास नहीं पहुंचा है और अकसर वो न्यूनतम आय भी अर्जित नहीं कर पाती हैं।
यूपीकेवीआईबी के अतिरिक्त मुख्य सचिव नवनीत सहगल का कहना है कि ग्रामीण और पितृसत्तात्मक परिवारों की महिलाओं को इस काम की ट्रेनिंग के लिए तैयार करना शुरुआत में बड़ी चुनौती थी। हालांकि उनका यह भी कहना है कि धीमी शुरुआत के बाद अब इस काम ने जोर पकड़ लिया है। उनका कहना है कि भरोसे और अधिक आत्मविश्वास के साथ उनका काम, घर चलाने के फैसलों में उनकी बढ़ती हिस्सेदारी और ऐसी महिलाओं की बढ़ती संख्या को देखना बहुत संतोष देने वाला है।
'मिशन सोलर चरखा'
उत्तरप्रदेश में यह योजना एक देशभर में चली एक और योजना के बाद शुरू हुई। 'मिशन सोलर चरखा' नाम की इस परियोजना में चरखा देकर 1 लाख लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था। इसके जरिये देशभर के 50 इलाकों में बुनकरों और दर्जियों को जोड़ने का विचार था। उत्तरप्रदेश का कार्यक्रम अलग है, सोलर चरखा स्थानीय स्तर पर काम कर रहे समाजसेवी संगठनों के जरिये बांटा जाता है। इनमें से एक है अवध युवा कल्याण ग्रामोद्योग संस्थान, यह महिलाओं को सूत के लिए पैसे भी देता है।
इस सूत से संस्थान के नेटवर्क की दूसरी महिलाएं खादी के तरीके से कपड़ा बुनती हैं और फिर इन्हें बेचा जाता है। संस्थान के प्रमुख अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि इन महिलाओं में अब अधिक जागरूकता है- अब यह चाहे सामुदायिक बचत के लिए हो, संकट के दौर में एक-दूसरे की मदद या फिर सौर ऊर्जा की उनकी जिंदगी में महत्व के बारे में बात करना हो।
यूपीकेवीआईबी ऐसे संस्थानों की आर्थिक मदद करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि उत्पादन टिकाऊ तरीके से हो। इसके साथ ही उनके बनाए सामान को देशभर में होने वाले कार्यक्रमों में दिखाया जाता है।
ग्रीनवेयर फैशन जैसी स्थानीय कपड़ा कंपनियां सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण और रोजगार देकर इस काम में एक अहम भूमिका निभा रही हैं। ये कंपनी न सिर्फ सोलर चरखा बल्कि सौर ऊर्जा से चलने वाली लूम और सिलाई मशीनों का भी इस्तेमाल करती हैं। कंपनी बड़ी मात्रा में सोलर यार्न भी खरीदती है। कंपनी के संस्थापक अभिषेक पाठक कहते हैं कि यह सिर्फ पैसा कमाने के बारे में नहीं बल्कि हमारे व्यापार को पर्यावरण साफ रखने के टिकाऊ कीमत के साथ आना चाहिए।
कंपनी के साथ जुड़ी राबिया खातून का कहना है कि ग्रीनवेयर ने मुझे संकट के दिनों मे काम दिया, प्रशिक्षण दिया और सोलर लूम के इस्तेमाल से मुझे और मेरे परिवार को पालने में मदद की। खातून हर महीने 10-12 हजार रुपए कमाती हैं।
गांवों के घर भी हुए रोशन
उत्तरप्रदेश में केवल बुनकरों और सूत कातने वाले ही सोलर ऊर्जा का लाभ नहीं ले रहे हैं, बल्कि तेल और चावल की मिलें, रेस्तरां और इसी तरह के कई छोटे-मोटे कारोबार कारोबार में सौर ऊर्जा से मदद मिल रही है। सरकार ऐसे व्यापार को कर्ज के रूप में धन भी मुहैया करा रही है। गोंडा जिले के एक गांव में संगीतादेवी रेस्तरां चलाती हैं। इसके लिए उन्होंने 5 किलोवॉट की क्षमता वाला सोलर पैनल लगाया है। इससे न सिर्फ उनके रेस्तरां की बत्तियां और पंखे बल्कि मोटर और फ्रिज भी चलते हैं। वे बताती हैं कि मेरा बिजली का बिल आधे से भी कम हो गया है और अब डीजल का कोई खर्च नहीं है, मुझे इससे ज्यादा और क्या चाहिए। इन सबके नतीजे में उनका मुनाफा पहले की तुलना में दोगुना हो गया है।
उत्तरप्रदेश अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी का कहना है कि उसने करकीब 700 मेगावॉट की क्षमता वाला सोलर ग्रिड बनाया है। इससे दर्जनभार गांवों के 60,000 घरों को बिजली, 3 लाख स्ट्रीट लाइट और सिंचाई के लिए किसानों के 20,000 पंपों को बिजली मिल रही है।