यदि जर्मनी में रहने वाले किसी व्यक्ति का वजन 80 किलोग्राम है, तो दक्षिण भारत में उसका वजन 24 ग्राम कम होगा। जानिए क्यों।
धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति हमें चुंबक की तरह अपनी ओर खींचती है। वह हमारे वजन में अहम भूमिका निभाती है। देखने में भले ही लगे, लेकिन हमारा नीला ग्रह असल में उतना गोल है नहीं। उसका मैटीरियल अलग अलग तरह से बंटा है। धरती के ऊपर भी और उसके गर्भ में भी। जहां उसका घनत्व ज्यादा है, वहां उसका गुरुत्वाकर्षण भी उस इलाके से ज्यादा है जहां द्रव्यमान कम है।
उपग्रहों से तत्व के वितरण को ठीक ठीक मापा जा सकता है। वे धरती की आकर्षण शक्ति को स्पष्ट करते हैं। वे दिखाते हैं कि धरती का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र गोले की बजाय आलू जैसा होता है। ऊंचे इलाकों में धरती का गुरुत्वाकर्षण घाटी वाले इलाकों से ज्यादा होता है। उपग्रह की मदद से सबसे गहरी वादी दक्षिण भारत में मिली है।
यदि जर्मनी में रहने वाले किसी व्यक्ति का वजन 80 किलोग्राम है, तो दक्षिण भारत में उसका वजन कम गुरुत्वाकर्षण के कारण 24 ग्राम कम होगा। धरती के केंद्र से हम जितना दूर जाते हैं, गुरुत्वाकर्षण उतना ही कम होता जाता है। इसलिए गहराई में स्थित समुद्र तट पर उस व्यक्ति का वजन हजारों मीटर ऊंचे पहाड़ के मुकाबले थोड़ा बहुत ज्यादा होगा। हालांकि दोनों के बीच का अंतर उसे महसूस नहीं होगा।
एक्सरसाइज भी हमारे वजन पर असर डालती है। इसे हम झूले पर बैठने के अनुभव से जानते हैं। झूला जितनी तेजी से घूमता है, हवा में हम उतना ही ऊपर जाते हैं। यहां सेंट्रीफ्यूगल फोर्स गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करती है। भूमध्य रेखा पर धरती दूसरी जगहों के मुकाबले तेजी से घूमती है। तेज सेंट्रीफ्यूगल फोर्स के चलते वहां वजन पोलैंड के मुकाबले 400 ग्राम कम होगा।
वहीं, अंतरिक्ष में ये अंतर धरती के मुकाबले बहुत ही ज्यादा होता है। चांद पर वजन बहुत ही ऊंची छलांग मारेगा। वहां वजन धरती के मुकाबले 16 प्रतिशत ज्यादा होगा। और यदि यह व्यक्ति सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति पर जाए, तो धरती के वजन के मुकाबले उसका वजन ढाई गुना ज्यादा हो जाएगा।
रिपोर्ट: कॉर्नेलिया बोरमन/आईबी