अमेरिका के राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स माना जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसके पास अनंत अधिकार हैं। एक नजर इन पहलुओं पर।
क्या कहता है संविधान : अमेरिका में चार साल बाद राष्ट्रपति चुना जाता है। कोई भी व्यक्ति अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बन सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति सरकार और राज्यों का भी प्रमुख होता है। संसद द्वारा पास कानून लागू करना उसका दायित्व है। देश का सर्वोच्च कूटनीतिक अधिकारी होने के नाते भी वह नए देशों को भी मान्यता दे सकता है।
नियंत्रण में रखने के तरीके : अमेरिका में तीन ताकतें एक दूसरे को नियंत्रण में रखती हैं। राष्ट्रपति लोगों माफ या नियुक्त कर सकता है लेकिन इसके लिए सीनेट की सहमति जरूरी है। लेकिन सीनेट की मंजूरी के बिना भी राष्ट्रपति अपने मंत्री और दूत नियुक्त कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो विधायिका एक्जीक्यूटिव्स पर नियंत्रण रखती है।
संघों के समूह की ताकत : देश के भविष्य के बारे में राष्ट्रपति संसद को जानकारी देता है। वह देश को संबोधित भी करता है। लेकिन राष्ट्रपति अपनी तरफ से कोई विधेयक पेश नहीं कर सकता। भाषण से वह आम जनता का समर्थन हासिल कर सकता है और संसद को कानून बनाने के लिए दबाव बना सकता है।
साफ इनकार करने की शक्ति : राष्ट्रपति किसी भी विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है। यह उसका वीटो अधिकार है। लेकिन संसद भी दो-तिहाई बहुमत के साथ राष्ट्रपति के वीटो को पलट सकती है।
कहीं कहीं पर धुंधले नियम : अमेरिकी संविधान और सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति की ताकत का साफ जिक्र नहीं करते। यही वजह है कि एक और वीटो ट्रिक का विकल्प मिलता है। इसे पॉकेट वीटो कहा जाता है। खास परिस्थितियों में राष्ट्रपति विधेयक को "अपनी पॉकेट" में डाल सकता है। संसद इस वीटो को पलट नहीं सकती। अमेरिका में यह ट्रिक अब तक 1,000 से ज्यादा बार इस्तेमाल की जा चुकी है।
काम के निर्देश : राष्ट्रपति सरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने के निर्देश दे सकता है। इस ताकत को "एक्जीक्यूटिव ऑडर्स" कहा जाता है। यह कानूनी रूप से बाध्य है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति निरंकुश हो जाए। अदालत और कॉन्ग्रेस ऐसे आदेश को खिलाफ कानून बना सकती है।
सीनेट की मंजूरी : अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही किसी भी देश के साथ संधि कर ले, लेकिन उसे कानूनी मंजूरी सीनेट की दो तिहाई सहमति के बाद ही मिलती है। इसे "एक्जीक्यूटिव एग्रीमेंट्स" कहा जाता है।
सेना की कमान : अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका सेना का कमांडर इन चीफ भी होता है, लेकिन युद्ध का घोषणा संसद ही कर सकती है। राष्ट्रपति कैसे संसद की मंजूरी लिये बिना हिंसाग्रस्त इलाकों में सेना भेज सकता है, इस बारे में बहुत साफ संवैधानिक निर्देश नहीं हैं। वियतनाम युद्ध के समय ऐसी ही संवैधानिक चुनौती सामने आई।
बेहद कड़ा कंट्रोल : अगर राष्ट्रपति पद का दुरुपयोग करता है या कोई अपराध करता है, तो हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। अब एक ऐसा दो बार हुआ है और दोनों ही बार नाकाम रहा। लेकिन राष्ट्रपति को नियंत्रित करने के लिए कुछ इससे भी कड़े तरीके हैं। संसद के पास बजट अधिकार है। उसकी सहमति के बाद ही राष्ट्रपति के पास खर्च करने के लिए पैसा होगा।
रिपोर्ट: ऊटा श्टाइवेयर/ओएसजे