आना कार्टहाउज
अभी भी कुछ लोगों के सीने में यह कृत्रिम हृदय धड़क रहा है, लेकिन अहम सवाल यह है कि आम लोगों तक यह तकनीक कब पहुंचेगी?
हृदय वास्तव में हमारे शरीर का एक काफी सरल अंग होता है। यह एक पंप है, जिसमें चार चैम्बर, कुछ वाल्व, ट्यूब और वायरिंग होते हैं। इसमें मौजूद दो चैंबर में पुराना खून आता है और दो चैंबरों से साफ खून बाहर निकलता हैं। स्मार्ट वाल्व ट्रैफिक लाइट की तरह खून के एकतरफा प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
किसी इंसान में यह प्रक्रिया लगातार जारी रहती है। हालांकि, जब पंप सही तरीके से काम नहीं करता है, तो इंसान की स्थिति गंभीर होने लगती है। स्थिति ज्यादा खराब होने पर पंप इतना कमजोर हो जाता है कि यह पूरे शरीर में रक्त को प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता।
ऐसी स्थिति में लोगों को सांस लेने में भी बेहद तकलीफ होती है। उनके शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती है, इसलिए ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। ऐसे में सिर्फ एक रास्ता बचता है कि उस इंसान में नया हृदय प्रत्यारोपित किया जाए।
हालांकि, हृदय दान करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है। जर्मनी में स्थिति ज्यादा गंभीर है, क्योंकि अंग दान के लिए लोगों की लोगों की सहमति जरूरी होती है। साथ ही, अगर इस बात की कोई जानकारी नहीं होती कि किसी व्यक्ति ने मरने से पहले अंगदान की इच्छा जाहिर की है या नहीं, तो उसके परिजनों को अंतिम निर्णय लेना होता है।
1982 में पहला कृत्रिम हृदय
हृदय रोग विशेषज्ञ और हृदय सर्जन 60 वर्षों से अधिक समय से कृत्रिम हृदय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जिन मरीजों का हृदय पूरी तरह खराब नहीं होता है उनके लिए कुछ ऐसी प्रणालियां हैं जो हृदय के कुछ हिस्सों को सहारा दे सकती हैं। हालांकि, जिनका हृदय पूरी तरह खराब हो चुका होता है उनके लिए सिर्फ एक ही उपाय बचता है और वो है नया हृदय प्रत्यारोपित करना।
वर्ष 1982 में पहली बार पूरा और स्थायी हृदय अमेरिका में प्रत्यारोपित किया गया था। हालांकि, ये हृदय सिर्फ जरूरी काम ही करते हैं। वे मरीज की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं।
यही वजह है कि मरीज की सभी जरूरतों को पूरा करने वाले पहले कृत्रिम हृदय के प्रत्यारोपण की खबर काफी सुर्खियों में रही। इसके पीछे के मास्टर माइंड फ्रांसीसी हृदय सर्जन एलेन कारपेंटियर ने इससे पहले हार्ट वाल्व को लेकर काफी नाम कमाया था। उन्होंने पुरानी और आर्टिफिशियल मटीरियल को बदलने के लिए बायोमटीरियल का इस्तेमाल किया, जैसे कि सुअर का कार्टिलेज।
इसका फायदा यह हुआ कि नए हृदय वाले रोगियों को जीवन भर थक्कारोधी दवा लेने की जरूरत खत्म हो गई जबकि, कृत्रिम मटीरियल वाले हृदय में इन दवाओं की जरूरत होती है, लेकिन इनमें काफी ज्यादा खून बहने का खतरा होता है।
हाल के वर्षों में बढ़ा प्रत्यारोपण
कारपेंटियर ने पूरे हृदय में बायोमटीरियल का इस्तेमाल किया। उन्होंने जटिल सेंसर जैसे कई अन्य हिस्सों में भी बदलाव किया, ताकि वे अच्छे से काम करें। इस तरीके से उन्होंने नई तकनीक वाला कृत्रिम हृदय बनाने में सफलता पाई। यह हृदय किसी व्यक्ति की शारीरिक गतिविधि के अनुकूल हो सकता है।
इस कृत्रिम हृदय में कोमल बायोमटीरियल और संवेदकों की श्रृंखलाएं लगाई गईं जिसकी मदद से ये असली हृदय की तरह सिकुड़ता और फैलता है। अगर आपको बैठना, चलना, दौड़ना या डांस करना है, तो आपको ऐसे हृदय की जरूरत होती है जो यह सब करने में मदद कर सके। नए हृदय के साथ कोई व्यक्ति इन सभी कामों को कर पाता है।
फ्रांस की बायोमेडिकल कंपनी के वैज्ञानिकों द्वारा कारमेट के बनाए गए इस कृत्रिम हृदय को 76 वर्षीय एक मरीज के शरीर में लगाया गया। यह मरीज गंभीर हृदय रोग से पीड़ित था। नए पंप के साथ वह 74 दिनों तक जीवित रहा। कारमेट के प्रमुख स्टीफन पियाट बताते हैं कि हाल के वर्षों में हृदय बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले मटीरियल, सॉफ्टवेयर और पंपों में कई तरह के बदलाव किए गए हैं।
इस तरह के 50 हृदय अब तक रोगियों में प्रत्यारोपित किए जा चुके हैं। 14 रोगियों के लिए वे तत्कालीन समाधान के तौर पर लगाए गए थे, क्योंकि उन्हें किसी और का हृदय मिलने में देर हो रही थी। फिलहाल, करीब 15 लोगों में कारमेट का कृत्रिम दिल अब भी धड़क रहा है। वहीं, बाकी मरीजों की मौत हो चुकी है।
जटिल है कारमेट हृदय की तकनीक
कभी-कभी, तकनीकी संवेदनाओं में भी छोटी-मोटी समस्याएं हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, कारमेट हृदय बहुत बड़ा होता है। इस वजह से छोटे सीने वाले लोगों के लिए यह उपयुक्त नहीं है। खासकर, महिलाओं में अक्सर इसे प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, यह काफी जटिल भी है। इसमें करीब 250 कॉम्पोनेंट होते हैं। बर्लिन चैरिटी अस्पताल में जर्मन हार्ट सेंटर के एवगेनिज पोटापोव बताते हैं, "इसमें से हर एक कॉम्पोनेंट के टूटने का खतरा रहता है।”
इस वजह से अन्य कृत्रिम हृदय की तुलना में कारमेट हृदय अधिक असुरक्षित होता है। साथ ही, हमेशा की तरह हर सुविधा के लिए एक कीमत चुकानी होती है। हर एक कारमेट हृदय की कीमत करीब 2,00,000 डॉलर है, जो काफी महंगा है।
एवगेनिज पोटापोव कहते हैं कि कंपनी के मुताबिक हृदय प्रत्यारोपित कराने वाले आधे मरीज छह महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते। हालांकि, इन लोगों की मौत कारमेट हृदय की वजह से नहीं होती, बल्कि जिन लोगों में कृत्रिम हृदय लगाया जाता है वे आमतौर पर पहले से ही गंभीर रूप से बीमार होते हैं।
जिन लोगों में हृदय से जुड़ी समस्याएं ज्यादा गंभीर नहीं होती हैं वे अन्य सहायता प्रणालियों की मदद से कई वर्षों तक जीवित रहते हैं और अंगदान करने वाले किसी व्यक्ति की तलाश में रहते हैं।
अस्थायी समाधान है कृत्रिम हृदय
क्या लंबे समय तक कारमेट हृदय की मदद से जिंदा रहना संभव है? इस सवाल के जवाब में पियाट कहते हैं कि इसका जवाब काफी मुश्किल है।
पियाट ने घोषणा की है कि कंपनी आने वाले समय में लॉन्ग-टर्म थेरेपी की दिशा में आगे बढ़ेगी। अब तक कारमेट हृदय को सिर्फ यूरोपीय बाजार में तत्काल समाधान के तौर पर अनुमति दी गई है।
वहीं एवगेनिज पोटापोव कहते हैं, "अगर इसका आकार आधा होता और इसमें कोई तकनीकी समस्या नहीं होती, तो मैं तुरंत इसका इस्तेमाल शुरू कर देता।” वहीं, 2021 के अंत में कंपनी को गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं की वजह से अपने इस उत्पाद को एक साल के लिए बाजार से हटाना पड़ा।
इस बीच शोधकर्ता आनुवंशिक रूप से बेहतर बनाए गए सुअर के दिल और संशोधित टिश्यू पर प्रयोग कर रहे हैं। हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि वे कारमेट हृदय की अगली वर्षगांठ से पहले तक कृत्रिम हृदय की तुलना में ज्यादा सफल होंगे या अंग दान करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने से भविष्य में इस कृत्रिम समाधान की जरूरत कम हो जाएगी?