आंद्रेयास बेकर
जब से डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने कई देशों पर आयात शुल्क बढ़ाने की धमकी दी है और कई तो लागू भी हो गए हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे अमेरिका ने मौजूदा व्यापार समझौतों का उल्लंघन किया है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल के 'लिटिगेशन ट्रैकर' नाम की वेबसाइट में ट्रंप प्रशासन के खिलाफ किए गए कानूनी मामलों की जानकारी दी गई है। इस वेबसाइट पर यह जानकारी पहली बार 29 जनवरी को प्रकाशित हुई थी और 27 फरवरी को इसे अपडेट किया गया था। इसमें लगभग 100 मामले दर्ज हैं, जिनमें नागरिकों या संस्थाओं ने ट्रंप सरकार के फैसलों के खिलाफ अदालत में शिकायत की है।
इन मुकदमों में ज्यादातर में ट्रंप द्वारा लिए गए कार्यकारी फैसलों को चुनौती दी गई है। इनमें कुछ महत्वपूर्ण फैसले जैसे अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी यूएसएड को बंद करना, सरकारी कर्मचारियों को निकालना और सरकारी भुगतानों को रोकना शामिल है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अब यूरोपीय संघ को दी टैरिफ की दी धमकी
हालांकि, इस वेबसाइट पर ट्रंप की व्यापार नीतियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। उन्होंने व्यापारिक साझेदारों, चाहे वे अमेरिका के करीबी देश हों या विरोधी, पर जो भी व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं, उनका इसमें कोई जिक्र नहीं है।
विश्व व्यापार संगठन' विवाद से बढ़ी मुश्किलें
'लिटिगेशन ट्रैकर' वेबसाइट पर ट्रंप के टैरिफ से जुड़े मामले न होने की वजह को आसानी से समझा जा सकता है। व्यापार विवाद, अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आते हैं और इन्हें आमतौर पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) देखता है। यहीं से ट्रंप की व्यापार नीतियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मुश्किलें शुरू होती हैं।
जर्मन इकॉनमी इंस्टीट्यूट, कोलोन के विशेषज्ञ युर्गेन माथेस के अनुसार, ट्रंप अपने टैरिफ के जरिए मौजूदा व्यापार कानूनों का उल्लंघन कर रहे है। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने चीन, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों पर जो अतिरिक्त व्यापार प्रतिबंध लगाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून के खिलाफ है, लेकिन ट्रंप को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए, जब ट्रंप प्रशासन ने चीन से अमेरिका आने वाले सभी सामानों पर 10 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाया, तो चीन ने तुरंत डब्ल्यूटीओ में शिकायत दर्ज कर दी।
युर्गेन माथेस का कहना है कि ट्रंप के व्यापार फैसलों के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में कानूनी शिकायतें करना जरूरी है ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली बनी रहे। लेकिन अभी ये शिकायतें किसी नतीजे तक नहीं पहुंच रही हैं। उनका मानना है कि डब्ल्यूटीओ का निर्णय पैनल अमेरिका के टैरिफ को अवैध करार दे सकता है। लेकिन इसके बाद ट्रंप प्रशासन इस फैसले के खिलाफ डब्ल्यूटीओ के अपील निकाय में अपील करेगा, जो कई सालों से कार्यरत नहीं है।
डब्ल्यूटीओ का विवाद निपटारा प्रणाली कभी इसकी सबसे मजबूत ताकत मानी जाती थी। लेकिन 2019 में ट्रंप प्रशासन ने इस निकाय में दो नए जजों की नियुक्ति रोक दी थी, जिससे यह ठप पड़ गया। जो बाइडेन के प्रशासन ने भी इसे बहाल नहीं किया क्योंकि वह डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटारे की प्रक्रिया में बदलाव चाहते थे।
माथेस के मुताबिक, क्यूंकि अपील निकाय अब मौजूद नहीं है, इसलिए अमेरिका के खिलाफ कोई भी कानूनी तौर पर वैध फैसला नहीं आ सकता। और अगर ऐसा फैसला आ भी जाए, तो ट्रंप प्रशासन इसे मानने से इनकार कर सकता है।
यह स्थिति डब्ल्यूटीओ के 166 सदस्य देशों के लिए बहुत निराशाजनक है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कम से कम कुछ अनिवार्य नियमों को लागू करवाने के लिए इस संगठन में शामिल होने का फैसला किया था। खासकर अमेरिका के प्रभाव के कारण कई देशों ने डब्ल्यूटीओ की सदस्यता ली थी, लेकिन अब जब खुद अमेरिका नियम तोड़ रहा है और विवाद निपटारे की प्रक्रिया को ठप कर चुका है, तो बाकी देशों के पास न्याय पाने का कोई ठोस रास्ता नहीं बचा है।
क्या ट्रंप इनसे बच कर निकल सकते हैं?
कनाडा और मैक्सिको को लगता है कि ट्रंप के टैरिफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून का और भी बड़ा उल्लंघन है। ये दोनों देश न सिर्फ डब्ल्यूटीओ के सदस्य हैं, बल्कि वे अमेरिका के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (यूएसएमसीए) का हिस्सा भी है। यह व्यापार समझौता ट्रंप प्रशासन के दबाव में बना था और अमेरिकी कांग्रेस ने इसे मंजूरी दी थी।
लेकिन जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी, वॉशिंगटन के कानून विशेषज्ञ कैथलीन क्लॉसन का मानना है कि अमेरिकी सरकार के वकीलों के पास इससे बचने का तरीका हो सकता है। उनके मुताबिक, सामान्य नियम यही कहता है कि आप किसी मुक्त व्यापार समझौते वाले देश पर टैरिफ नहीं लगा सकते और डब्ल्यूटीओ सदस्य देशों पर भी ऐसे टैरिफ नहीं लगा सकते। लेकिन सरकार के पास कोई बहाना या कानूनी तर्क हो सकता है, जिससे वह खुद को सही ठहरा सके।
मैक्सिको और कनाडा का मामला यही दिखाता है। टैरिफ सिर्फ डब्ल्यूटीओ नियमों का ही नहीं, बल्कि (यूएसएमसीए) समझौते का भी उल्लंघन करते हैं, इसलिए इन्हें अमेरिकी अदालतों में भी चुनौती दी जा सकती है।
कैथलीन क्लॉसन का मानना है कि अमेरिकी कानून के तहत ट्रंप ने (आईईईपीए) कानून के जरिए अपने फैसले को सही ठहराया है। उन्होंने कहा, "ट्रंप इसी कानून का हवाला दे रहे हैं और यही उनके तर्क का आधार है।"
आईईईपीए (अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम) एक अमेरिकी कानून है, जिसे 1977 में बनाया गया था। यह अमेरिकी राष्ट्रपति को यह ताकत देता है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में दखल दे सकता है, भले ही कोई व्यापार समझौता पहले से मौजूद हो। इसकी बस एक शर्त है – राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करना होगा।
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद यही किया। उन्होंने मैक्सिको सीमा से प्रवासियों के बढ़ते आगमन और कनाडा से अवैध नशीली दवाओं (जैसे फेंटानाइल) के बढ़ते कारोबार को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया और इसी आधार पर टैरिफ लगाए।
व्यापार जगत के प्यादे
क्लॉसन का मानना है कि डॉनल्ड ट्रंप टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल करना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगाना बहुत आसान है। वह खुद टैरिफ में ज्यादा रुचि नहीं रखते,लेकिन व्यापारिक सौदों में इसे एक प्यादे की तरह इस्तेमाल करते है जैसे मोबाइल कंपनियों छूट (डिस्काउंट) का इस्तेमाल करती है।
क्लॉसन कहती हैं, "अगर आप दोस्त या परिवार के सदस्य हैं, तो आपको छूट मिल सकती है। लेकिन आपको यह साबित करना होगा कि आप सच में उनके दोस्त या परिवार के सदस्य है। फिर भी, अगर एक दिन डिस्काउंट मिल जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अगले दिन दोबारा जांच नहीं होगी।"
कनाडा और मैक्सिको पहले ही डॉनल्ड ट्रंप की इस अनिश्चित नीति को अनुभव कर चुके हैं। फरवरी में उन पर टैरिफ लगा दिए गए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद अमेरिका ने कहा कि उन्हें 30 दिनों के लिए टाल दिया गया है। फिर अचानक से ट्रंप ने स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर और अधिक शुल्क लगा दिया और घोषणा कर दी कि कनाडा और मैक्सिको पर लगाए गए टैरिफ अब मार्च की शुरुआत में लागू होंगे।
आईडब्ल्यू के विशेषज्ञ युर्गेन माथेस का मानना है कि "अनिश्चितता पैदा करना और लगातार नई धमकियां देना" ट्रंप की बुनियादी रणनीति है। वह विदेशी सरकारों और घरेलू उद्योगों पर दबाव बनाने के लिए ऐसा करते हैं ताकि वे उनके साथ सौदेबाजी के लिए तैयार हो जाएं।
इस बीच यूरोपीय देश, खासकर जर्मनी, जो एक बड़ा निर्यातक देश है, इस पर चर्चा कर रहे हैं कि अगर ट्रंप उनके उद्योगों पर टैरिफ लगा देते हैं तो उनके पास क्या विकल्प बचेंगे। यूरोपीय आयोग पहले ही जवाबी कदम उठाने की घोषणा कर चुका है, लेकिन अभी कोई विवरण नहीं दिया गया है।
माथेस को उम्मीद है कि कोई न कोई समझौता पहले ही हो जाएगा, शायद यूरोप अमेरिका से अधिक हथियार या अन्य अमेरिकी सामान खरीदकर समाधान निकाल ले। उनका कहना है, "ट्रेड वॉर सभी के लिए नुकसानदायक होता है," लेकिन "हमें चुपचाप सब स्वीकार भी नहीं कर लेना चाहिए।"
edited by : Nrapendra Gupta