-एला जॉयनर
यूरोपीय संघ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इजराइल गाजा में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। ऐसे में यूरोपीय संघ इजराइल के साथ एक बड़ा व्यापारिक समझौता रोक सकता है लेकिन वह ऐसा कर नहीं रहा है। यूरोपीय संघ की एक रिपोर्ट में गाजा में इजराइल के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। जिसके बाद स्पेन के प्रधानमंत्री, पेद्रो सांचेज ने यूरोपीय संघ कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि जब गाजा में 'नरसंहार जैसी भयानक स्थिति' बन रही है, तब भी ईयू इजराइल के साथ व्यापारिक समझौते बंद करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठा रहा है।
हमास प्रशासित गाजा के अधिकारियों के अनुसार, पिछले 18 महीनों में इजराइल हमलों में 55,000 से ज्यादा फिलीस्तीनियों की मौत हो चुकी है। हालांकि, इजराइल नरसंहार के आरोपों को सख्ती से खारिज करता है और कहता है कि वह हमास के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है। हमास ने अक्टूबर, 2023 में इजराइल पर बड़ा आतंकी हमला किया था।
यूरोपीय संघ की विदेश नीति सेवा ने हाल ही में सदस्य देशों के बीच एक रिपोर्ट साझा की, जिसमें अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की जांच और आरोपों के आधार पर यह कहा गया कि इजराइल मानवाधिकारों का सम्मान करने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहा है।
हालांकि, यह दस्तावेज सार्वजनिक नहीं है, लेकिन डीडब्ल्यू ने इसकी कॉपी देखी है। इसमें बताया गया है कि इजराइल की ओर से आम लोगों को निशाना बनाकर किए गए हमले, भोजन और दवाओं की नाकेबंदी, और अस्पतालों पर हमले मानवाधिकार का उल्लंघन हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया है, 'ऐसे संकेत हैं कि इजराइल अपने मानवाधिकार संबंधित कर्तव्यों का उल्लंघन कर रहा है।'
ब्रसेल्स में ईयू शिखर सम्मेलन में पहुंचे स्पेन के प्रधानमंत्री, पेद्रो सांचेज ने कहा, 'यह तो बिल्कुल साफ है कि इजराइल, ईयू-इजराइल समझौते के अनुच्छेद-2 का उल्लंघन कर रहा है।' उन्होंने आगे कहा, 'हमने रूस के खिलाफ यूक्रेन पर हमले को लेकर 18 बार प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन जब बात इस्रायल की आती है, तो यूरोप अपनी दोहरी नीति दिखाता है। और एक सामान्य समझौते को निलंबित करने की भी हिम्मत नहीं करता है।'
समझौता रद्द होने की कोई संभावना नहीं
ईयू के 27 देशों में से केवल स्पेन और आयरलैंड ही हैं, जो खुलकर इजराइल के साथ हुए समझौते को पूरी तरह से निलंबित करने की मांग कर रहे हैं। हालांकि ऐसा फैसला तभी लिया जा सकता है, जब सभी सदस्य देश एकमत हो और यही कारण है कि यह मांग गंभीर रूप से सामने नहीं आ पाई है। हालांकि, ग्रीस, जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया और बुल्गारिया जैसे देश अभी भी इजराइल के नजदीकी सहयोगी बने हुए हैं।
खासकर जर्मनी ने इस मुद्दे पर अपना रुख साफ कर दिया है। जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा, 'जर्मनी की संघीय सरकार के लिए यह फैसला विचार योग्य नहीं है।'
अगर इस समझौते को निलंबित किया जाता है, तो यह एक बड़ी व्यापारिक बाधा हो सकती है। खासकर इजराइल के लिए, जो अपना एक-तिहाई सामान यूरोपीय संघ से खरीदता है। यह समझौता साल 2000 से चल रहा है। जिसमें दोनों पक्षों के बीच व्यापार (जो सिर्फ वस्तुओं के मामले में ही हर साल 50 अरब डॉलर तक का है), राजनीतिक बातचीत और शोध व तकनीकी सहयोग तक सब कुछ शामिल है।
एक और विकल्प यह हो सकता है कि समझौते का आंशिक निलंबन किया जाए। जैसे मुक्त व्यापार से जुड़े प्रावधानों को रोका या फिर इजराइल को यूरोपीय संघ के रिसर्च फंडिंग प्रोग्राम से बाहर किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए 27 में से कम से कम 15 देशों की सहमति जरूरी है। कुछ कूटनीतिक सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि इतने समर्थन की संभावना दिख नहीं रही है।
इजराइल को 'सजा देना' उद्देश्य नहीं
इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के प्रमुख, काया कलास ने यह रिपोर्ट औपचारिक रूप से सदस्य देशों के सामने पेश की। जिसमें उन्होंने साफ कर दिया कि तुरंत कोई सख्त कदम नहीं उठाया जा सकता है। उन्होंने सोमवार को कहा, 'इसका मकसद इजराइल को सजा देना नहीं है, बल्कि गाजा के लोगों के जीवन में सुधार लाना है। अगर हालात नहीं सुधरे, तो जुलाई में हम इस पर फिर से चर्चा कर सकते हैं और आगे के कदमों पर विचार कर सकते हैं।'
गुरुवार को ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में इस रिपोर्ट को केवल 'नोट' किया गया यानी रिपोर्ट को ध्यान में लाया गया। इसमें इस्रायल की ओर से मानवाधिकार उल्लंघन का कोई जिक्र नहीं किया गया। नेताओं ने सिर्फ यह कहा कि इस मुद्दे पर अगले महीने फिर से चर्चा होना चाहिए। साथ ही, 27 देशों के नेताओं ने एक स्वर में गाजा की भयावह मानवीय स्थिति, आम नागरिकों की मौत, और भुखमरी के हालात पर चिंता जताई।
इजराइल से ज्यादा विवादित किसी की विदेश नीति नहीं
स्पेन ने यूरोपीय संघ से यह भी मांग की है कि इजराइल को हथियार बेचने पर प्रतिबंध लगाया जाए और उस पर अधिक प्रतिबंध लगाए जाएं। हालांकि जर्मनी (जो इजराइल के लिए हथियारों का एक बड़ा सप्लायर है) ने हाल ही में साफ कर दिया है कि वह इजराइल को हथियार बेचना जारी रखेगा। ऐसे में जर्मनी के समर्थन के बिना यह कदम असरदार नहीं हो पाएगा।
बेल्जियम, फ्रांस और स्वीडन जैसे कुछ दूसरे देशों ने भी इजराइल पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने का समर्थन किया है, लेकिन ऐसे प्रतिबंध लगाने के लिए भी सभी सदस्य देशों की सहमति जरूरी है, जो कि अभी तक संभव नहीं हो पाया है। सांचेज की बात से सहमति जताते हुए आयरलैंड के नेता, माइकल मार्टिन ने कहा कि वे शिखर सम्मेलन में अपने साथियों से कहेंगे, 'यूरोप के लोगों को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि यूरोपीय संघ इजराइल पर दबाव क्यों नहीं डाल सकता है।'
क्राइसिस ग्रुप' नाम के संघर्ष समाधान से जुड़े थिंक टैंक की लीसा म्यूजिओल के अनुसार, इजराइल पर अधिकतम दबाव डालने के लिए जरूरी होगा कि हथियारों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए, सरकारी अधिकारियों पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगे और ईयू -इजराइल एसोसिएशन एग्रीमेंट को पूरी तरह से निलंबित किया जाए।
म्यूजिओल ने डीडब्ल्यू को भेजे एक लिखित बयान में कहा, 'लगभग कोई भी यूरोपीय नेता इन सख्त कदमों की बात नहीं करता है। ईयू के भीतर शायद ही कोई और ऐसा विदेश नीति का मुद्दा होगा जिस पर सदस्य देश इतने बंटे हुए नजर आए।'
ईरान के साथ तनाव के बाद यूरोपीय देश फिर पुराने रुख पर लौटे
पिछले महीने एक समय ऐसा लग रहा था कि यूरोपीय संघ इजराइल को लेकर अपनी नीति सख्त करने जा रहा है। जब 20 मई को नीदरलैंड ने ईयू-इजराइल एसोसिएशन एग्रीमेंट की समीक्षा का प्रस्ताव रखा था और संघ के अधिकांश सदस्य देशों ने उसे मंजूरी दे दी थी। इससे कुछ ही दिन पहले फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा ने गाजा में इजराइल के ताजा सैन्य अभियान की आलोचना करते हुए एक साझा बयान जारी किया था। जिसमें उन्होंने इजराइल की सहायता पर लगी पाबंदियों को 'पूरी तरह गैरसमानुपातिक' बताया और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन है।
उस समय ऐसा महसूस हो रहा था कि यूरोपीय नीति में बदलाव आ सकता है। हालांकि क्राइसिस ग्रुप की लीसा म्यूजिओल के अनुसार, अब वह धारणा खत्म होती नजर आ रही है। उन्होंने कहा, 'हाल में इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बाद, कई सदस्य देश फिर से अपने पुराने रुख पर लौट आए हैं।' म्यूजिओल ने यह भी कहा, 'यहां तक कि जर्मनी और इटली जैसे देश भी जो पहले से इजराइल के मजबूत समर्थक रहे हैं और हाल में वह कुछ हद तक आलोचनात्मक अवश्य हो गए थे, लेकिन अब फिर से उनका लहजा नरम नजर आ रहा है।'