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क्या यूक्रेन में जनसंहार कर रहा है रूस?

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, रविवार, 5 मार्च 2023 (07:53 IST)
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी कब्जे वाले पूर्वी यूक्रेन के इलाकों से हजारों यूक्रेनी बच्चों को रूस भेज दिया गया है। यूक्रेन की सरकार ने इसे जनसंहार बताया है। क्या यह वाकई में जनसंहार है?
 
बीते सोमवार को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के उद्घाटन सत्र के दिन यूक्रेन के विदेश मंत्री दमित्रो कुलेबा ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि यूक्रेन से हजारों बच्चों को सुनियोजित तरीके से रूस भेजे जाने की रिपोर्ट सामने आयी है। यह एक ‘जनसंहार' है। जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक सहित पश्चिमी देशों के कई अधिकारियों ने बच्चों को कथित तौर पर रूस भेजे जाने की निंदा की। इन आरोपों के बाद रूसी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने को लेकर फिर से बहस शुरू हो गई है।
 
आइए जानते हैं कि आखिरकार जनसंहार क्या होता है और इस शब्द का इस्तेमाल किस संदर्भ में किया जा सकता है।
 
दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर और उसकी सेना ने यहूदियों के ऊपर काफी अत्याचार किया था। लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई थी। उन्हें यातनाएं दी गई थीं। इसे ही होलोकॉस्ट यानी यहूदी जनसंहार कहा गया। उस समय पहली बार जनसंहार शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इसका मतलब है लोगों के विशेष समूह को खत्म करना।
 
1943 में, यहूदी-पोलिश वकील राफेल लेमकिन ने नाजी जर्मन में हिटलर द्वारा यहूदियों की सुनियोजित तरीके से हत्या को परिभाषित करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। लेमकिन ने भी इस होलोकॉस्ट में अपने पूरे परिवार को खो दिया था। सिर्फ वे और उनके भाई इस जनसंहार के दौरान बच पाए थे।
 
लेमकिन ने जनसंहार को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक अपराध के रूप में मान्यता दिलाने के लिए अभियान चलाया। 1948 में यूनाइटेड नेशन जेनोसाइड कन्वेंशन (संयुक्त राष्ट्र जनसंहार सम्मेलन) में इसे अपराध घोषित करने की पहल शुरू हुई और 1951 में इसे अपराध घोषित किया गया।
 
सम्मेलन के अनुच्छेद दो में जनसंहार को परिभाषित किया गया। इसके मुताबिक, पूरी तरह या आंशिक रूप से, किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह के खात्मे के इरादे से किया गया काम जनसंहार कहलाता है।
 
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक, इस तरह के काम में हत्याएं, गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान, जान से मारने की धमकी देने वाली स्थितियां, किसी समूह को बच्चे पैदा करने से रोकने के लिए किए जाने वाले काम और बच्चों को जबरन किसी दूसरी जगह पर भेजना शामिल हो सकता है।
 
किस पर मुकदमा चलाया जा सकता है?
यूएन जेनोसाइड कन्वेंशन में कहा गया है कि जनसंहार से जुड़े कामों में शामिल सभी लोगों पर मुकदमा चलाया जा सकता है और उन्हें सजा दी जा सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह काम किसी व्यक्ति, समूह या निर्वाचित नेता ने किया है। अगर निर्वाचित नेताओं ने यह काम किया है, तो उनके ऊपर भी मुकदमा चलाया जा सकता है।
 
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के पास जनसंहार, युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों की जांच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार होता है। इस कानून के तहत, जो कोई भी जनसंहार करता है, ऐसा करने का आदेश देता है, इस काम में मदद करता है, यहां तक कि जनसंहार के लिए उकसाता है, उन सभी पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
 
इसके लिए एक विशेष अदालत का गठन किया गया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय कहा जाता है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग में है। यह अदालत अलग-अलग देशों के बीच होने वाले विवाद के मामलों की सुनवाई करती है। अदालत यह फैसला सुना सकती है कि कोई देश जनसंहार के लिए जिम्मेदार है या नहीं।
 
आसान नहीं है जनसंहार साबित करना
हेग में रहने वाली अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ वैलेरी गबार्ड ने डीडब्ल्यू को बताया, "सामान्य भाषा में जनसंहार शब्द का इस्तेमाल गंभीर अपराध के संदर्भ में किया जाता है, क्योंकि कहीं न कहीं यह युद्ध अपराधों या मानवता के खिलाफ अपराधों से भी बदतर लगता है। हालांकि, कानूनी तौर पर जनसंहार शब्द की परिभाषा काफी संकीर्ण है।”
 
गबार्ड कानूनी सलाहकार फर्म अप-राइट्स की सह-संस्थापक भी हैं। वह कहती हैं, "संख्या से यह तय नहीं होता कि कोई अपराध जनसंहार है या नहीं। इसे तय करने का पैमाना यह है कि किसी विशेष समूह को खत्म करने के इरादे से उसे निशाना बनाया गया हो।” वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि ‘विशेष इरादे' को साबित करना आसान नहीं है, क्योंकि अक्सर इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होता है।
 
लंदन की मिडलसेक्स यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल लॉ के प्रोफेसर विलियम शाबस ने डीडब्ल्यू को बताया, "जनसंहार के इरादे को साबित करने में समस्या यह है कि अपराधी अदालत में शायद ही सीधे तौर पर अपने अपराध को स्वीकार करता है।”
 
उन्होंने कहा, "ऐसे में अदालतों को अपराधियों के आचरण के आधार पर उनके इरादे का अनुमान लगाना पड़ता है। इसलिए, आपको परिस्थिति के मुताबिक मिले सबूतों पर भरोसा करना होगा। और नियम यह है कि इन परिस्थितियों और हालातों पर किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए। इसी वजह से जनसंहार को साबित करना मुश्किल हो जाता है।”
 
क्या बच्चों को दूसरी जगह भेजना जनसंहार है?
फरवरी में प्रकाशित येल विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस अपने कब्जे वाले यूक्रेनी इलाके और रूसी संघ में लगभग 6,000 यूक्रेनी बच्चों को शिविरों में रखे हुए है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यूक्रेन के बच्चों को हिरासत में रखने के लिए कई केंद्र बनाए गए हैं। ऐसा लगता है कि इनका मुख्य उद्देश्य बच्चों की राजनीतिक समझ को बदलना है। कुछ बच्चों को इसलिए भी रखा गया है कि रूसी लोग उन्हें गोद ले सकें। हालांकि, यहां रखे गए बच्चों में कई ऐसे हैं जिनके परिवार या अभिभावक जीवित हैं।
 
रूस ने दावा किया है कि रूसी परिवारों द्वारा यूक्रेनी बच्चों को गोद लेना उदारता का काम है। इससे इन असहाय बच्चों को नया घर मिलेगा और उन्हें चिकित्सा जैसी अन्य सुविधाएं मिलेंगी। न्यूज एजेंसी एपी ने फरवरी में बताया कि रूस की सरकारी मीडिया ने कई ऐसी तस्वीरें जारी की हैं जिनमें स्थानीय अधिकारी यूक्रेनी बच्चों को गले लगा रहे हैं, उन्हें प्यार से चूम रहे हैं, और रूसी पासपोर्ट दे रहे हैं।
 
संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वैसीली नेबेंज्या ने कहा कि ये कैंप रूस आने वाले लोगों के रजिस्ट्रेशन के लिए बनाए गए केंद्र थे। सितंबर 2022 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया, "यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह थी जैसे पोलैंड और यूरोप के अन्य देशों में यूक्रेन के शरणार्थियों के लिए अपनायी गई थी।"
 
यूक्रेन स्थित ल्वीव विश्वविद्यालय के वोलोदिमीर पाइलिपेंको ने जनवरी में लिखा, "बड़े पैमाने पर यूक्रेनी बच्चों को अवैध तरीके से रूस भेजा गया। यह पूरी तरह सुनियोजित तरीके से किया गया है।”
 
उन्होंने तर्क दिया कि इसे जनसंहार का मामला बनाया जा सकता है, क्योंकि इस प्रक्रिया से आने वाली पीढ़ियां यूक्रेन की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान से वंचित हो सकती हैं। वे रूसी भाषा और मूल्यों के साथ पले-बढ़ेंगे। उन्होंने आगे कहा कि नाबालिगों का अवैध स्थानांतरण यूक्रेन के प्रति रूसी आक्रामकता के बड़े पैटर्न का हिस्सा है। इसका स्पष्ट इरादा यूक्रेन को पूरी तरह बर्बाद करना है। 2014 में क्रीमिया का विलय और डोनबास में चल रहा संघर्ष इसी पैटर्न का हिस्सा है।
 
शाबस ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि यूएन जेनोसाइड कन्वेंशन के अनुसार, बच्चों का जबरन दूसरे समूह में स्थानांतरण जनसंहार की श्रेणी में आता है। हालांकि, इसे जनसंहार तब माना जा सकता है, जब इसमें कोई संदेह न हो कि यह स्थानांतरण किसी समूह को पूरी तरह खत्म करने के इरादे से किया गया हो। साथ ही, इसके पीछे कोई अन्य ठोस कारण नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह सबूत काफी मजबूत है कि रूस का इरादा यूक्रेन के लोगों को पूरी तरह खत्म करने का है।”
 
जनसंहार के मुकदमों में समय लगता है
गबार्ड ने कंबोडिया, रवांडा और पूर्व यूगोस्लाविया के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में काम किया है। वह कहती हैं कि जनसंहार के मुकदमे में समय लग सकता है। उन्होंने कहा, "अपराध की गंभीरता के कारण इसमें काफी लंबा समय लगता है। आम तौर पर जब आप जनसंहार की बात करते हैं, तो बहुत सारे पीड़ित होते हैं। इसमें अपराधों की जांच करने में समय लगता है। साथ ही, इस बात की भी जांच की जाती है कि यह अपराध सिर्फ लोगों को मारने के इरादे से नहीं किया गया था, बल्कि इस इरादे से किया गया था कि वे किसी समूह या समुदाय का हिस्सा थे।”
 
जनसंहार है या नहीं?
2021 में अमेरिका, कनाडा और डच सरकारों ने चीन पर शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक उइगुर समुदाय के खिलाफ जनसंहार का आरोप लगाया था। कई देशों ने इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में बहस कराने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया।
 
हालांकि, विशेषज्ञ उन तीन जनसंहारों की ओर इशारा करते हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जनसंहार माना था। इनमें से एक है रवांडा, जहां 1994 में सौ दिनों में चरमपंथी हुतू लोगों ने करीब 8,00,000 तुत्सी और उदारवादी हुतुओं को मौत के घाट उतार दिया था। उन्होंने इस कत्लेआम में पुरुष, महिला, बच्चे या बूढ़े किसी को नहीं छोड़ा था।
 
स्रेब्रेनित्सा में 1995 में हुए जनसंहार को भी अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जनसंहार माना था। यह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में हुआ सबसे बड़ा जनसंहार है। इसके लिए, पूर्व यूगोस्लाविया के लिए बनाए गए अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध ट्रिब्युनल में बोस्नियाई सर्बों के सेना प्रमुख रात्को म्लादिच के खिलाफ मुकदमा चलाया गया। अभियोजन पक्ष का कहना था कि म्लादिच ने 1992-95 के बोस्नियाई खूनी संघर्ष के दौरान ‘महान सर्बिया' बनाने के लिए जातीय सफाई के क्रूर अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
 
वहीं, 1970 के दशक में कंबोडिया में ख्मेर रूज के शासन काल में करीब 17 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हालांकि, बाद में कई लोग इस बात पर असहमत हो गए कि ख्मेर रूज के कई पीड़ितों को उनकी राजनीतिक या सामाजिक स्थिति के कारण निशाना बनाया गया था। इस वजह से इस घटना को संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक जनसंहार की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
 
2010 में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के खिलाफ जनसंहार के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। अल बशीर पर सूडान के दारफूर इलाके में मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप हैं। अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत ने अल बशीर के खिलाफ पहला गिरफ्तारी वारंट 4 मार्च 2009 और दूसरा 12 जुलाई 2010 को जारी किया था। मानवता के खिलाफ अपराध के तहत बशीर पर हत्या, जबरन विस्थापन, प्रताड़ना और बलात्कार के आरोप लगे थे।
 
शाबस ने कहा, "हमारे पास जनसंहार की कानूनी परिभाषा है, जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कई मुकदमों की सुनवाई के दौरान किया गया है। रवांडा में हुए कत्लेआम को जनसंहार साबित करने के लिए भी इसी परिभाषित कानून का इस्तेमाल किया गया था। इसलिए, चीन में उइगुरों के साथ होने वाले बर्ताव या यूक्रेन युद्ध में हो रही घटनाओं को जनसंहार बताने की जो कोशिश की जा रही है, वह जनसंहार की कानूनी परिभाषा से मेल नहीं खाती है।

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