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दक्षिण एशियाई इस्लाम की धारणा पर चोट है सिंध हमला

हमें फॉलो करें दक्षिण एशियाई इस्लाम की धारणा पर चोट है सिंध हमला
, शनिवार, 18 फ़रवरी 2017 (10:37 IST)
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 16 फरवरी को हुए एक आत्मघाती हमले में 70 से अधिक लोग मारे गए। सूफी संस्कृति के इस केंद्र पर हुए हमले से साफ है कि आतंकी समूह बहुलतावादी संस्कृतियों से खतरा महसूस कर रहे हैं।
सिंध प्रांत हमेशा से अपनी बहुलतावादी संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है। सदियों से यह इलाका अपनी धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक उदारता के लिए मशहूर रहा है जहां न सिर्फ इस्लामी फिरके बल्कि विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग आपस में मिलकर रहते आए हैं। सूफियों द्वारा प्रचारित और प्रसारित इस्लाम ने इस मामले में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन पिछले 16 फरवरी को इस सूफी संस्कृति को उस वक्त तगड़ा झटका लगा जब आतंकी संगठन आईएस से जुड़े एक तथाक​थित आत्मघाती हमलावर ने लाल शाहबाज कलंदर की मजार पर इकट्ठा लोगों के बीच जाकर खुद को उड़ा लिया और करीब 70 अन्य लोगों को भी इस हमले की जद में ​ले लिया। 13वीं सदी में हुए सूफी संत लाल शाहबाज कलंदर पूरे दक्षिण ए​शिया में काफी लो​कप्रिय थे और आसपास के देशों से हर वर्ष हाजारों लोग उनकी मजार पर आते हैं।
 
अन्य सूफी संतों की ही तरह लाल शाहबाज कलंदर भी इस्लाम की सहिष्णु व्याख्या पर विश्वास करते थे जिसके तहत बाहरी ​रीति रिवाजों के मुकाबले आंतरिक आध्यात्मिकता पर जोर दिया जाता है। गुरुवार को हुए हमलों ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई इस्लाम की मूल अवधारणा को झकझोर दिया है और उसकी जगह पिछले कुछ दशकों के दौरान कट्टरपंथी सऊदी वहाबी इस्लाम ने ली है। यह पहला मौका नहीं है जब वहाबी और देवबंदी फिरकों से ताल्लुक रखने वाले कट्टरपंथियों ने सूफी तीर्थस्थलों को निशाना बनाया है।
 
इतिहासकारों का मानना है कि शिया और हनफी लोग इस्लाम की व्यापक सांस्कृतिक व्याख्या पर भरोसा करते हैं और फारसी एवं अरबी संतों से प्रेरणा ​लेते हैं। इन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के प्रचार प्रसार में काफी अहम भूमिका निभाई है। हालांकि सुन्नी मत के मानने वालों में भी वहाबी और देवबंदी लोगों की संख्या बहुत ही कम है जो शुद्धतावादी इस्लाम में भरोसा करते हैं और सूफी संतों की मजार पर जाने की परंपरा को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं। पाकिस्तानी इतिहासकार डॉ। महबूब अली ने डीडब्ल्यू को बताया कि वहाबी लोग किसी भी प्रकार के बहुलतावाद के खिलाफ हैं और इसलिए सूफी संतों की मजारों, सांस्कृतिक उत्सवों पर हमला करते हैं। 
 
कराची में काम करने वाले वकील और मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले शोएब अशरफ का कहना है कि इस्लामी कट्टरपंथी पाकिस्तानी समाज की विविधता को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस हद तक का चरमपंथ सहन करने की स्थिति में नहीं है। देश ​विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है लेकिन ऐसे हमलों से देश को ऐसा नुकसान हो रहा है जिसकी भरपाई कर पाना संभव नहीं होगा। इन हमलों से लोगों में भी काफी गुस्सा है और बहुत से लोग अब सेना के उन दावों पर भी सवाल उठाने लगे हैं कि सेना अफगान सीमा पर इस्लामी चरमपंथियों पर रोक लगाने में सफल रही है। यही वजह है कि शांति समर्थक पाकिस्तान सरकार से वहाबियों का समर्थन बंद करने, बहुलतावादी इस्लाम को बढ़ावा देने और उनका प्रचार प्रसार करने की मांग कर रहे हैं।

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