Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बांग्लादेश: कम मजदूरी के चलते तंगहाली में जीते कपड़ा मजदूर

हमें फॉलो करें बांग्लादेश: कम मजदूरी के चलते तंगहाली में जीते कपड़ा मजदूर

DW

, गुरुवार, 9 नवंबर 2023 (11:21 IST)
-अराफातुल इस्लाम
 
बांग्लादेश में महंगाई से तंग आकर हजारों कपड़ा मजदूर सड़कों पर उतर आए हैं। फैक्टरियों के प्रतिनिधियों और मजदूर यूनियनों दोनों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय फैशन कंपनियां समस्या के समाधान में मदद कर सकती हैं। मंगलवार को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में कपड़ा मजूदरों का विरोध-प्रदर्शन एक बार फिर शुरू हो गया। हजारों मजदूरों ने एक बस को आग लगा दी जिसके बाद पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी।
 
मजदूर कई हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे हैं और बेहतर वेतन मांग रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा वेतन से वह अपनी जरूरतें पूरा नहीं कर पाते हैं। मंगलवार को ढाका से करीब 25 किलोमीटर उत्तर में स्थित औद्योगिक शहर गाजीपुर में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ।
 
मजदूरों को जब खबर मिली कि अधिकारियों ने वेतन बढ़ाने की उनकी मांग को पूरी तरह से मंजूर नहीं किया तो करीब 10,000 मजदूर कारखानों से निकल गए और प्रदर्शन करने लगे। ढाका के आस पास से और भी बड़े प्रदर्शनों की खबरें आई हैं।
 
सरकार ने मंगलवार को कपड़ा मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन को 8,300 टाका से बढ़ा कर 12,500 टका कर दिया था, लेकिन कुछ प्रदर्शनकारियों का कहना था कि 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी बहुत ही कम थी। मजदूर न्यूनतम 23,000 टका की मांग कर रहे हैं।
 
मजदूरों का संघर्ष
 
बांग्लादेश की 3,500 कपड़ा फैक्टरियां, लीवाइज, जारा और एचएंडएम जैसी दुनिया में फैशन की सबसे बड़ी कंपनियों के लिए कपड़े बनाती हैं। लेकिन उनमें काम करने वाले 40 लाख मजदूरों के लिए हालात बेहद खराब हैं। उनमें से कई न्यूनतम वेतन पर गुजारा करने के लिए मजबूर हैं जो अब करीब 113 डॉलर मासिक के बराबर है।
 
बांग्लादेश गारमेंट एंड इंडस्ट्रियल वर्कर्स फेडरेशन की अध्यक्ष कल्पना अख्तर ने डीडब्ल्यू को बताया कि जिंदगी बड़ी मुश्किल हो गई है, क्योंकि उनके लिए महामारी के बाद जरूरी चीजों के दामों में आई महंगाई की वजह से गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
 
अख्तर कहती हैं कि बढ़ते दामों से जूझने के लिए मजदूर अपने भोजन में कमी करते जा रहे हैं। वो जिंदा रहने के लिए अपने भोजन में से चीजों को कम करते जा रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अगर मौजूदा वेतन से उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पाएंगी तो वो निश्चित ही ऐसे वेतन की मांग करेंगे जिससे उनका गुजारा हो सके।
 
दर्जी का काम करने वाली 22 साल की सबीना बेगम ने एएफपी समाचार एजेंसी को बताया कि वो भी प्रदर्शनों में शामिल हो गईं, क्योंकि वो अपने परिवार के खाना सुनिश्चित करने में भी संघर्ष कर रही थीं। उन्होंने बताया की मौजूदा न्यूनतम वेतन उनकी मूल जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाता है।
 
ढाका के 'डेली स्टार' अखबार के मुताबिक अक्टूबर में देश में महंगाई दर में एक बार फिर उछाल आया और उसे काबू में करने के सरकार के बार बार दिए वादों के बावजूद 9।93 प्रतिशत पर पहुंच गई। सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कंबोडिया, चीन, भारत, इंडोनेशिया विएतनाम जैसे कपड़े बनाने वाले दूसरे देशों के मुकाबले बांग्लादेश के कपड़ा मजदूरों को सबसे कम न्यूनतम वेतन मिलता है।
 
बांग्लादेश इंस्टिट्यूट फॉर लेबर स्टडीज (बीआइएलएस) के विस्तृत अध्ययनों ने दिखाया है कि मजदूरों को गरीबी रेखा से ऊपर रहने के लिए कम से कम 23,000 टाका चाहिए।
 
क्या उद्योग मजदूरों की मांगें पूरी कर सकता है?
 
मजदूर इसी न्यूनतम वेतन की मांग पर उतरे हुए हैं, क्योंकि हर 5 सालों में वेतन की समीक्षा करना कपड़ा उद्योग के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य है। 2023 में पिछली समीक्षा के 5 साल पूरे हो रहे हैं।
 
क्लीन क्लॉथ्स कैंपेन की जन संपर्क संयोजक बोगु गोज ने डीडब्ल्यू को बताया कि इससे कम वेतन मजदूरों को और 5 सालों के लिए गरीबी के चक्र में फंसाकर रख देगा और उसकी वजह से उनके परिवारों में कुपोषण, ऋण और बाल मजदूरी और बढ़ जाएगी।
 
कल्पना अख्तर कहती हैं कि 2018 में हुई पिछली वेतन समीक्षा के बाद आर्थिक रूप से कई चीजें बदल गई हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि उस समय के मुकाबले आवश्यक चीजों के दाम दोगुना या तीनगुना बढ़ गए हैं। इस अवधि में मजदूरों के वेतन में सिर्फ करीब 1,500 टाका की बढ़ोतरी आई है। यह बिल्कुल भी काफी नहीं है।
 
कपड़ा मजदूरों के वेतन बोर्ड में फैक्टरी मालिकों के प्रतिनिधि मोहम्मद सिद्दीकुर रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया कि मजदूरों के न्यूनतन वेतन को उस वेतन के आधार पर बढ़ाया जाएगा, जो हमारे देश के लिए वाजिब है।
 
रहमान ने कहा कि उन्होंने पहले भी 20,000 से 22,000 टाका न्यूनतम वेतन की मांग की है। उनका दावा है कि हाल के प्रदर्शन वेतन में बढ़ोतरी से ज्यादा राजनीति के बारे में हैं, क्योंकि यह प्रदर्शन विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शनों के साथ हुए हैं जिनमें पार्टियों ने जनवरी में होने वाले चुनावों से पहले प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा मांगा है।
 
लेकिन अख्तर का कहना है कि हजारों मजदूर राजनीतिक प्रदर्शनों के शुरू होने से पहले से प्रदर्शन कर रहे थे। अख्तर ने यह भी कहा कि मजदूरों को बस उनके मासिक वेतन की चिंता है। उन्होंने बताया कि इन प्रदर्शनों को खत्म कराने के लिए कड़ी कार्रवाई की जा रही है। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कई मामले दायर किए गए हैं। कई मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया गया है और उनमें से कुछ को राजनीतिक एक्टिविस्ट बता दिया गया।
 
क्या अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कर सकती हैं मदद?
 
बोगु गोज का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों, और विशेष रूप से न्यूनतम वेतन के लिए प्रतिबद्ध एसओएस, एचएंडएम और यूनिक्लो जैसे ब्रांडों, को 23,000 टाका की मांग का समर्थन करना चाहिए, मजदूरी पर बढे हुई खर्च का भार उठाना चाहिए और लंबी अवधि में भी बांग्लादेश से ही कपड़े लेने का वादा करना चाहिए।
 
गोज ने कहा कि बीआइएलएस के अध्ययन के मुताबिक, जिन मजदूरों से बात की गई उन सभी ने बताया कि मौजूदा वेतन से वो पूरे महीने ना खुद पोषक खाना खा सकते हैं और ना अपने परिवार को खिला सकते हैं।
 
उन्होंने कहा कि जब तक ब्रांड स्पष्ट रूप से न्यूनतम वेतन की मजदूरों की मांग का समर्थन नहीं करते तब तक उनकी लिविंग वेज प्रतिबद्धता खोखले वादों के सिवा कुछ नहीं है। रहमान भी मानते हैं कि वो मजदूर जो इन कंपनियों के लिए कपड़े बनाते हैं, उनके न्यूनतम वेतन को बढ़ाने में इन कंपनियों की भूमिका है।
 
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके द्वारा हर कपड़े पर 10 से 15 सेंट की बढ़ोतरी हमारे लिए काफी होगी। अगर वो ऐसा करती हैं तो इस पर यहां कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करता। वो फैक्टरी मालिकों पर ही वेतन बढ़ाने का दबाव डालती हैं। उनके पास पैसा कहां से आएगा?(Photo Courtesy: Deutsche Vale)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मध्य प्रदेश में ‘पांव-पांव वाले भैया’ शिवराज क्या पार करा पाएंगे बीजेपी की नैया