Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्यों प्रदूषित हुई त्रिपुरा में नदियां?

हमें फॉलो करें क्यों प्रदूषित हुई त्रिपुरा में नदियां?
, शनिवार, 13 जुलाई 2019 (11:39 IST)
सांकेतिक चित्र
यह सुनकर आश्चर्य हो सकता है लेकिन भारत में गंगा मिशन ने सबसे ज्यादा प्रदूषित जिन 36 नदियों की सूची तैयार की है उनमें से चार पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में हैं।
 
 
यह हाल तब है जब राज्य में कोई उद्योग नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदियों के प्रति सरकारी उपेक्षा और आम लोगों में जागरूकता का अभाव ही राज्य की नदियों के प्रदूषित होने की प्रमुख वजह है। वॉटरमैन के नाम से मशहूर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह इसके लिए आम लोगों को जिम्मेदार ठहराते हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने राज्य की नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए कानून बनाने की वकालत की है। हाल में यहां त्रिपुरा विश्वविद्यालय में सतत विकास के लिए जल व नदी प्रबंधन पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में सिंह और सोलंकी ने नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय भी सुझाए।
 
 
प्रदूषित नदियां
एवाइरल गंगा मिशन (एजीएम) के विशेषज्ञों ने देश में सबसे ज्यादा प्रदूषित जिन 36 नदियों की सूची तैयार की है उनमें से चार, हाओड़ा, मनु, बूढ़ीमां और गोमती नदियां भी शामिल हैं। राजेंद्र सिंह का कहना था, "अगर लोगों की आदतों में बदलाव नहीं आया तो इन चारों नदियों को खत्म होने से बचाना मुश्किल है।” उन्होंने सरकार से भी इन नदियों को बचाने के लिए फौरन प्रभावी उपाय करने की अपील की है। सिंह कहते हैं कि राज्य में सालाना औसतन 2200 मिमी बारिश होती है। बावजूद इसके नदियों की हालत ठीक नहीं है।
 
 
इसकी वजह समुचित प्रबंधन योजना का अभाव है। सिंह ने त्रिपुरा के उपमुख्यमंत्री जिष्णु देबबर्मा से मुलाकात के दौरान राज्य की इन चारों नदियों को बचाने के लिए कई उपाय सुझाए हैं। इनमें लोगों को हालात से अवगत कराने के लिए ई-साक्षरता अभियान शुरू करना और नदियों के पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए कानून बनाना शामिल है।
 
सिंह कहते हैं, "नदी के किनारों पर लगातार बढ़ता अतिक्रमण और नदियों में कचरा बहाने पर भी फौरन रोक लगाई जानी चाहिए। जरूरत से ज्यादा पानी निकालने की वजह से नदियों की हालत बिगड़ रही है।" उन्होंने राज्य में झूम की खेती की परंपरा बंद करने का भी सुझाव दिया है। इसकी वजह से नदी किनारे स्थित पेड़ों की कटाई के कारण भारी तादाद में मिट्टी नदी के पेट में समाती रहती है। इसका असर पर्यावरण संतुलन पर भी देखने को मिल रहा है।
 
 
सिंह ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि राज्य की 11 नदियों में से चार सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। उनका कहना था कि अगर नदियों की हालत ठीक नहीं होगी तो उसका असर लोगों की हालत पर भी पड़ेगा। खासकर राजधानी अगरतला से होकर बहने वाली हाओड़ा और काटाखाल की हालत काफी गंभीर है। इसमें फेंके जाने वाले कूड़े-कचरे की वजह से कई जगह तो दोनों नदियां नाले में तब्दील हो गई हैं। सिंह ने कहा कि अगर राज्य सरकार इस मामले को गंभीरता से लेती है तो जल बिरादरी के अलावा नेशनल वॉटर कम्युनिटी और रिवर गंगा मिशन भी राज्य की नदियों को बचाने में सरकार का सहयोग करेंगे।
 
जल संकट
नदियों के सूखने और प्रदूषित होने की वजह राजधानी अगरतला में पानी का संकट भी गंभीर होता जा रहा है। हाओड़ा नदी ही अगरतला में पानी का मुख्य स्त्रोत है। सरकार का कहना है कि इसके सूखने और कई जगहों पर प्रदूषित होने की वजह से पानी का संकट लगातार बढ़ रहा है। इसी वजह से सरकार ने 70 किलोमीटर दूर गोमती नदी से एक नहर के जरिए पानी लाने की योजना बनाई है। लेकिन पर्यावरणविदों ने 665 करोड़ की इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसकी बजाय सरकार को हाओड़ा नदी को पुनर्जीवित करने पर ध्यान देना चाहिए। गोमती नदी की धारा को नहर के जरिए मोड़ने से उसके किनारे रहने वाले किसानों का जीवन प्रभावित होगा।
 
 
त्रिपुरा में पेय जल और सैनिटेशन विभाग के चीफ इंजीनियर सुमेश चंद्र दास कहते हैं, "अगरतला में रोजाना 53 मिलियन लीटर पेय जल की जरूरत है। हाओड़ा से 25 मिलियन लीटर पानी मिलता है और बाकी पानी डीप ट्यूबवेलों के जरिए जमीन से निकाला जाता है। लेकिन भूमिगत जल का स्तर भी तेजी से घट रहा है।"
 
सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड में भूगर्भ जलशास्त्री यानी हाइड्रोलाजिस्ट आरसी रेड्डी कहते हैं, "हाओड़ा में पानी का बहाव बीते 50 वर्षों से समान है। नदी में जमा होने वाली गाद और पानी के भंडार के लिए आधारभूत ढांचे की कमी ही सबसे बड़ी समस्या है।"
 
त्रिपुरा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 2004 में किए गए एक अध्ययन के जरिए यह बात सामने आई थी कि एक हजार से ज्यादा शौचालयों से निकलने वाला मल-मूत्र सीधे इस हाओड़ा नदी में पहुंचता है। इससे नदी के प्रति सौ एमएल पानी में बैक्टीरिया-जनित प्रदूषण का स्तर 500 की सामान्य सीमा की बजाय 1800 तक पहुंच गया है।
 
पूर्व विधायक और पर्यावरण कार्यकर्ता अनिमेष देबबर्मा कहते हैं कि गोमती से पानी लाने की बजा ट्रीटमेंट प्लांट की तादाद बढ़ा कर और पुराने आधारभूत ढांचे का आधुनिकीकरण कर इस समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। वह कहते हैं, "राज्य में उद्योग या फैक्टरियां नहीं के बराबर हैं। बावजूद इसके एक तिहाई नदियों का प्रदूषित होना गंभीर चिंता का विषय है।"
 
राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी कहते हैं, "राज्य में पानी की सुरक्षा के लिए समुचित कानून और जल संरक्षण के लिए नीतिगत ढांचा बनाना समय की मांग है। इससे लोगों को जरूरत के मुताबिक पानी मिलता रहेगा।"
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कौन सी बीमारी फैल रही है एचआईवी से भी तेज